अर्ध रात्रि का ज्ञान-बजट -सनत कुमार जैन

अर्ध रात्रि का ज्ञान
पकने का समय कई दिनों से अब तक/लिखने का समय 8.00 पी.एम. से 8.30 पी.एम. दिनांक-25 जुलाई 2024

बजट
लेखक-सनत सागर, संपादक बस्तर पाति, जगदलपुर, छ.ग.

दुकान का शटर उठाने के पश्चात वह बड़ी तनमयता से झाड़ू लगा रहा था। बड़े कचरे को वह कचरा बाल्टी में भर कर रख दिया।
’सुना राजू! हमको कुछ नहीं मिला।’
ये वाक्य सुनकर ढाड़ू लगाता राजू पल भर रूका और पुनः जुट गया अपने काम में। उसकी प्रतिक्रिया से सुनील को समझ नहीं आया कि राजू उसके कहे को समझ भी रहा है या नहीं, या सुना ही नहीं है। उसने पुनः कहा।
’ये सरकार हम व्यापारियों को लूटने के लिये ही बनती है। हमसे जाने किस जनम का बैर निकालती है।’ यह कहते हुये सुनील झाड़ू मारते राजू को पुनः देखा। उसे प्रतिक्रियाहीन देख उसका माथ सरक गया।
’अरे! तू क्या जीवन भर झाडू ही लगाता रहेगा या कभी कुछ बड़ा काम भी करेगा ? तेरे लिए आम बजट का कोई अर्थ नहीं ?’
राजू अबकी अपने हाथ में पकड़ी झाडू को तेजी से धरती पर पटक दिया। और पास रखी बाल्टी उठा कर दुकान के फर्श में पोंछा लगाने के लिये सरकारी नल से पानी भरने लगा।
अबकी प्रतिक्रिया से सुनील समझ गया कि राजू उसके प्रश्न से चिढ़ गया है। वह उसके पीछे पीछे सरकारी नल तक गया और पुनः बोला।
’सरकार ने तुझको ऐसा क्या दे दिया है जो इतना ताव खा रहा है ? कब से तू इतना समझदार हो गया है कि बजट समझने लगा ?’
राजू झट से पलट कर उत्तर दिया।
’भैया! लगता है आज पुनः भाभी से आपका झगड़ा हो गया और भाभी ने आपके सर पर ही किसी भारी वस्तु से वार किया है।’ यह कहते हुये उसके मुख में हंसी के भाव न थे बल्कि क्रोध भरा हुआ था। अपनी बात कह कर पानी से भरी बाल्टी उठाकर उसका पानी दुकान के सामने आंगन में फेंक दिया।
सुनील भुनभुनाकर दुकान के भीतर चला गया। अपनी कुर्सी में बैठ कर मोबाइल ऑन करके फेसबुक खोलकर देखने लगा।
राजू तब तक पोंछा मारना शुरू कर दिया। पोंछा लगते ही पंखा चला कर बाहर चला गया। सुनील कनखियों से उसकी ओर देखता ही रहा।
जैसे राजू समाचार पत्र लेकर बाहर से भीतर आया वह पुनः शुरू हो गया।
’मीडिल क्लास के लिये ठन ठन गोपाल। अगली बार के लिये स्वयं ही गढ्ढा खोद रहे हैं। वंदेभारत चलायेंगे, बुलेट ट्रेन चलायेंगे और हमारे लिये बाबा जी का ठुल्लू! कहां से मैंने इनको वोट देकर स्वयं ही स्वयं के पैरों में कुल्हाड़ी मार ली। अभी पूरे पांच साल में जाने क्या क्या खेल खेलेगे।’ सुनील कहकर असहाय भाव से राजू की ओर देखा। राजू प्रतिक्रिया विहीन भाव से चुपचाप समाचारपत्र पढ़ता रहा।
राजू समझ रहा था कि सुनील अपने कहने के लिये भयंकर ढंग से उत्सुक है। वह किसी सुनने वाले को उत्सुकता के साथ ढूंढ रहा है परन्तु कोई सहज उपलब्ध नहीं हो रहा है। अतः सारी भड़ास उस पर ही निकाल रहा है। वह यह भी भलीभांति समझ रहा था कि मुठभेड़ होनी ही है। अभी हो या कुछ देर में ही। बजट का तीर उनके ऐसे स्थान पर लगा है जिस कारण वो शांति से बैठ नहीं पा रहे हैं।
’ऐसे समाचार पढ़ रहा है मानों पूरे संसार की चिंता इसे ही हो।’ सुनील इतने तेज स्वर में बड़बड़ाया कि राजू के कान में सुनायी पड़ जाये।
राजू अबकी बार मन ही मन खुश हुआ। उसे सुनील का कुढ़ना अब अच्छा लग रहा था। वह भी कुछ बोलना चाह रहा था परन्तु अभी सामान्य स्थिति में कहने पर वह उजड्ड और लड़ाकू घोषित हो जाता। वह सुनील के द्वारा झगड़ा करने की प्रतीक्षा कर रहा था ताकि उस पर कोई आरोप न लगा सके और वह सुनील को खुलकर उत्तर दे सके। वह यह भी जानता था कि यदि आज के आज सुनील के इस विषय के पागलपन को दूर न किया तो पंद्रह दिन तो नष्ट होने ही हैं।
अंततः राजू की आशंका फलीभूत हुयी। सुनील अपनी कुर्सी से उठा और उसके हाथों से समाचार पत्र छीन कर तेज स्वर में कहा।
’समाचार पढ़ने के लिये वेतन नहीं देता हूं। काम करने के लिये तुझे काम पर लगाया है।’
राजू चुप ही रहा।
’न तो इनकम टैक्स में कोई छुट दी गयी न ही ट्रेन किराया कम किया। वही हथियारों का बजट बढ़ा दिया बस! न तो शिक्षा के लिये कुछ विशेष किया न ही महिलाओं के लिये कुछ विशेष प्रावधान किया। कुछ नहीं तो बिजली के बिल का बोझ तनिक कम कर देते। कुछ भी न दिया। हम केवल और केवल टैक्स देने के लिये हैं……..।’
’भैया! आप तो ऐसे जता रहे हो मानों टैक्स अपनी पाकेट से देते हो।’ अंततः राजू ने सुनील को उत्तर दे ही दिया। क्रोध से भरा सुनील तेज स्वर में बोला।
’क्यों जीएसटी तू भरता है क्या मेरे बदले ? और इनकम टैक्स तेरे घर वाले आ कर भरते हैं ? दिनरात श्रम करने के पश्चात जो अर्जित किया है उसे चुपचाप सरकार की तिजोरी में जमा कर देता हूं। और हां, इसलिये ही तो सरकार से छाती तान कर प्रश्न पूछता हूं।’ तुरंत सुनील ने अपनी छाती तान कर दिखा भी दी।
राजू उसे मुस्करा कर देखा और बोला।
’भैया! मेरा मुंह न खुलवाओ। अन्यथा आपको स्वयं पर शर्म आ जायेगी।’
सुनील ने उसकी ओर देखा। उसके नैनों में उमड़ते क्रोध के लाल बादल छा गये थे, एक तो बजट ने उसका बुद्धि का बारह बजा दिया था ऊपर से दो कौड़ी का कर्मचारी उसे ही आंखें दिखा रहा है। अत्यंत कठिनाई से स्वयं को संभालते हुये उससे कहा।
’बोल क्या बोलना है तुझे बोल। मैं भी तो जानूं जो तू मेरे संबंध में जानता है।’
राजू मानों इसी आदेश की प्रतीक्षा था, वह तुरंत ही शुरू हो गया।
’भैया! आप जिस जीएसटी देने की बात छाती ठोंक कर कह रहे हो न वो आपका पैसा है ही नहीं। आप तो वो पैसा अपने ग्राहक से लेते हो और उसके पश्चात माह उपयोग करते हो तब कहीं जाकर उसे सरकार के खाते में जमा करते हो। हां, यदि आप यह कहें कि आप ग्राहकों से एकत्र करते हो तब देते हो, तब आपकी श्रम पर विचार किया जा सकता है। परन्तु जब भी आप जीएसटी की बात करते हो तब यूं जताते हो मानों अपनी पाकेट से अपने लाभ का एक बड़ा भाग सरकार को दे देते हो। वास्तव में आपको पुराने टैक्स सिस्टम से टैक्स चोरी करने की आदत थी और उसे दबा कर बहुत आनंद उठाया है इसलिये आज आपका टैक्स जमा करते हृदय फटा जा रहा है। इसके अतिरिक्त आपका सबसे बड़ा कष्ट यह है कि आपका अथाह लाभ सरकार से छिप नहीं पा रहा है। पूर्ववर्ती समय में जिस प्रकार आपने उस सरकारी टैक्स चोरी से धन का ढेर अपने घर में लगाया है अब उस प्रकार की ढेरी नहंी लग पा रही है। काले धन से जो विभिन्न नगरों में भूमि के टुकड़े लेकर छोड़ रखे हैं अब उसकी चिन्ता हो रही है। सरकार कहीं उस पर ही टैक्स न लगा दे इसलिये पहले से ही तेज स्वर में रोना धोना मचा रखा है। आज भी आपने जीएसटी के सामान की आड़ में दो नंबर का सामान भी मंगाते हो जो बिना बिल का आता है। जिससे लाभ अर्जित करके एक नंबर के काजू बादाम और बरसात में भी महंगे आम खाते हो। इसी तरह ऊंची नस्ल का कुत्ता पालकर अपनी ठसन दिखाते हो। और बताऊं भैया! जिस इनकम टैक्स का रोना रो रहे हो न वो भी आप सरकार की छूट की लिमिट तक ही दिखाते हो। पांच एकड़ खेती की भूमि लेकर उससे खेती का लाभ बताकर वहां अपनी दुकान की आय को समायोजित कर लेते हो। आज सरकार सात लाख तक की आय में छूट देती है इसलिये सात लाख आय दिखाते हो। इसके पहले दो लाख की छूट में दो लाख और पांच लाख की छूट में पांच लाख दिखाते थे।
आपने जो ये समाजसेवक का चोला ओढ़ रखा है वह भी झूठा है। आपको टैक्स देने में इसलिये कष्ट हो रहा है कि दीन हीनों को निशुल्क अनाज दिया जा रहा है। उनको घर बनवाने के हेतु सरकार द्वारा धन दिया जा रहा है। आपको ये सहन नहीं हो रहा है। आप उनसे अपनी तुलना करते हो कि हमको क्यों सरकार कुछ भी निशुल्क नहीं देती है। जबकि आप मात्र टैक्स देने वाले का ढोंग कर रहे हो। खाता बही भर काले करते हो।
पिछले बरस का घटना स्मरण में है न आपको, जब आप सिंगापुर गये थे तब आपने वहां से आकर क्या बताया था। आपने बताया था वहां सड़कें एकदम चिकनी और बिना गढ्ढे वाली हैं। वहां के अस्पताल एक साफ सुथरे हैं। तो क्या वहां सरकार के पास जादू की छड़ी है जिससे वो ये सब कर देती है ? पेट्रोल महंगा करते ही, हाय रे हाय पेट्रोल महंगा कर दिया, प्राण ले लेगा ये तो। बरसात में खेतों में पानी भरने के कारण पौधे सड़ जाते हैं उस समय भी सस्ता टमाटर चाहिये, सस्ता आलू और सस्ता अदरक चाहिये। अत्याधिक गर्मी में सस्ती धनिया चाहिये जबकि जानते हो कि भीषण गर्मी में छोटे पौधे तेजी से सूख कर मरने लगते हैं। तात्पर्य यह है कि आपको सदैव सबकुछ एक ही मूल्य पर चाहिये मात्र आपकी दुकान का सामान भर महंगा होना चाहिये ताकि आपका लाभ निरंतर बढ़ता रहे।’
इतना कहकर राजू एकाएक चुपचाप हो गया। और सुनील की ओर देखने लगा। सुनील उसे ही देख रहा था। सुनील उसके चुप होते ही बोला।
’यदि हम ग्राहक से टैक्स लेकर दे रहे हैं तब भी तो ग्राहक यानी आमजनों को तो कष्ट है न। उनको टैक्स देना पड़ रहा है उनको महंगा खरीदना पड़ रहा है। उनके लिये कौन विचार करेगा ? उनके हित का कौन सोचेगा ?’
सुनील के मुख पर श्रेष्ठ दार्शनिक के आवभाव पैदा हो गये थे। बस मात्र दार्शनिकों के जैसा तेज भर न था।
’भैया! कम से कम आप उनकी चिंता में दुबले न हों। उनकी चिंता करने के लिये ही तो जीएसटी लाया गया है। आप जैसे कुछ व्यापारियों ने आमजन से टैक्स तो मनमानी लूटा परन्तु सरकार की तिजोरी के स्थान पर अपनी तिजोरी में भर लिया। और रही देश के विकास में आपके योगदान की बात तो भैया आपके मात्र पैन नंबर ले लेने और टैक्स की खानापूर्ति कर लेने से कुछ नहीं होता है। जो बड़े बड़े पूंजीपति और उद्योगपति हैं जिनसे बहुत उत्पादन होता है उनसे प्राप्त टैक्स से आय होती है। पेट्रोल से आय होती है, उस आय से ही ये सड़कें और रेल का निर्माण हो रहा है। जिसमें आपकी कार फिसलती हुयी चलती है। अब ये न कहना कि फास्टेग से प्राप्त लाभ का तब सरकार क्या करती है। मुझे पता है कि आप सबकुछ अच्छी तरह समझते हैं। परन्तु टैक्स चोरी की अवैध सुरंग के बंद होने से आपका स्वास्थ्य गड़बड़ है। आप भी कभी उन बिके हुये पत्रकारों के जैसे बातें करते हैं तो कभी राजनीति के गंदे नाले में भी डुबकी लगाने लगते हैं। अंत में भैया! एक बात और, पेट्रोल पर टैक्स लगाने से देश का प्रत्येक व्यक्ति देश के विकास में योगदान देने लगता है। इसलिये यह न कहना कि मात्र आप ही टैक्स देते हो जिससे ये देश चल पा रहा है।’
सुनील चुपचाप अपने मन में तर्क ढूंढने में लगा रहा तब तक राजू समाचार पत्र उठाकर दुबारा पढ़ने लगा।