लाला जी वास्तव में साहित्य ऋषि थे-102वीं जयंती

सनत कुमार जैन

 

लाला जी वास्तव में साहित्य ऋषि थे

लाला जगदलपुरी जी की एक सौ दो वीं जयन्ती पर साहित्य एवं कला समाज जगदलपुर द्वारा आयोजित कार्यक्रम में लालाजी को यूं याद किया गया मानो लालाजी हमारे बीच उपस्थित हों। विस्तार से लालाजी के जीवन सखा बी एल विश्वकर्मा जी ने उनके साथ बिताये पलों को जीवंत किया।
उन्होंने बताया कि लाला जी जब भी कुछ लिखते थे उसके पहले श्रोता वे ही होते थे। लालाजी स्वाभाव से बेहद भोले भाले और जल्दी से लोगों के विश्वास में आ जाने वाले थे इसलिये समय समय पर लोग उनकी रचनाओं चुपचाप अपने नाम से प्रकाशित करवा लेते थे। एक बार तो उनकी पूरी की पूरी पुस्तक ही किसी ने अपने नाम से छपवा ली। वे अपने स्वाभिमानी स्वभाव के चलते अपने लिये सम्मान की सिफारिश करना पसंद नहीं करते थे न ही वर्तमान दौर की तरह लल्लो चप्पो करके सम्मान पाना चाहते थे।
अवधकिशोर शर्मा जी ने बताया कि वे हर रविवार को सुबह नौ से दस बजे तक लालाजी से मिलने जाते थे। एक बार उनकी रचनाओं का प्रकाशन हुआ तो मैंने उनसे मिठाई खिलाओ, कहा। तो उन्होंने हंसते हुये जवाब दिया कि पोस्टमेन से बच जाये तो खिला दूं। उनका स्वभाव मनोविनोद का भी था। वे भजिया और चाय के शौकिन थे। अपनी बुलंद आवाज से एक बार काव्य गोष्ठी में पढ़ा कि उनको इस बात का घमंड है कि उन्हें किसी बात का घमंड नहीं है। वैसे ही उन्होंने तीरथगढ़ पर एक रचना प्रस्तुत की थी -देखो तो देखो, सोचो तो सोचो, पाषाणी दुधारू गायों को।
नरेन्द्र पाढ़ी ने बताया कि लालाजी उनके द्वारा स्थापित संस्था बस्तर माटी के सरंक्षक थे। एक बार उनके लिये गीत के पाठन पर मंच में वास्तव में देवी आ गयी थी।
विपिन बिहारी दाश जी ने पुरानी यादों को साझा कर बताया कि लालाजी से उनकी मुलाकात आकाशवाणी में रिकार्डिंग के दौरान होती रहती थी।
सनत जैन ने मंच संचालन करते हुये जानकारी दी कि बस्तर पाति प्रकाशन द्वारा निकट भविष्य में बस्तर क्षेत्र के साहित्यकारों द्वारा लालाजी के संस्मरणों की पुस्तक ’हृदय में बसे लालाजी’ का प्रकाशन किया जा रहा है इस हेतु समस्त साहित्यकारों से उनके संस्मरण आमंत्रित हैं।
कार्यक्रम में उपस्थित डॉ राजेश थनथराटे, डॉ प्रकाश मूर्ति, बाबू बैरागी, श्रीमती ममता मधु, श्रीमती ज्योति चौहान ने अपने विचारों से लालाजी को श्रद्धांजलि प्रदान की।