क्यों
समुद्र की लहरें किनारों पर टकरा जरूर रहीं थीं परन्तु उनसे चोट का अहसास अनुभव नहीं हो रहा था। राजन अपने महंगे जूतों के खराब हो जाने से बेखबर वहीं खड़ा था। आसपास खड़े और गुजर रहे लोग उसे मुड़ मुड़ कर देख रहे थे। पर वह इस सब से एकदम अनभिज्ञ अपनी सोच में ही डूबा था। एक साधु की तरह जो दुनिया में रहकर भी दुनिया से बेखबर!
इस बार जरा बड़ी सी लहर आ रही थी लोग किनारों से और किनारे आ रहे थे। तभी एक ने राजन का हाथ पकड़ कर पीछे की ओर खींच लिया।
राजन चौंक पड़ा। और पल भर में ही होश में आ गया था। रेत से बाहर अब वह सड़क पर आ गया था। सीमेंट की बेंच में बैठ गया। अपने सफेद जूतों और सफेद पेंट को देखा, वो रेत और समुद्री पानी से सने थे।
वह रीटा के व्यवहार से उपजे सदमे से बाहर आने की कोशिश में लगा था। आज चौथा दिन था। किस कदर उसने अपने हाथ से उसका हाथ झटक दिया था। जबकि उसने रीटा को………। उसे समझ ही नहीं आया कि उसने आखिर रीटा के साथ किया ही क्या था।
’ऐ भाई! इस कड़कती धूप में कड़क कर पापड़ की तरह टूट जायेगा। कब से यहां पागलों की तरह बैठा है। चल उठ भी जा।’
वह पीछे आती आवाज और कंधे पर रखे हाथ से फिर एक बार चौंक उठा। अबकी वह अपने जेब से कार की चाबी निकाल कर उसका बटन दबाया और उसकी कार की लाइट ने जल कर और टांय-टांय की आवाज करके अपना स्थान बता दिया।
कुछ ही मिनटों में वह अपने घर पर था। कपड़े उतार कर बाथरूम के हेंगर में टांग कर वह फव्वारे में नहाने लगा।
टॉवेल से अपने बदन को पोंछ कर जैसे ही बाहर आया रेवती ने कॉॅफी का कप सामने रख दिया।
एक घूंट कॉफी भीतर जाते ही वह पुराने ख्यालों में डूब गया।
पार्क की बेंच पर बैठा था वह कॉफी शॉप से कॉफी लेकर आया था। चुस्कियों में पी रहा था। दूसरे हाथ में आज का अखबार था। टाइम स्क्वायर में भीड़ ने एक बत्तख को बचाया। जाने कहां से वह बत्तख बीच सड़क पर आ गयी थी। उसे बचाने के लिये सभी ट्राफिक लाइटें एक साथ लाल कर दी गयीं थी। बेहद आराम से उस बत्तख ने सड़क पार की।
खबर पढ़कर वह मुस्कराया। और एक घूंट भीतर पहुंचाकर सोचने लगा। अजीब लोग हैं इस विदेशी धरती के और अजीब इनकी दया भी है। बगैर मांसाहार के कुछ भी नहीं खाते पीते हैं सुबह से लेकर रात तक की उपयोग की वस्तुएं भी बगैर जीवहत्या की नहीं होती हैं। और एक बत्तख को बचाने के लिये इतना तमाशा!
तभी उसे लगा उसके चेहरे को कोई बड़े ही ध्यान से देख रहा है। वह अपन बाजू में देखा। वह चौंक उठा। उसे पता ही न चला कि उसके बगल में वह युवती कब आकर बैठ गयी थी।
नजरें मिलते ही वह भी चौंक गयी। उसके मुंह से निकला ’माफ कीजिए! मैं आपका अखबार आपके साथ पढ़ने लगी थी।’
’अरे! आप इंडियन हैं!’ उसके मुंह से भी हिन्दी में ही उत्तर निकला।
’हां, आप भी ?’
’हां!’
’चलिए इस विदेश में कोई तो अपना मिला।’ उसने कहा। ’मेरा नाम रीटा है।’ और अपना हाथ आगे बढ़ाया हाथ मिलाने के लिये।
’मैं राजन हूं। यहां गूगल में हूं। यहीं पास की सनलेक कालोनी की पहली गली में रहता हूं।’
’अच्छा! मैं तो अभी जॉब के लिये ही यहां आयी हूं।’
’बहुत मुश्किल हो गया है यहां जॉब मिलना। इंडिया जैसी ही पोजिशन हो गयी है यहां। अब तो अंग्रेज भी पढ़ने लिखने लगे हैं।’ कह कर राजन हंसने लगा। वह भी उसका साथ देने लगी।
’पर एक बात है यहां। कोई डर नहीं, कोई भय नहीं आराम से आओ जाओ, आराम से रहो। घर भी किराये पर देने वाले ज्यादा पूछताछ नहीं करते।’ रीटा सुकून की सांस लेकर बोली। ’ऐसी नैसर्गिक सुंदरता साफ सफाई अपने यहां एक सपना है। देखे न यह पार्क कितना सुंदर है। ये पीले रंग के फूल कितने प्यारे लग रहे हैं। इनको तोड़ने वाला कोई नहीं है। अपने यहां तो ऐसा पेड़ होता तो सुबह चार बजे ही भगवान की पूजा में ये सारे फूल शहीद हो जाते।’ यह कहती हुई रीटा जोर से हंस पड़ी।
पास से गुजरता एक युवा उसे देखकर मुस्काया और और अपने सर को एक साइड झुका कर अपनी भौंहों को टेढ़ा कर उसकी हंसी का समर्थन किया।
खुली हवा अपने भीतर पूरी की पूरी समो लेना चाहती थी, राजन ऐसा महसूस कर रहा था। उसे भी ऐसा लग रहा था कि वाकय में बेहद खुली हवा बह रही है इस विदेशी धरती में। जात पात और स्त्री पुरूष के भेद ही नहंी हैं। गरीब अमीर वाला फंडा भी यहां नहीं चलता है।
’चलो, आप भी कॉफी पी लो।’ राजन ने उससे कहा। वह अगले ही पल खड़ी हो गयी। ’क्यों नहीं।’
भीड़ न थी कॉफी शॉप में मोबाइल से स्केन करके पेमेंट देता हुआ राजन दूसरे हाथ से कॉफी का कप रीटा को पकड़ा दिया। ’बिस्किट लोगी क्या ?’
अबकी बार भी रीटा ने कहा ’क्यों नहीं।’
उसी ब्रेंच पर वे बैठ गये।
’नौकरी का क्या करोगी ? यहां तो इस वक्त नौकरी बेहद मुश्किल काम है।’
’कोई तो होगा जो मुझे कहीं न कहीं फिट कर देगा।’ उसके मुस्कराते चेहरे पर गजब का कान्फीडेंस था।
अबकी बार राजन ने उसे बड़े ही ध्यान से देखा। गौरवर्णा रीटा में एक हसीन खिंचाव था। सामान्य मुखाकृति के बावजूद। चेहरे के साथ ही भरापूरा बदन आम लड़कियों से अलग कर रहा था।
’अभी आपका खर्च मतलब रूम कर किराया और खाने का…..!’ राजन एकाएक चिंतित सा हो गया था।
’अरे! कभी आपने खिला दिया तो कभी किसी और ने। घर से लाया हुआ पैसा तो फटाक से उड़ गया।’ वह ये सब बताती हुयी भी मुस्करा रही थी। राजन चकित सा उसकी बात सुन रहा था।
’रहने के लिये एक रूम लिया था। वह भी अब मुझसे उकता गया है। मैंने उससे कहा भी कि नौकरी मिलते ही…। पर उसमें धैर्य की कमी है।;
’तुम्हारी एजुकेशन क्या है ?’
राजन कॉफी देर तक उससे पूछताछ करता रहा। अपने जुगाड़ से नौकरियों का मन ही मन में गुणा भाग करता रहा।
उसने अंतिम घूंट पीने के लिये कॉफी का कप मुंह में लगाया तो मात्र हवा के अलावा कुछ न गया। वह अपने कप में झांककर देखा। कप के तले पर बैठी मक्खी मानों उसे देखकर मुस्कायी।
’ठीक है मैं चलता हूं। नौकरी के संबंध में जानकारी मिलने पर जरूर बताउंगा।
वह भी खड़ी होकर झुककर धन्यवाद ज्ञापित की।
राजन को जाता हुआ देखने लगी।
रीटा उसके जाते ही उदास महसूस करने लगी। पर जाने क्यों उसे लग रहा था कि अबकी बार उसकी किस्मत साथ दे देगी। उसने आसमान की ओर देखकर उपरवाले को धन्यवाद दे दिया एडवांस में ही।
कहीं दूर तभी गिरजाघर में घंटा बजा।
वह वहीं पार्क की उसी बें्रच में पसर कर लेट गयी।
आसमान में चांद और तारों की छुपाछुपायी चल रही थी। और यह सब चल रहा था बादलों के सहारे।
आखिर आसमान में तारों को निगलने सूरज आ ही गया।
राजन ने अंगड़ाई लेकर बिस्तर छोड़ना चाहा। परन्तु मन ही नहीं कर रहा था। रात भर सोया ही कहां था। वह आकर्षक चेहरा अब तक आंखों में किसी अदृश्य कील से ठुक सा गया था।
वह चिंताग्रस्त था सारी रात रीटा के लिये। इस अनजान देश में एक जवान सुंदर लड़की का यूं भटकना उसे भयंकर तनाव दे रहा था। पर उसकी बुद्धि काम नहीं कर पा रही थी कि वह करे तो क्या करे।
’उसे अपने साथ ले आना था। मैंने उस वक्त यह न सोच कर उस बेचारी के प्रति अत्याचार किया है।’ वह बड़बड़ाता हुआ उठ बैठा।
’अरे! ओह! मैंने तो उसका मोबाइल नंबर और पता ही नहीं मांगा।’ राजन अपने सर पर जोर से हाथ मारता हुआ बोला। और पुनः बिस्तर पर बैठ गया। अचानक अनिष्ट की आशंका से मन व्यथित हो गया।
खैर! ऑफिस तो जाना ही था। इसलिए तैयार होना जरूरी था। लगभग प्रत्येक काम करते हुये उसने घड़ी देखी। इस बीच उसने नहाने के साथ ही साथ ब्रेड बटर का तगड़ा नाश्ता गले से उदर में उतार लिया था। अंत में गले पर टाई बांधकर ऑफिस बैग हाथ में लिया और लगभग दरवाजा तोड़कर बाहर निकला।
वह दरवाजा खोलते ही ठिठक गया।
सामने रीटा खड़ी थी!
उसके हाथ में एक सूटकेस और दूसरे हाथ में एक बड़ा सा बैग था। टाइट टीशर्ट और हाफ पेंट उसे पूरा विदेशी बता रही थी। हल्की हवा में उसके घुंघराले उड़ते बाल, कुछ चेहरे पर भी रह रह कर फैल रहे थे। राजन उसे एकटक देखता ही रह गया। रीटा के चेहरे पर छायी बदहवासी ने करवट ली और मुस्कराहट में बदल गयी।
’आप यूं ही दरवाजे पर खड़े रहेंगे या फिर मुझे भीतर आने को भी कहेंगे!’ आखिर रीटा ने कहा।
मानों राजन नींद से जागा। ’ओ, हां, मैं तो तुमको देखकर भूल ही गया था।’ उसके मुंह से बेसाख्ता निकला। फिर वह खुद ही शरमा गया।
’सॉरी! मैं कुछ ज्यादा ही कह गया।’ उसने रीटा के कंधे पर हाथ रखकर उससे माफी मांगी। और उसके हाथों से सारा सामान ले लिया। कमरे के भीतर सामान लेकर जाते हुये बोला ’आओ भीतर! आराम से, किसी प्रकार का कोई संकोच मत करो।’
कमरे में आकर रीटा राजन को धन्यवाद भरी नजरों से देख रही थी। फिर एकाएक आगे बढ़कर उसके गले लग गई।
सूरज लटक गया। हवाएं थम गयीं। वक्त रूक सा गया।
’मैं तो यहां आकर फंस ही गयी थी। मुझे यकीन है कि मुझे जॉब मिलेगी ही, पर यह नहीं मालूम कि कब मिलेगी। घर से लाये रूपये खत्म होने को हैं। इस देश से वापस अपने देश जाना भी मुश्किल है। मुझे माफ कर दो मैं आपके गले पड़ गयी। न आप मुझे अच्छी तरह जानते हैं, न ही आपका मेरे बारे में क्या विचार है, मैं नहीं जानती, पर मैं इसी भरोसे से आयी थी कि आप मेरे ही देश के हैं मेरी मदद जरूर करेंगे। जो देश करोड़ों भिखारियों को जीवन भर पालता है वो एक मुझ जैसी वक्त की मारी को भी पालेगा ही। अब आपकी मर्जी है कि मुझे जाने को कह दें या फिर पनाह दे दें।’
कपड़े पहनती हुई रीटा ने एक ही सांस में कहा।
राजन उसे एकटक देख ही रहा था।
तभी घड़ी चौक की घड़ी ने ग्यारह बजने की सूचना दी।
अब कहीं जाकर दुनिया वास्तविक दुनिया में बदली।
’तुम रहो आराम से जब तक नौकरी नहीं लगती। चाहो तो उसके बाद भी रह सकती हो। मैं इतने बड़े मकान में अकेला रह कर बोर हो जाता हूं।’ कहता हुआ राजन आइने में देखकर टाई ठीक करने लगा। ’और हां, मैं दोपहर को लंच में नहीं आता हूं। तुम कुछ बना कर खा लेना। मैं सीधा शाम को छह बजे मिलूंगा।’ बैग लेकर तेजी से राजन निकल गया।
रीटा ने देखा फ्लैट के सामने लगे पेड़ के फूल भी झड़ गये और पत्ते भी। पेड़ के नीचे पत्तों का ढेर लगा था। उसने ठंडी सांस ली। चार माह से ज्यादा हो गये थे राजन के यहां रहते हुये। पिछले तीन दिनों से वह तेज बुखार से पीड़ित थी। आज कुछ ठीक लग रहा था।
तभी राजन एक गिलास में उसके लिये जूस लेकर आया। रीटा उसे देखकर मुस्काई।
’लो जूस पी लो, अच्छा लगेगा।’
प्रत्युत्तर में उसने राजन का हाथ पकड़ लिया। उसकी आंखों से आंसू टपक पड़े।
’इस अनजान शहर में….. अनजान लड़की का…. इतना साथ दे रहे हो….!’ उसके मुंह से निकल पड़ा।
’क्या अब भी अनजान हो!’ राजन ने उसकी आंखों में आंखे डालकर कहा। रीटा ने उसे खींचकर गले लगा लिया।
’अभी छोड़ो, आज अच्छा लग रहा है तुमको, शाम को किसी इंंिडयन होटल चलते हैं खाना खाने। आज फुल पार्टी। लाइफ इन्जॉय करते हैं।’ राजन ने कहा। रीटा शरमा कर उसकी गोद में सिमट आयी।
’अच्छा सुनो, कल से तो जाओगी न ऑफिस ? कि आज फिर कल के लिये छुट्टी की बात करूं ?’
’जाउंगी, यहां घर में पड़े पड़े दम घुटता है। ऑफिस जाउंगी तो दिन भी कट जायेगा और तबीयत भी ठीक लगेगी।’ रीटा उठ कर बैठती हुई बोली।
’तो ठीक है शाम को तैयार रहना……होटल में खाना खाने के लिये।’ राजन ने कहा।
राजन के कहने के अंदाज से वह फिर एक बार शरमा गयी।
राजन ऑफिस चला गया और रीटा अपने उलझे बालों को समेट कर बड़ी सी क्लिप से बांध दी। सामने की दीवार पर लगे आइने में वह खुद को देख रही थी। उसका रंग और रूप बेहद निखर आया था इन दिनों।
वह सोचने लगी अगर राजन न मिलता तो उसका क्या होता। कितनी मदद की उसने। नौकरी भी लगवा दी और अपने घर में रहने भी दिया। वरना इस कांक्रीट के बियावन में भटक गयी होती। कितना भला और मददगार स्वभाव है राजन का! वह उसे याद कर और आइने में खुद को देखकर शरमा गयी।
पहले अखबार वाला आया फिर दूध वाला और अंत में ब्रेड वाला। धीरे धीरे सभी काम करते हुये अचानक उसे उबकाई सी आई। बेसिन में जाकर ’ओ ओ’ करने लगी। निकला कुछ नहीं पर खून के दौरे ने सारा दिमाग हिला दिया। वह कुछ पल एक ही जगह पर खड़ी रहने के बाद पुनः बिस्तर पर आ गयी।
ब्रेड और बटर के साथ फ्रूट पीस लगाकर खाने लगी।
बाहर वासंती हवाएं चल रहीं थी। वह उड़ते पत्तों को देखकर सोच में बैठी रही।
सारा दिन यूं ही बीत गया पंछियों ने अंधेरी होती शाम में उड़कर जाते हुये बता दिया था।
अब रीटा को तैयार होना था। वह कई रंग के कपड़ों को बदन पर डाल डाल कर खुद को देखती रही।
तभी घंटी बजी दरवाजे पर राजन आ गया था।
’अरे! अब तक तुम तैयार नहीं हुईं!’
’तुम भी तो अभी फ्रेश होओगे, तब तक मैं तैयार हो ही जाउंगी।’ वह हंस कर बोली। ’और अगर कुछ ज्यादा ही जल्दी है तो आ जाओ तुम ही मुझे तैयार कर दो।’ ऐसा कह कर अपने रूम का दरवाजा बंद कर ली।
’अब चलो भी, उस होटल में सारी सीटें जल्दी से भर जाती हैं। फिर भटकना न पड़े।
’आई!’ की आवाज के साथ अबकी वह आ भी गयी थी।
राजन उसे एकटक देखता ही रह गया।
रीटा अपने पलकें बार झपकाते हुये उसकी आंखों में झांकती हुयी देखने लगी।
स्लीवलेस ब्लाउज, पतली लाल साड़ी और सुर्ख होंठ, मुड़े मुड़े से बालों की लटें जो चेहरे पर लहरा रहीं थीं वो एक अच्छे भले इंसान के प्राण लेने के लिये काफी थीं।
डांस फ्लोर पर रीटा की कमर पर हाथ रख कर वह उसके कानों में फुसफुसाया -’कितनी नीचे से साड़ी पहनी हो तुम! पहनना आता है न! या फिर यूं ही डाल ली बदन पर।’
वह उसके होंठों के करीब आकर फुसफुसायी ’मैंने तो कहा था आपको कि आकर मुझे तैयार कर दो। तुम ही न आये। तुम्हारी गलती है।’ कहकर मुस्काई। मानों बिजली सी चमक उठी।
तभी हॉल की लाइट जल गयी। अब खाने का वक्त हो चुका था। सभी अपनी अपनी टेबल पर पहुंच गये थे। हॉल में काफी कम आवाज में अंग्रेजी गीत बज रहा था।
’सुनो! मैं तुम्हें एक बताना चाहती थी!’
’कहो! कोई बात कहने के लिये क्या यूं पूछना पड़ता है! जो कहना है कहो।’ राजन ने रीटा को अपनी बात कहने की यूं परमीशन दी।
’मैंने एबार्शन की गोलियां ली हैं आज!’ कहते हुए चेहरे पर अजीब तरह के भाव थे। मुस्कराहट भी थी तो शर्म भी थी।
एक पल को मानो हाल में बजता गीत संगीत बंद सा हो गया। अगले ही पल शोर की तरह लगने लगा।
राजन अपनी उंगलियों से एक फिंगर चिप्स उठाकर मुंह में डाला और फिर बोला।
’ठीक किया तुमने! हमारे जीवन में आगे बढ़ने के लिये इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं।’
अचानक संगीत की मधुरता बढ़ गयी थी।
’आज का भोजन रमेश जी मद्रास वालों की ओर आप सभी के लिये खास सरप्राइज भेंट है। आज उनको यहां इस धरती पर आये हुये पच्चीस बरस पूरे हो चुके हैं। उनकी इस सिल्वर जुबली पर बहुत बहुत बधाई। भोजन के पश्चात अब उनके सम्मान में एक बार और डांस हो जाये।’ हाल में आवाज गूंज रही थी परन्तु कहने वाला दिखायी नहीं दे रहा था।
राजन के कंधे पर अपना सर रखे रीटा लगातार झूम रही थी। उसने अनुभव किया कि राजन भी मस्त होकर आज की रात का आनंद ले रहा था।
जाने कब सुबह ही हो गयी। आंखें भारी, सर भारी और टूटता बदन।
दोनों ने एक दूसरे को देखा और मुस्कराने के बाद एक साथ कहा-’आज तो छुट्टी!’
और फिर रजाई ओढ़ लिये।
मोबाइल लगातार बज रहा था। आखिरकार राजन ने अनमने ढंग से उठकर उसे उठा ही लिया।
बगैर आंखें खोले बगैर नंबर देखे उसने कहा-’हलो!’
’राजन!’
आवाज कानों में पड़ते ही वह एकाएक अलर्ट होकर बैठ गया। साथ ही अपने बदन पर कपड़े डालने लगा।
’राजन! मां बहुत बीमार है। कभी भी…..! जितनी जल्दी हो आ सको तो आ जाओ।’ बड़े भाई का फोन था।
’जी! कोशिश करता हूं आज के आज!’
इसके आगे पूछने और जानने के लिये कुछ बचा ही न था क्योंकि उसे पता था कि मा बहुत दिनों से बिस्तर पर ही है। और शायद ही आज जीवित हो।
वह उठकर तुरंत ही मोबाइल में आज की फ्लाइट देखने लगा। चेक करते हुये उसकी आंखों में खुशी झलक उठी यानी टीकट थी। वह लगभग दौड़कर नहाने घुस गया।
रीटा भी उठ चुकी थी और सबकुछ सुन भी लिया था समझ भी गयी थी।
’कब तक आ जाओगे ?’ उसने राजन से चिपककर पूछा।
’पंद्रह दिन तो लगेंगे ही।’
’पंद्रह दिन ?’
’समय तो देना होता है न। जीते जी न दिया तो मरने के बाद समय देना ही होगा।’
’…..!’
’तीन बजे निकलना है।’ अपनी घड़ी देखता हुआ जवाब दिया राजन।
’मैं तैयारी करके रखती हूं तुम ऑफिस जाकर छुट्टी लेने का काम करो।’ कहती हुई रीटा भी वाशरूम चली गयी।
जाने कब तक वह उड़ चुकी फ्लाइट को आसमान में देखती रही। कुछ पल ही नहीं कट रहे हैं तो पंद्रह दिनों का सोचकर ही अधीरता सी आ गयी। मन एकाएक उदास हो गया। पार्किंग से अपनी कार निकाल कर ऑफिस की ओर चल पड़ी। साफ चिकनी सड़क पर उसके मन की तरह कार भी फिसलती जा रही थी।
जैसा कि राजन को आशंका थी वही हुआ था। मां का अंतिम संस्कार हो चुका था। उसे मात्र मां की हड्डियां ही चुनने को मिलीं। उनको लेकर घर में रखा था आलमीरे में।
’देख छोटे! अब तुझे यहीं रहना होगा। यहां की प्रापर्टी और बिजनेस संभालना मुझे बेहद कठीन महसूस होता है। मैं कई बार कहना चाहता था परन्तु कह नहीं पाता था। आज मां के बहाने ही सही तुझसे कह रहा हूं। क्या जरूरत है नौकरी की। अपने यहां कुछ कम है क्या ? विचार कर ले और रूक जा।’ यह कहकर भैया ने उसके दोनों कंधे दबा दिये और गले से लगा लिया।
आज बीसवां दिन था। भैया जीत गये थे। राजन ने रीटा को फोन लगाया।
’अब मैं नहीं आ पाउंगा, यहीं भारत में ही रूकूंगा। तुम वहां आराम से मेरे क्वार्टर में रहो। मैं अपनी कंपनी में कह कर तुम्हारे लिए सिफारिश कर देता हूं वहीं तुम्हारी जॉब भी लग जाएगी।’
राजन की ठण्डी सी आवाज ने रीटा को एकाएक बेजान सा कर दिया। वह समझ ही नहीं पा रही थी कि अब करे तो करे क्या।
आज राजन का फोन आने के बाद से वह आज घर के सभी खिड़की दरवाजे कई बार चेक कर चुकी थी। सारे दरवाजे उसने ही बंद किये थे।
बेड पर राजन के कपड़ों का ढेर लगा हुआ था। वह उसको एक एक करके मुंह से लगाती और फिर सिसक उठती।
बड़ी पोस्ट की बड़ी जिम्मेदारियों ने कुछ भी सोचने का मौका ही न छोड़ा था। फुरसत में राजन के बारे में सोचने की सोच एक सोच बन कर ही रह गयी थी।
सामने की खिड़की में देखा वह भरापूरा पेड़ अपने पत्तों और फूलों में बारिश की बूंदों को सजा रखा था जो सूरज की रोशनी में मोतियों की माला लग रहा था।
पूरे 180 दिन बीत चुके थे यानी छह माह। वह ऑफिस की टेबल पर बैठी सोच रही थी कि इतनी आसानी से उसे राजन की जगह कैसे मिल गयी। अपनी मेहनत और लगन से लगातार इतने कम दिनों में काफी उंचाई तक पहुंच भी गयी थी।
उसने मोबाइल खोलकर एक गुलाब का फूल राजन के नंबर पर भेजा। राजन के साथ फोन में बात की जगह व्हाटएप्प पर बात होते होते अब फारवर्डेड मैसेज तक बात आ चुकी थी।
अगले ही पल राजन ने भी गुलदस्ता भेज दिया।
रीटा को मेसेज का जवाब भेजने के बाद अपने ग्रामीण शैली के मकान में बने ऑफिस को देखकर राजन बेहद खुश नजर आ रहा था। ग्रामीण परिवेश में ग्राम रोजगार उसका सपना था। राजन जैविक खेती का बड़ा प्लॉन बनाकर उस पर जी जान से जुटा था। उसके हाथ में भगवान ने सफलता ही सफलता लिख भेजी थी। तभी उसके काम धड़ाधड़ हो भी रहे थे। लोन से लेकर जमीनी काम लगभग पूरा हो चुका था।
पहली यूनिट का उद्घाटन होने को था। मेहमानों के आने का समय हो रहा था। वह इंतजार में अपने ऑफिस के बाहर ही खड़ा था। तभी पहली धूल उड़ाती एक काले रंग की कार वहां आकर रूकी। दरवाजा खुला और उससे जो निकला उसे देखकर राजन के होश उड़ गये।
उसी लाल रंग की साड़ी में लिपटी रीटा उसके घर पहुंची थी।
राजन उसे देखकर सुधबुध खो बैठा। वह समझ ही नहीं पा रहा था कि करे तो क्या करे। वह भैया भाभी के साथ होने के कारण आगे बढ़कर कुछ कह भी नहीं पा रहा था।
’भैया! यह रीटा है, मैं जिस कंपनी में काम करता था वहीं यह भी काम करती थी। वहां ही मुलाकात हुयी थी।’ वह खुद रीटा से मिलने की जगह भैया से रीटा को मिलवा दिया।
भैया ने उसे नमस्ते कहा। भाभी ने भी मुस्करा कर नमस्ते किया। और भैया भाभी दोनों वहां से चले गये।
’राजन! मैं अब हमेशा के लिये इंडिया आ गयी हूं।’ आखिर रीटा ने उसके पास आकर कहा।
’सच में!’ उसने आश्चर्य से रीटा से पूछा। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जिन्दगी रीटा से यूं फिर से उन दोनों की मुलाकात करवायेगी।
’हां, हमारी कंपनी का आउटलेट यहां खुलने वाला है। मैं इस प्रोजेक्ट की हेड हूं।’
उसके चेहरे से झलकती खुशी को देखकर राजन भी बेहद खुश लग रहा था। रीटा उसे अपने प्रोजेक्ट के बारे में लगातार बता रही थी। इस बीच भाभी उन दोनों के लिये चाय नाश्ता ले आयी थी।
’वैसे तुम्हारा प्रोजेक्ट लगना कहां है ?’ चाय का कप हाथ में लेकर उसने रीटा से पूछा।
’वही तो तुमसे पूछने आयी हूं कि कहां बनाया जाये उसका ऑफिस! तुम सजेस्ट करो। अगर तुम चाहो तो तुम्हारे इसी शहर में ही बना सकते हैं। तुम्हारे इसी घर के आसपास!’ रीटा खुश होकर बोली।
’जैसा तुम ठीक समझो। मुझे क्या करना होगा।’
’जगह की व्यवस्था करवा दो। बस!’
’वो हमारे ही कई एकड़ खाली पड़े हैं।’
’बस हो गया काम अपना!’ रीटा चहक कर बोली।
तभी दूसरी तीसरी कार एक साथ आयी। मेहमान आ गये थे।
’आज मेरी नई फर्म का इनआगरेशन है। मेहमान आ रहे हैं पहले ये निपटा लें फिर बातें करते हैं। आओ तुम भी साथ रहो।’ राजन ने रीटा से कहा।
’वाई नॉट! मैं तुम्हारे साथ ही हूं।’ कह कर वह मुस्कराई। उसे देखकर राजन भी मुस्कराने लगा।
जोर शोर से उद्धाटन हो गया। कई नेतानुमा लोग भी आये थे। बैंक वाले तो कुछ व्यापारी और राजन के दोस्तों का जमघट लगा था। सभी के बीच अचानक राजन रीटा का हाथ पकड़कर पहुंच गया।
’मैं आप लोगों को बताना चाहूंगा कि ये हैं मिस रीटा! मैं जिस विदेशी कंपनी में था, आज ये उसी कंपनी की हेड बनकर यहां भारत में आयीं हैं। यहां वे उस कंपनी का आटलेट शुरू करने वाली हैं। और ये हैं आज के कार्यक्रम की अचानक पहुंची चीफ गेस्ट!’
सबने तालियां बजाकर स्वागत किया। ऑफिस गेट में बंधीं लाल रिबन को रीटा ने मुस्कराते हुये काटा। फिर एकबार तालियों से वातावरण गूंज उठा।
’कृपया ध्यान दें आप सभी! इस अवसर मैं आप सभी को बताना चाहूंगी कि मैं जिस कंपनी का आउटलेट यहां खोलने वाली हूं उसका सीइओ मिस्टर राजन को बनाना चाहती हूं।’
तालियां जो रूकी थीं वो फिर कॉफी देर तक बजती रहीं।
खाने पीने और शोर शराबे में सब जुट गये। हर कोई एक दूसरे से मिल लेना चाहता था, बात कर लेना चाहता था।
कब शाम हो गयी पता ही न चला। विदाई होने लगी सबकी। रीटा भी खड़ी हो गयी चलने को।
’मुझे भी विदा करो राजन! मैं भी नये प्रोजेक्ट का काम शुरू करना चाहती हूं।’ उसने मुस्करा कर कहा।
’तुम कहां जाओगी। यहीं रूको।’ उसने आस पास चोर नजरों से देखकर धीरे से कहा।
’ये इंडिया है इंडिया, राजन! वह विदेशी धरती नहीं।’ मुस्करा कर रीटा बोली।
तब तक राजन ने कनफर्म कर लिया था कि आसपास भाभी भैया नहीं हैं। वह झट से रीटा का हाथ पकड़ लिया और कह उठा।
’यहीं रूक जाओ।’
रीटा ने अपना हाथ झटके से छुड़ा लिया। ’मिस्टर राजन!’ होश में तो हो न! ये इस देश की संस्कृति नहीं है। इस देश में इस देश के संस्कारों के हिसाब से जीना होगा। वह विदेश था, याद रखो! समझे! अभी समझ गये और आने वाले वक्त में भी ये याद रखना! बार बार यूं हाथ पकड़ना यहां का कल्चर नहीं है!’
तब तक उसकी कार ड्रायवर पास ले आया था। वह दरवाजा खोल कर बैठी और अगले ही पहले राजन के सामने से निकल गयी।
राजन किंकर्तव्यमूढ़ सा खड़ा रहा।
सारी खुशी सारा उत्साह, नयी कंपनी का जोश सबकुछ एकाएक मर सा गया।
’अरे वह चली गयी ? रोकना था उसे यहीं।’ भाभी मुस्कराती हुई बोली।
वह भाभी की ओर ध्यान से देखने लगा। उसके एकाएक मलीन हुये चेहरे को देख भाभी की समझ में आ गया कि कुछ तो हुआ है। वह भीतर चली गयी।
वह अपनी कार उठाया और सीधे पहुंच गया समुंदर के पास।
कॉफी का कप नीचे रखकर वह पुनः बड़बड़ाने लगा आखिर मैंने उसका हाथ पकड़कर कौन सा गुनाह कर दिया था।
विदेश में इतनी सहजता और यहां इतनी दुर्लभता….
वहां अपनी मर्जी से सर्वस्व न्यौछावर और यहां मेरे छूने मात्र से एलर्जी….न…न ये बात न होगी! तब क्या…
शायद वह बड़ी कंपनी की प्रोजेक्ट हेड बन गयी है इसलिये……
शायद मैं अब उसके लिये अदना सा हूं इसलिये……..
शायद वो मेरे बारे में वहां जानकारी निकाली हो फिर…..
शायद मेरा यूज करके उसने विदेश में अपने लिये जुगाड़ जमाया…….
शायद अपने बदन के सहारे मेरा यूज किया……
शायद…..
इस तरह के हजारों प्रश्न उसके जेहन में कौंध रहे थे जिनको उसका मन मानने को तैयार ही नहीं हो रहा था।