नक्कारखाने की तूती
नक्कारखाने की तूती -परम्परायें और कुंठा
परम्परायें और कुंठा समय के इस कालखण्ड में एक विशेष ट्रेण्ड सभी को नजर आ रहा है। ये ट्रेण्ड है परम्पराओं में खामी ढूंढ कर उस परम्परा के वाहकों का…
साक्षात्कार
साक्षात्कार-डॉ कौशलेन्द्र मिश्र
‘एक मुलाकात’ व ‘परिचय’ श्रृंखला में इस पिछड़े क्षेत्र से जुड़े हुए और क्षेत्र के लिए रचनात्मक योगदान करने वाले व्यक्ति के साथ बातचीत, उनकी रचनाओं की समीक्षा, उनकी रचनाएं…
व्यक्तिगत विवरण-डाॅ कौशलेन्द्र
नाम – कौशलेन्द्र मातृभाषा – हिंदी अन्य बोलियाँ – भोजपुरी एवं बृज लेखन विधा – निबन्ध, कविता, कहानी, रंगकथा, समसामयिक आलेख, चिकित्सा आलेख, यात्रा-संस्मरण एवं चिट्ठालेखन । सामाजिक एवं गतिविधियाँ…
बस्तरनामा
बस्तर के भित्तिचित्र कला भी हैं और इतिहास भी-राजीव रंजन प्रसाद
बस्तर के भित्तिचित्र कला भी हैं और इतिहास भी पाषाणकाल से ही स्वयं को अभिव्यक्त करने का माध्यम बस्तर के आदिवासी समाज के पास उपलब्ध रहा है। अपनी अनुपम शैली…
बस्तरनामा-राजीव रंजन प्रसाद
मैं इन्द्रावती नदी के बूँद-बूँद को, अपने दृगजल की भाँति जानता आया हूँ. प्राचीन बस्तर अथवा दण्डकारण्य के समाजशास्त्रीय विश्लेषण की आवश्यकता है. कितना जटिल था वह समाज अथवा कितना…
रंग रंगीला बस्तर
रंग रंगीला बस्तर-भाजीराम मौर्य
आदिवासी मुरिया समाज की माहला रस्म मुरिया समाज में युवक युवती शादी की उम्र होने पर माता-पिता युवा पुत्र के लिये युवा कन्या की तालाश करते हैं जो स्वयं…
नई कलम
श्रद्धा बसंती जैन की कविताएं
रात अंधेरे को लपेटे अपने तन से रात चली उदास मन से मैंने कहा रात से, तुम क्यों हो निराश तुम नहीं जानती, क्या क्या है तुम्हारे पास! तुम्हारे आंचल…
साहित्य उठापटक
संगोष्ठी-आधुनिक कविता का शिल्प व विषय
संगोष्ठी-आधुनिक कविता का शिल्प व विषय प्रत्येक साहित्य अपने काल का आधुनिक साहित्य होता है। कविता से उसके काव्य को चुरा लेना मात्र ही आधुनिक कविता नहीं है। इन महत्वपूर्ण…
लाला जी वास्तव में साहित्य ऋषि थे-102वीं जयंती
सनत कुमार जैन लाला जी वास्तव में साहित्य ऋषि थे लाला जगदलपुरी जी की एक सौ दो वीं जयन्ती पर साहित्य एवं कला समाज जगदलपुर द्वारा आयोजित कार्यक्रम में…
फेसबुक वॉल से
फेसबुक वॉल से-अंक-25-डॉ दिवाकर दत्त त्रिपाठी
डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी की वॉल से गीत -1 सूख चुके अधरों से, मधुर गीत क्या गाऊँ ? काल नग्न नाच रहा, शोक है, विलाप है। हर तरफ से सिर्फ…
अंक-17-फेसबुक वॉल से-सुनील दाश
ले के मुहब्बत का नाम, लोग कोसते हैं “सुनील“ को, मशवरा भी दिया था तजुर्बेकार नामुकम्मल आशिकों ने, वो बेवफा हकीकत में मिटा देगी “अकेला“ को,,,,,,,, “सुनील“ ने तो मुहब्बत…
कहानी
अस्तित्व – महेश्वर नारायण सिन्हा
अस्तित्व (पर्यावरण और जीवन के अंतरसंबंधों के अंतरद्वंद पर केंद्रित एक महत्वपूर्ण कहानी) –महेश्वर नारायण सिन्हा पड़ोसी राज्य की धरती सूख गयी थी। वर्षा की एक बूँद के लिए लोग तरस गए । देव कुपित थे। उस राज्य के राजा ने चिंतित होकर सभी मंत्रियों, बुद्धिजीवियों, ऋषियों और संन्यासियों को बुलाया। समाधान खोजने की कोशिशें हुईं, विचार-मंथन चला। यह आसान नहीं था, पेड़-पौधे, जंगल सब वीरान हो चुके थे। तालाब और नदियाँ लगभग सूख चुकी थीं, कुएँ और डबरे पहले ही सूख चुके थे। केवल एक ही दृश्य चारों तरफ नज़र आता था- मृत्यु । पक्षी या तो मर गए या उड़ गए, मवेशी या तो चल बसे या कंकाल बन गए। पुरुषों और महिलाओं के साथ भी यही हुआ; बच्चे अपनी माँ की गोद में समा गए। खेत-खलिहान सूख गए। पूरे राज्य में केवल एक ही चीज़ जीवित थी – प्यास! पानी की एक बूँद भी कहीं से मिले! एक बुद्धिमान व्यक्ति ने सुझाव दिया – ‘महाराज! यह स्पष्ट है कि प्रकृति नाखुश है। हमने अपने ही निवास इस धरती के साथ क्रूर व्यवहार किया है । विलासिता और अन्यायपूर्ण संबंधों ने हमारी अपार क्षति की है। हम सब ऐय्यास और लापरवाह लोग हैं। केवल एक प्रबुद्ध व्यक्ति और एक उच्च मूल्य वाला व्यक्ति ही हमारी प्रकृति को प्रसन्न कर सकता है। तभी हम अस्तित्व की एक संतुलित स्थिति प्राप्त करने की आशा कर सकते हैं!’ राजा आश्चर्यचकित था – क्या वास्तव में ऐसा था! उसने उत्तर दिया – ‘हाँ, उसके राज्य में लोग पाखंडी थे, एक उन्नत सिद्धांत का दावा करनेवाले, वास्तव में, वे क्रूर उपभोक्ता थे, प्रेम और सम्मान के मूल्य से रहित! लोग मांस खाते थे और गरीबों का खून पीते थे, बेशरम इतने कि अपने कार्यों को सही ठहराने के लिए भ्रामक तर्क दिया करते थे। आवाम जो निहायत मूर्ख थी, अक्सर उन बेहूदे लोगों का अनुसरण किया करती। लेकिन माँ प्रकृति ने इसकी अनुमति नहीं दी और अपना गुस्सा दिखाया। अफ़सोस, एक अंधे के लिए दृश्य क्या और एक बहरे के लिए संगीत क्या! अब बहुत देर हो चुकी है। हमारे पास दो ही रास्ते बचे हैं- एक, या तो इस धरती को छोड़ दें या फिर जल्दी से अपना चरित्र बदल लें। और, इस राज्य को बचाने के लिए, हमें एक मूल्यवान और बुद्धिमान व्यक्ति की तलाश करनी होगी; एक चरित्रवान व्यक्ति की तलाश करनी होगी जो प्रकृति से बात कर सके। एक संन्यासी की तलाश करनी होगी जिसकी भेंट हमारी प्रकृति ग्रहण कर सके। एक सच्चा आदमी ढूँढ़ना होगा जो प्रकृति को प्रसन्न कर सके। एक युवा तपस्वी था, लेकिन उसे उस शुष्क क्षेत्र में आमंत्रित करना संभव नहीं था। राजा ने पूछा – ‘क्यों? वह कैसा साधु है जो जीवों को बचाने के लिए तत्पर नहीं!’ मंत्री ने उस युवा तपस्वी के बारे में सब कुछ बताया जो अपने पिता, जो स्वयं उसके गुरु भी थे, की सख्त निगरानी में था। इसके अलावा, उसे अपने पिता की बनाई दुनिया से बाहर जाने की अनुमति नहीं थी- एक समानांतर दुनिया, वास्तव में एक गैर-स्त्री दुनिया। यहाँ तक कि पौधे और छोटे जीव भी (सेल्फ-जनरेटेड) स्व-उत्परिवर्तन के माध्यम से प्रजनन करते थे, न कि सामान्य नर-मादा के आह्वान और मैथुन के तरीके से! ‘ऐसा क्यों?!’- राजा ने आश्चर्य व्यक्त किया. ‘ऐसा इसलिए कि उस पिता की तपस्या एक स्त्री ने भंग किया था, तब से उस पिता और गुरु ने प्रतिज्ञा की थी कि वह अपने पुत्र को स्त्री ज्ञान से ही वंचित रखेगा, इसलिए उसकी अपनी बनायी दुनिया में स्त्री तत्व था ही नहीं।’ ‘बहुत बढ़िया!’ राजा दंग रह गया।…
लघु कथा
लघुकथाएं-महेश राजा
नव वर्ष का स्वागत है बड़ी उदास सी घड़ी थी। 2021का आखरी दिन। बूढ़ा साल लाठी के सहारे धीरे धीरे क्षितिज की ओर बढ़ रहा था। उसके चेहरे पर चिंताओं…
उंगलबाज
कौन गरीब “भाई सब लोग मिलकर 1100/- रुपये दे रहे हैं। तुम कब भिजवा रहे हो।“-देवेंद्र का फोन था पर मैं चुप था। लगातार की चुप्पी ने देवेंद्र को फोन…
कविता
श्रद्धा बसंती जैन की कविताएं
रात अंधेरे को लपेटे अपने तन से रात चली उदास मन से मैंने कहा रात से, तुम क्यों हो निराश तुम नहीं जानती, क्या क्या है तुम्हारे पास! तुम्हारे आंचल…