यात्रा संस्मरण-त्रिलोक महावर

अंडमान निकोबार

हवाई जहाज की खिड़की से झांकने पर नीचे अथाह समंदर, जिसमें मगरमच्छ की तरह अपने बच्चों के साथ पसरा हुआ, अंडमान निकोबार द्वीपसमूह। बहुत ही सुंदर। पहली ही नजर में मैं मुग्ध हो गया। दूर तक हरे हरे जंगल। दूर तक फैले हुए समुद्री तट। कहीं-कहीं हरे हरे मैदान तो कहीं हरी-भरी पहाड़ियां यहां की विशेषताएं हैं। ऐसा लग रहा था 90 प्रतिशत से ज्यादा इलाका वनों से ढका हुआ है। वास्तव में यह प्रकृति का बहुत खूबसूरत तोहफा है।
हमारा जहाज पोर्ट ब्लेयर में उतरा, राजधानी में। जलयान द्वारा भी यहां आया जा सकता है।
हमें बताया गया की अंडमान निकोबार द्वीप समूहों की तटरेखा लगभग 2000 किलोमीटर लंबी है। करीब 8249 वर्ग किलोमीटर में इस भूभाग का विस्तार है। 572 सैकड़ों छोटे-बड़े द्वीप हैं, इनमें से केवल 38 ही आबाद हैं। यहां 3 जिले हैं उत्तर और मध्य अंडमान दक्षिण अंडमान और निकोबार जिला।
अंडमान को सक्रिय लावा ज्वालामुखी (मड वोल्केनो ) का इलाका भी कहा जाता है। यह क्षेत्र वनस्पति और जैव विविधता के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है। यहां के एक द्वीप का नाम है पैरेट आईलैंड है, जहां बहुत संख्या में तोते पाए जाते हैं। दुनिया का सातवें नंबर का सर्वश्रेष्ठ बीच हैवलॉक द्वीप में राधा नगर बीच के नाम से जाना जाता है ।
तारीफ सुन सुनकर हमारी उत्सुकता और बढ़ने लगी थी और हम जल्दी से जल्दी अपनी आंखों से सब कुछ देखना चाहते थे। अंडमान निकोबार के प्रति दीवानगी का आलम बढ़ने लगा था।
इस खूबसूरत क्षेत्र ने 26 दिसंबर 2004 को भयावह सुनामी का सामना किया। 33 फुट ऊंची समुद्री लहरों ने यहां भारी तबाही की, लेकिन प्रकृति ने इसका नए सिरे से फिर श्रृंगार किया।
बंगाल की खाड़ी में कोलकाता से लगभग 1255 किलोमीटर और म्यांमार के नेग्रीस अंतरीप से लगभग 193 किलोमीटर दूर यह केंद्र शासित प्रदेश है। उत्तर में स्थित द्वीप अंडमान द्वीप समूह तथा दक्षिण में स्थित द्वीप समूह निकोबार द्वीप समूह के नाम से जाने जाते हैं।
मन में बड़ी उत्सुकता थी। इन द्वीप समूह में रहने वाले मूल निवासी कौन हैं। हमें बताया गया अंडमान दीप समूह में महा अंडमानी ओंगे, जारवा और सेंटिनली नाम की चार नीग्रेटो जातियां रहती हैं और निकोबार द्वीप समूह में निकोबारी तथा शोम्पेन दो मंगोलॉयड जातियां रहती हैं। इसके अलावा स्थानीय तौर पर भारत से आये विभिन्न जातियों के लोग यहाँ निवास करते हैं।
पूरा द्वीप समूह बहुत ही खूबसूरत समुद्री तटों के लिए जाना जाता है यहां मूंगा और प्रवाल की 175 से ज्यादा प्रजातियां मिलती हैं। समुद्री जीवों का अथाह भंडार है और जंगलों की वजह से यहां तरह-तरह के पशु पक्षियों की प्रजातियां पाई जाती हैं। इन्हें बचाने के लिए 9 राष्ट्रीय पार्क एक बायो रिजर्व और लगभग 100 वन्य जीव अभयारण्य भी बनाए गए हैं।
चारों तरफ समुद्र से घिरे होने के कारण मन में सवाल उठना स्वाभाविक था आखिर यहां जीवन यापन के लिए आर्थिक गतिविधि क्या होती है। एयरपोर्ट से होटल जाते वक्त रास्ते में हमें धान के खेत दिखे जो यहां की प्रमुख फसल है। हमें बताया गया निकोबार दीप समूह की मुख्य नकदी फसलें नारियल और सुपारी हैं। दालें, तिलहन और सब्जियां भी उगाई जाती हैं। मिर्ची, लौंग, जायफल, दालचीनी जैसे मसालों की खेती के साथ-साथ रबड़, ताड़ और काजू भी थोड़ी बहुत मात्रा में उगाया जाता है। यहां आम, संतरा, केला, पपीता जैसे फल भी उगाए जाते हैं । ज्यादातर व्यापार मूल भूमि भारत पर निर्भर करता है। जलयान से यहां माल की आवाजाही होती है।
समुद्री मार्ग में होने के कारण नाविकों के लिए यह हमेशा महत्वपूर्ण रहा। रामायण काल में इसे हनुमान नाम से जाना जाता था। अंडमान शब्द हांड मन से ही आया है। निकोबार शब्द भी जिसका आशय नग्न लोगों की भूमि है, मलय भाषा का है। टेलमी के अनुसार इसका नाम अंगा दे मन था। पहली शताब्दी में यही नाम प्रचलित था। ऐसा कहा जाता है मार्को पोलो तेरवीं शताब्दी में यहां आया था। उसने अंगा मा नियम नाम से इसका वर्णन किया है। इसके बाद और भी कई लोगों ने इन द्वीपों का भ्रमण किया।
तमिल चोल राज्य वंश के राजाओं के समय इसका विशेष महत्व रहा। राजेंद्र राज चोल जिन्होंने 1014 से 1042 ईसवी तक शासन किया, उनके समुद्री अड्डे के रूप में उपयोग में आता था। सन 1789 में अंग्रेजों ने यहां अपनी हुकूमत कायम की। अंडमान निकोबाऱ के चैथम द्वीप में 12 एकड़ भूमि पर पहली कॉलोनी बसाई गई पर जलवायु और अन्य कारणों से आगे कुछ कार्यवाही नहीं हुई।
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को कैद करने के लिए इस जगह का इस्तेमाल किया गया और द्वीप में सबसे पहले 277 संग्राम सेनानियों को लाकर रखा गया। बाद में मणिपुर विद्रोह आदि से जुड़े सेनानी तथा देशभक्त जिन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाई, अंडमान में काले पानी की सजा के तौर पर भेजे गए और इनसे ईटें तैयार करवा कर सेल्यूलर जेल का निर्माण 1896 में शुरू करवाया गया था जो 1906 में पूर्ण हुआ। सेल्यूलर जेल को देखते हुए हमें मालूम हुआ कि उस समय इसकी लागत 517352 रुपए थी और एक गोलाकार टावर के चारों ओर यह 7 भुजाओं में बनी थी, जिसमें से अब केवल तीन भुजाएं ही बाकी हैं। इस टावर से जेलर दूर-दूर तक के दृश्य बड़ी आसानी से देख सकता था। वास्तव में यह एक वॉच टावर ही था। इस जेल में 694 कोठरियां हैं और यह ऑक्टोपस जैसी दिखाई देती हैं। इसकी कालकोठरियाँ भयानक हैं, जिनसे निकल भागना बहुत ही मुश्किल है। वीर सावरकर को कोठरी नम्बर 123 में दूसरी मंजिल पर रखा गया था।
वर्तमान में अंडमान द्वीप समूह को सेल्यूलर जेल के कारण काफी प्रसिद्धि मिली है। अंग्रेजों के जमाने में यहां काला पानी की सजा दी जाती थी। सेल्यूलर जेल को करीब से देखा जाए और वहां दी जाने वाली यातनाओ की कल्पना की जाए तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। जेल अधीक्षक जेम्स पैटिंसनवाकर के जून अट्ठारह सौ अट्ठावन के एक अभिलेख से मालूम होता है कि यहां कुल 773 बंदी लाए गए थे। भागने की कोशिश में 87 लोगों को फांसी दे दी गई। 140 भुखमरी और जंगलियों के द्वारा हत्या के कारण खत्म हो गए। बीमारी के कारण 64 लोग अस्पताल में मारे गए। एक व्यक्ति ने आत्महत्या की। यह दृश्य आतंकित करने के लिए पर्याप्त है।
अंग्रेजों द्वारा कैदियों से जबरदस्ती जंगल साफ करवाए जाते थे, जिससे यहां के आदिवासियों ने आजादी के लिए जंग छेड़। दी बैटल आफ अबार डीन के नाम से 17 मई 1859 को अंडमान जनजाति और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ। आज भी अंडमान में वाटर स्पोट्र्स कांप्लेक्स के समीप एक स्मारक उन लोगों की याद में बनाया गया है, जिन्होंने युद्ध में अपनी जान गंवाई। कुछ समय यह इलाका जापानियों के अधिकार में भी रहा। रॉस आईलैंडमैं आज भी जापानी बंकर मौजूद हैं। अब इस द्वीप का नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम पर कर दिया गया है। भारत की आजादी के बाद अब यह क्षेत्र पूर्णरूपेण भारत के नियंत्रण में है।
अंडमान निकोबार की जेल के करीब ही एक फांसी घर है, जिसमें मौत की सजा दी जाती थी, जिसके अंदर जाने पर उन दिनों को याद करते हुए एक सिहरन सी होती है। पास में ही एक संग्रहालय बनाया गया है जिसमें उस जमाने में अंग्रेजों द्वारा कोड़े मारने, कोल्हू से तेल निकलवाने और अमानवीय यातनाएं देने के दृश्य दिखाए गए हैं।
सेल्यूलर जेल से निकलने के बाद दिमाग पर अंग्रेजों के अत्याचारों की याद से मन बोझिल था लिहाजा हमने दूसरी तरफ रुख करने का फैसला किया और पास में ही रॉस आयलैंड की तरफ हम लोग चल पड़े इसका नाम वर्तमान में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम पर रखा गया है। यह अंग्रेजांे के समय उनका प्रशासनिक मुख्यालय था। 1941 में आए भूकंप ने इसे बहुत नुकसान पहुंचाया और 1942 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापानियों ने इस पर कब्जा कर लिया। उनके बनाए बंकर और तोपंे आज भी यहां मौजूद हैं।
यहां सबसे बेहतरीन ब्रिटिश हाई कमिश्नर का बंगलो है जो अब टूटी फूटी अवस्था में है। देखने पर लगता है वह बहुत ही भव्य निर्माण था। यहां समुद्री खारे पानी को पीने योग्य पानी बनाने का बहुत बड़ा संयंत्र है। टेनिस कोर्ट और स्विमिंग पूल और उनका छापाखाना भी यहां मौजूद है। चर्च तथा कब्रिस्तान यहां पर है। सब टूटी-फूटी अवस्था में। यह द्वीप करीबन 200 एकड़ में फैला हुआ है। यहां भी एक संग्रहालय है, जिसे फरजंद अली का स्टोर कहा जाता था। इसमें अंग्रेजों के समय के बहुत सारे चित्रों को और कई वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया है। इन अवशेषों को देखने से लगता है कि यह द्वीप अपने समय पूरे शबाब पर रहा होगा। रात में यहां रुकने की मनाही है।
पास ही में नील द्वीप है जिसकी बसाहट 1960 से शुरू हुई। यहां का सबसे बड़ा आकर्षण है ऐसी नाव की सवारी जिसकी पेंदी में पारदर्शी गिलास लगे होते हैं, जहां से आप समुद्री मछलियों, कोरल और जीव-जंतुओं का भरपूर दर्शन कर सकते हैं।
अब हमारा स्ट्रीमर हैवलॉक द्वीप के लिए निकल पड़ा। यहां एलीफेंट बीच और राधानगर बीच हैं। वैसे तो समूचा अंडमान निकोबार ही समुद्र तटीय क्षेत्र होने के कारण खूबसूरत बीच से अटा पड़ा है।
यहाँ प्रमुख रूप से हैवलॉक द्वीप का विजय नगर बीच, करमा डांग बीच, नेताजी नगर बीच, बटलर बीच दिग्लीपुर का रामनगर बीच, पार्टीपुर बीच, कालीपुर बीच, लमिया बीच, लालाजी बीच, मर्क बे बीच देखने योग्य हैं, लेकिन राधा नगर बीच की बात ही कुछ और है। यहां सिक्का भी गिर जाए तो आप पानी में उसे आसानी से देख सकते हैं। यह यहां का सबसे सुंदर बीच है और दुनिया में इसे सातवां सर्वश्रेष्ठ बीच का खिताब हासिल हुआ है। स्नोरकलिंग और डाइविंग यहां प्रशिक्षित गोताखोरों द्वारा करवाए जाते हैं। हमने तो स्कूबा डाइविंग से तौबा की लेकिन मुंह में पाइप फंसा कर स्नोरकलिंग का आनंद जरूर लिया।
पोर्ट ब्लेयर में फोनिक्स जेटी से बमुश्किल 15-20 मिनट की दूरी पर नॉर्थ बे आईलैंड है यहां पर प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत है। यहां की हरियाली और जलते बुझते लाइट हाउस का चित्र 20 रूपये के भारतीय नोट पर अंकित किया गया है।
आपको जानकर हैरत होगी की अंडमान निकोबार की सेल्यूलर जेल के पहले भी कैदियों को रखने की व्यवस्था थी और वह वाइपर आईलैंड में थी। यहां पुरानी जेल में जंजीरों में जकड़ कर यातना देने के तरीके के कारण इस जेल का नाम वाइपर चेन गैंग जेल पड़ गया था। यद्यपि सुनामी से इसे काफी नुकसान पहुंचा, फिर भी इस जेल का ऐतिहासिक दृष्टि से अपना महत्व है।
बारा डांग की यात्रा अपने आप में रोमांचकारी रही पोर्ट ब्लेयर से लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर उत्तर में यहां फेरी के जरिए पहुंचा जा सकता है। यहां जाने के लिए गाइड की सुविधा है और वन विभाग की ओर से चूने की गुफाओं को देखने के लिए अनुमति जरूरी है। यहां मड वोल्केनो देखने का अपना एक अलग अनुभव है। दिग्लीपुर में भी ऐसे मड वोल्केनो देखे जा सकते हैं। इस द्वीप में लगभग 25 से ज्यादा ऐसे मड वोल्केनो हैं। यहां आस-पास वनस्पति और जीव जंतु घने मैंग्रीव के पेड़ देखकर आनंद आ जाता है। इसलिए इस जगह की यात्रा किए बगैर अंडमान की यात्रा पूरी नहीं मानी जाती है। यहां की छुपी हुई प्राकृतिक खूबसूरती का मजा यहां अच्छी तरह घूमने से ही मिल सकता है।
एक जुड़वा द्वीप की यात्रा भी बड़ी रोमांचक है। पोर्ट ब्लेयर से 39 किलोमीटर दूर रॉस और स्मिथ दीप है जो एक दूसरे से बालू के जरिए जुड़े हुए हैं। यहां सूर्यास्त बहुत सुंदर दिखाई देता है। फोटोग्राफी के शौकीनों के लिए यह जगह स्वर्ग है। यहां के समुद्री तट बहुत ही खूबसूरत हैं।
विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट है। हमें यह जिज्ञासा हुई कि अंडमान निकोबार की सबसे ऊंची चोटी का नाम क्या है। रूट्सलैंड द्वीप में स्थित पर्वत पर माउंट फोर्ट शिखर है जो 433 मीटर की ऊंचाई पर है। यह द्वीप बहुत ही बिरला बसा है। यहां के निवासी तमिल बंगाली और हिंदी भाषाएं बोलते हैं। घने जंगल और श्रफ तथा कोरल रीफ की यहां भरमार है। यहां मुख्य रूप से जहाजी बीच बहुत सुंदर है बीच के अलावा अंडमान निकोबार में और भी बहुत से देखने योग्य स्थान हैं। माउंट हैरियट यहां का प्रसिद्ध नेशनल पार्क है। यहां प्रिमिटिव ट्राइब्स, जो नीग्रिटो जाति के हैं, जंगलों में रहते हैं और वन संपदा इकट्ठा कर अपना जीवन यापन करते हैं। यहां तोते विभिन्न प्रकार के पक्षी और अंडमान की ड्रॉन्गो चिड़िया मुख्य रूप से पाई जाती हैं। पक्षियों की बहुतायत के कारण एक द्वीप का नाम ही चिड़िया टापू रख दिया गया है। यह स्थान पोर्ट ब्लेयर से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां ट्रैकिंग की भी सुविधा है। यहां बहुत किस्म के पक्षियों की प्रजातियां देखने को मिलती हैं । यहां वोटिंग और तैरने का आनंद भी लिया जा सकता है।
मैंग्रीव के वृक्षों का सानिध्य अपने आप में अनूठा है। पर्यटन स्थल रंगत से 20 किलोमीटर की दूरी पर आम कुंज बीच है। यहां 715 मीटर लंबा एक वॉकवे बनाया गया है, जिसके दोनों ओर मैंग्रीव के पेड़ हैं। यहां घूमने का अपना मजा है। यहां के बीच की बालू सिल्वर और सफेद होने के कारण बहुत मनमोहक लगती है। वैसे रंगत मध्य अंडमान में है। यहां 13 मीटर ऊंचे मैंग्रीव के वाच टावर पक्षियों को देखने के लिए बने हुए हैं। यहां मुख्य रूप से तमिलनाडु और केरला से आए हुए लोग बसे हुए हैं।
पोर्ट ब्लेयर से 200 किलोमीटर की दूरी पर एक खूबसूरत प्रताप है। आपको जानकर हैरत होगी कि अंडमान निकोबार में भी एक पंचवटी है। पंचवटी पहाड़ियों से यह खूबसूरत जलप्रपात बहुत मनोहारी लगता है। सूर्योदय और सूर्यास्त देखना प्राकृतिक दृश्यों की फोटोग्राफी करना समुद्री जीव जंतुओं और मछली पकड़ना यहां के प्रमुख आकर्षण हैं। इस इलाके में ऑलिव कछुए तथा ग्रीन सी टर्टल हॉक्स बिल और लीथर बैक कछुए देखे जा सकते हैं। वैसे तो गिटार तथा लॉन्ग तथा बटन द्वीपों में भी जाया जा सकता है ।
बटन आईलैंड में तीन द्वीप हैं दक्षिण उत्तरी और मध्य रानी झांसी मरीन नेशनल पार्क के हिस्से हैं। यहां पर लायन फिश, एंजल फिश, बटरफ्लाई फिश, ऑक्टोपस सी ईगल स्नैप्पर बहुतायत से पाए जाते हैं।
अंडमान निकोबार का सर्वश्रेष्ठ और आकर्षक दृश्य देखना हो तो वह हैवलॉक द्वीप समूह के काला पत्थर बीच में दिखाई देता है। यहां ताजे नारियल और आम का जूस पर्यटकों को बहुत भाता है।
पोर्ट ब्लेयर से 8 किलोमीटर की दूरी पर जौलीबॉय द्वीप है। यहां बंडूर बीच है। यहां का बहुत मशहूर बीच है। यहां वह सारी खासियत मौजूद है जो यहां के प्रसिद्ध बड़े बीचेस में पाई जाती है। यहां विभिन्न प्रजाति के सांपों को देखा जा सकता है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानियों द्वारा बनाए गए युद्ध के बंकर भी यहां आसानी से देखे जा सकते हैं। इस द्वीप पर घूमते हुए हमारे कुछ साथियों ने समुद्र में तैरने का आनंद उठाया तो कुछ लोगों ने सूर्य स्नान का फायदा लिया। बीच की मुलायम बालू पर आराम फरमाना भला किसे अच्छा नहीं लगता।
अंडमान निकोबार की यात्रा के दौरान कुछ जगहों पर और भी जाया जा सकता है। यहां का बाजार, जहां लगभग हर तरह की चीजें मिल जाती है सामान थोड़ा महंगा होता है क्योंकि सारी वस्तुएं भारत की मूल भूमि से कोलकाता या चेन्नई में जल यानों के जरिए आती है। हमने अपनी पसंद कि कुछ टी-शर्ट और शंख और सीप के कुछ सामान खरीदे, ताकि अंडमान निकोबार यात्रा की यादें बनी रह सके।
राजीव गांधी वाटर स्पोट्र्स काम्प्लेक्स जरूर देखना चाहिए, यहीं पर मूल अंडमानी और अंग्रेजों के बीच 18 सो 59 में हुए संघर्ष के दौरान हुए शहीदों की स्मृति में स्मारक भी बना हुआ है, जिसका जिक्र हमने पहले भी किया है। यहां कांप्लेक्स में पैरासेलिंग, पेडल बोटिंग, बनाना बोट राइड और रोविंग बॉट्स की सुविधाएं उपलब्ध हैं जलीय क्रीडा में आनंद लेने वाले लोगों के लिए यह बहुत ही अच्छी जगह है। यहां वाटर स्कीइिंग और विंड सर्फिंग तथा वाटर स्कूटर और जेट स्कीइिंग की सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।
एक बात तो मैं बताना भूल ही गया। अंडमान निकोबार के घने जंगलों से प्राप्त होने वाली लकड़ी की कटाई के लिए अंग्रेजों ने एक आरा मिल की भी स्थापना की थी। अट्ठारह सौ चैरासी में बनी आरा मील में लकड़ी की कटाई छंटाई की जाती थी। यह एशिया में पाई जाने वाली बड़ी आरा मिलों में से एक है। इसे चैथम आरा मिल के नाम से जाना जाता है। यहां एक म्यूजियम बनाया गया है, जिसमें वन और पर्यावरण संबंधी चित्रों को प्रदर्शित भी किया गया है।
एंथ्रोपॉलजिकल म्यूजियम देखते समय हमें कुछ अलग अनुभव हुआ। इसमें अंडमान की प्रिमिटिव ट्राइब्स के संबंध में जानकारियां मिल जाती हैं। विशेष रुप से उनकी दिनचर्या संस्कृति परंपरा रहन सहन आदि से संबंधित। ताड़ की पत्तियों से बने हुए विभिन्न साजो सामान, हाथों से बनाए गए हैं, देखे जा सकते हैं।
ऐसा माना जाता है कि अंडमान द्वीप समूह में है जनजाति के लोग लगभग 55000 साल से भी ज्यादा समय से वहां निवास कर रहे हैं। हमारा सबसे ज्यादा रोमांचक अनुभव जावरा समुदाय के लोगों से रूबरू होने का हुआ। आज मुश्किल से इनकी आबादी लगभग 400 बची है और यह अलग अलग समूहों में रहते हैं। यह अपने आप में आत्मनिर्भर होते हैं। तथा जंगल से फल, कंदमूल, शहद आदि एकत्र करते हैं।
आत्मरक्षा के लिए धनुषबाण का भी इस्तेमाल करते हैं। इन्हें जंगली पेड़ पौधे और जीव-जंतुओं की बहुत अच्छी जानकारी होती है। उस समय इन क्षेत्रों में बिना सरकारी अनुमति के जाना वर्जित था और यह भी सख्त हिदायत ही कि कोई भी अपने वाहन से नीचे नहीं उतरेगा। वैसे तो जावरा समुदाय के लोग यदा-कदा दिखते हैं। हमारे साथ एक ऐसा अनुभव हुआ जिसमें एक जावरा युगल में से उसका पति हमारे वाहन के बिल्कुल करीब आ गया और संभवत वह वाहन की खिड़की के पास आकर खड़ा होकर कुछ चाहता था। लेकिन हमें हिदायत दी गई थी कि कई बार संवादहीनता के अभाव में वे आक्रामक भी हो सकते हैं। इसलिए पर्याप्त सतर्कता बरतनी चाहिए है। वैसे इनके द्वारा परिधान के नाम पर या तो वस्त्र पहने ही नहीं जाते हैं अथवा वे पत्तियों से बने परिधान धारण करते हैं। मूलतः ये मांसाहारी होते हैं। इन क्षेत्रों में मछली और समुद्री जलचर इनका भोजन हैं। शहद इकट्ठा करते समय जावरा गीत भी गाते हैं।
वर्ष 2002 में माननीय उच्चतम न्यायालय ने यहां जाने पर जो पाबंदी लगाई थी वह अभी भी जारी है। भारत शासन में 2004 से जावरा के प्रति सकारात्मक रुख अपनाया है। उन्हें मुख्यधारा में लाए जाने के संबंध में तरह-तरह के विचार हैं। अभी तक जावरा की तरफ से कोई पहल नहीं हुई है। अक्टूबर 2017 में अंडमान प्राधिकारी बारडांग जाने के लिए समुद्री मार्ग का रास्ता खोल दिया है लेकिन अभी भी यहां स्वतंत्र रूप से आवाजाही नहीं है। उस समय वर्ष 2008 में हमें जाने के लिए विधिवत शासकीय रूप से कुछ शर्तों के साथ ही अनुमति मिली थी।
कुल मिलाकर अंडमान निकोबार प्रिमिटिव ट्राइब के लिए एक ओर उनकी संस्कृति और जीवन की रक्षा का प्रश्न है, दूसरी ओर उनकी घटती हुई आबादी चिंताजनक है। मुख्यधारा में लाने के संबंध में कई तरह के विचार हैं। इन सबके मद्देनजर वे अपना जीवन उसी तरीके से व्यतीत कर रहे हैं, जो सैकड़ों वर्षो से उन्होंने जिया है।
पूरी यात्रा में कुल मिलाकर यह समझ में आया की यह द्वीप समूह भले ही भारत की मूल भूमि से दूर है, लेकिन भारत के हृदय से कहीं दूर नहीं, क्योंकि यहां भारत से आए हुए बहुत से लोग बसे हुए हैं। इसीलिए यहां दुर्गा पूजा होली, दिवाली, ओणम, पोंगल, क्रिसमस जैसे सारे पर्व मनाये जाते हैं। अप्रैल में बीच फेस्टिवल होता है, तो अगस्त में मानसून मेला भी आयोजित होता है। पर्यटन विभाग भी कुछ आयोजन करता है। यहां के भोजन में समुद्री तट होने के कारण मछली और समुद्री जीवों का प्रभाव है। चावल सब्जियां यहां का मुख्य भोजन है। बाजार में समुद्री शेल्क क्राफ्ट बहुतायत से मिल जाते हैं। लकड़ी, नारियल, ताड़ से बनी हुई चीजें भी यहां बाजारों में मिलती हैं। यहां स्थानी तौर पर पाई जाने वाली लकड़ियों का वुडक्राफ्ट में इस्तेमाल होता है।
भारत के विभिन्न भागों में जनजातियों के नृत्य गीत होते हैं, वैसे ही अंडमान क्षेत्र की जनजातियों के नृत्य गीतों का भी तौर तरीका बिल्कुल ही अलग है। ओंगे जनजाति ने अपने गीत अलग से गाने की विधा विकसित की है और उनकी नृत्य शैली भी अलग है। पुरुष और स्त्री दोनों नृत्य में भाग लेते हैं। ऐसे नाच पूर्णिमा की रात में होते हैं और ताड़ के नीचे नाचते हैं तथा नारियल के पत्तों का इस्तेमाल संगीत की धुन में इनके द्वारा किया जाता है। पर्यटन विभाग द्वारा जब महोत्सव आयोजित किए जाते हैं तब इनके गीतों आदि की भी प्रस्तुति होती है।
कुल मिलाकर लगभग 1 सप्ताह की यात्रा में हमें अंडमान निकोबार में अलग ही तरह का अनुभव हुआ। प्राकृतिक सौंदर्य की पराकाष्ठा को देखा वहीं 21वीं सदी में जाती हुई दुनिया के दौर में अपनी सभ्यता संस्कृति में जीते हुए अंडमान के मूल निवासियों का भी दर्शन किया। प्रकृति की मार और सुनामी के थपेड़ों को झेलने के बाद भी खड़े होते हुए अंडमान को देखा। यह ऐसा मिनी भारत है जहां विभिन्न जाति संप्रदाय के लोग मिलजुल कर रहते हैं और भारत की मूल भूमि से दूर रहने के बावजूद भी भारतीय सभ्यता संस्कृति खान-पान आचार विचार और धर्म से जुड़कर अपना जीवन निर्वाह करते हैं । आज अंडमान निकोबार विकास की दिशा में निश्चित रूप से बढ़ रहा है। वहां आधुनिक प्रकार की बहुत सारी सुविधाएं उपलब्ध हुई हैं।
अब हमें वापसी की तैयारी भी करनी थी। लिहाजा अंडमान निकोबार की यात्रा की मधुर स्मृतियों को साथ में लेकर हमारा हवाई जहाज पोर्ट ब्लेयर से पुनः आकाश की ओर उठने लगा। नीचे हमने फिर झाँक कर देखा।
आते वक्त अंडमान निकोबार हमारे लिए अनजाना था, लेकिन थोड़े दिनों में हमने बहुत हद तक जानने की कोशिश की और अब ऐसा लग रहा था कि समुद्र में अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ कुछ ज्यादा जाना पहचाना मगरमच्छ सा धूप सेकता अंडमान निकोबार द्वीप समूह हमें फिर से आने के लिए आमंत्रित कर रहा है।

त्रिलोक महावर
रायपुर छ.ग.
मो.-7000873240