कहानी-सनत जैन-खुली खिडकी बंद दरवाजे

खुली खिडकी बंद दरवाजे


गरीबों दलितो की बस्ती जो कि स्वयं ही अपने आप में एक बीमारी की तरह होती है और फिर वहां अचानक ही कोढ़ में खाज की तरह बीमारियां छप्पर फाड़कर पैर पसारने लगीं। बीमारी में व्यक्ति शारीरिक मानसिक तकलीफ में डूबा रहता है न तो उसे किसी हंसी ठिठोली में शामिल होने की इच्छा होती है, न ही और कुछ अच्छा लगता है, वैसे ही गरीबी में आदमी कल की चिन्ता के कारण मोटा नहीं हो पाता है। और आज की चिन्ता के कारण मोटापा घुलता जाता है। पेट की व्यवस्था में मन मारकर गमों को सहन करता है। उसके अनुभव इतने भंयकर होते हैं कि गरीबी उसके लिए लाइलाज बीमारी से कम नहीं बल्कि ज्यादा होती है। उसकी उधेड़बुन उसे इस भौतिकता वादी युग में किसी काबिल नहीं छोड़ती है।
आज अचानक रूपा का बुरा हाल हो गया। चार घरों के जूठे बर्तन मांजकर पांच बच्चे और पति का पेट पालने वाली खुद ही अंपग हो गई, सुबह उठते ही उसकी जबान गधे के सर से सींग की तरह गायब हो गई। घोर अचरज का माहौल हो गया पहले तो वो खुद समझ से लाचार हो गई कि, वो कुछ बोल क्यों नहीं पा रही है, फिर सारी बस्ती के लिए दैविक प्रकोप का संदेश बन गया। बस्ती की भीड़ में रूपा की जबान बंद होने का समाचार भंयकरता से फैल गया, सारे के सारे अपनी-अपनी समझ से कुछ कारण ढूंढ रहे थे और एक दूसरे को समझा रहे थे। झुकी कमर वाली चिड़की बाई बोली ‘‘एक आदमी की औरत बनी रहती तो कुछ न होता, ये तो दुश्कर्मो का फल है जो उसने ही किये है।’’
‘‘कल इसने जिन्दा बकरी को मारकर खाया था ये उसका फल है।’’ राम सेवक बोला- ‘‘बेचारी इतनी जोर-जोर से चिल्ला-चिल्लाकर रो रही थी कि मेरे घर तक उसकी करूण आवाज आ रही थी।’’
‘‘छै दिन पहले उसके घर में कुछ खाने को न था तब उसने काली बिल्ली को मार कर खाया तब तो कुछ न हुआ, आज फिर ऐसा क्यों हुआ ?” रहमत बोला जिसका चेहरा वास्तव में ही रहम खाने जैसा ही था पचका, धंसा मानों ढलाई करके मूर्ति बनाने वाले ने गलती से ढली मूर्ति के चेहरे पर अपना हाथ धर दिया हो।
यानी जितने मुंह उतनी ही बातें और बातों में भी ताना-बाना पुरानी कसक का या फिर वास्तव में अनजाना दैविक भय, अनजाना भय ज्यादा व्याप्त था हर किसी के चेहरे और जबान पर।
तभी अचानक भीड़ में नया हल्ला हो गया शायद नई घटना का आगाज था, क्या हुआ ? क्या हुआ ? की आवाज के साथ सारे चेहरे प्रश्न वाचक हो गये मानो बमों की लड़ियां लग गईं थी।
”सुकटा अकड़ गया।’’’बताने वाले ने भी लोगो की धीरता भंापकर सांस भी न ली और बता दिया।़
पर प्रश्न कम कहां से होते क्यों कि बात ही ऐसी कही जा रही थी,
”अकड़ गया याने मर गया ?’’
”मरा नहीं ऐंठ गया है हिल भी नहीं पा रहा है।’’
”ऐसे कैसे हो सकता है ?’’
‘चलो न चलकर देख लो।’’ बताने वाले ने ’हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फारसी क्या।’ वाले, अंदाज में कहा।
‘‘कल ही तो महीने भर बाद शहर से आया और ये क्या हो गया ?’’ रहमत मिंया ने रहम के सागर में रहम के जरा और भाव उड़ेल दिये।
सारी भीड़ सुकटा के घर की ओर मुड़ गई।
कुल मिलाकर सारा माहौल भयभीत और गमगीन हो गया। एक ही दिन में दो अनोखी घटनाओं ने डरा दिया, सारी बस्ती को। आशंकाओं के बादल रह रहकर बरस रहे थे, काम धाम बंद हो गया। सारे लोग अपने-अपने इष्ट की पूजा भक्ति में लग गये। धर्म की रेखा विलोपित होकर सर्वधर्ममय धारा में बह गई।
इस एक बस्ती की घटना ने सिर्फ उस बस्ती को ही नहीं हिलाया बल्कि बस्ती से लगा कस्बा भी हिल गया क्योंकि उस कस्बे के रिक्शे ठेले बंद हो गये, घरों के जूठे बर्तन चिढ़ाने लगे, सडकों में बिखरे कचरों ने धोखा दे लोगों को गिराने का काम शुरू कर दिया, क्योंकि सरकारी सड़कों के गढ्ढे नजर ही नहीं आते थे।
बस्ती में कस्बा समाने लगा, पूछताछ चल रही थी। लोकल समाचार पत्रों में खंबरें छप गईं यानी हर ओर यही घटना छा गई।
आठ-दस दिन बीत गये। चिंतित वातावरण धीरे धीरे पेट की आग में पिघल गया। लोग रोजी रोटी मंे लग गये पर अंदर व्याप्त भय गया नहीं था, काम-धाम के बाद ईश्वर भक्ति ने उनके बीच स्थान बना लिया था,


शायद ईश्वर तक भक्ति पहुंच गई और क्यों न पहुंचे, हृदय से लगाई पुकार कभी व्यर्थ नहीं जाती है, मेहनत तो पत्थर से पानी निकलवा ही लेती है, देवदूत फादर जोश अपने अनुयायीयों के साथ पास के गांव में आ गये, फादर जोश का व्यक्तित्व ही प्रभावकारी था बगुले की तरह झख सफेद मूंछें और बाल, मध्यम आकार की झील सी आंखें अपने सांवले रंग को महानता प्रदान करती है, उनका दयालु कृपालु हृदय इस गरीब बस्ती की व्यथा से व्यथित हो गया था, जब से उन्होंने सुना तब से उनकी नींद उड़ गई थी। वे दौड़े दौड़े बस्ती में आ गये स्वयं को रोक न पाये, वैसे भी उनकी दया का कायल आसपास का सारा इलाका है। कितने ही गरीबों को उनका आर्शीवाद प्राप्त होते ही उनकी गरीबी खत्म हो गई, वे लोग छोटे मोटे धंधे में लग गये। गरीब की पुकार सुनना और उनकी मदद ही उनका जीवन दर्शन बन गया है।
न जाने कितनों की इन्होंने मदद करी है गिनती ही नहीं, बीमारों का इलाज करना उनका पेशा था और ईश्वर के आदेश के बाद उन्होंने सेवा के क्षेत्र में जीवन अर्पित कर दिया, चार ननों का साथ उनके अंदर बल भरता था उनके प्रयासों को फलीभूत वे ननें ही करती थी। सिस्टर पार्था, सिस्टर सोफिया फादर जोश की समकालीन थीं और सिस्टर एलीजा 15 वर्ष पूर्व उनकी सेवा से प्रभावित हुई थी। सिस्टर सूजी 2 वर्ष पूर्व ही फादर जोश की क्रांति में शामिल हुई थी, इन चारों के चेहरे पर तेज चमकता है, वाणी कानों में शहद घोलती है, गौरवर्ण उन चेहरों में देवत्व दर्शाता, वे देवियों की तरह ही सुन्दर नजर आती। जिस किसी की नजर उन पर पड़े वे क्षण भर जरूर थम जाती। पास से गुजरने वाली नजरें वापस जरूर आतीं। अगर कोई पल भर बातकर ले उनसे तो वो सम्मोहित सा जड़वत हो जाता।
सर्वप्रथम फादर जोश अपने अनुयायीयों के साथ रूपा की झोपड़ी में पहुंचे और साथ ही साथ बस्ती की भीड़। तुरंत ही टूटे हत्थों वाली पांच छै कुर्सियों ने फादर जोश ससंघ के विराजने का साधन बन स्थान ग्रहण किया। कस्बे की लोगों से दुगनी आंखों में कौतुहल था, उत्सुकता थी और भविष्य की अनिश्चित सी तस्वीर थी। रूपा ठीक हो जायेगी ? या फिर नहीं होगी ? होगी तो कैसे ? क्या करेगे फादर जोश ? मंत्र से ठीक होगी ? या फिर दवा से ? अनगिनत प्रश्नों का पहाड़ था,
फादर जोश ससंध कुर्सियों को छोड़ सीधे रूपा के पास पहंुचे, भीड़ में एकदम से शांति छा गई, सारे के सारे एकाएक चुप हो गये, मानों किसी बिजली के बटन से उनका मुंह बंद कर दिया गया हो,
‘कितने दिन हो गये बेटी!” फादर जोश की आंखों में पानी था। वो ईश्वर के बच्चों का दुख देख हमेशा द्रवित हो जाते थे।
”कुछ बीमारी थी ?’’ महीन आवाज फिर भीड़ में गूंजी,
रूपा ने न में सर हिलाया प्रत्युत्तर में,
‘‘प्रभु के आशीर्वाद से सब ठीक हो जायेगा, मत रोओ बेटी! मै जैसा कहता हूं वैसा करो। मैं भी प्रभु से प्रार्थना करता हूं। तुम भी सच्चे दिल से प्रार्थना करना।’’ सबसे पहले सिस्टर सूजी की ओर देखा तो वह तुरंत ही अपने बैग से मां मरियम और ईसा मसीह की फोटो निकाल कर बिना हत्थे वाली कुर्सी पर रख दी। और सिस्टर मार्था अपने बैग से एक शीशी निकाली उसे भी कुर्सी पर रख दी। वातावरण निशब्द हो गया, हवा भी रूककर देखने लगी, अब क्या होगा ?
फादर जोश ने अपने दोनों हाथ ऊपर किये और कुछ बुदबुदाया फिर प्रभु की ओर देख कर हाथ जोड़कर कुछ बुदबुदाया और न जाने कहां लीन हो गये। मानों इस दुनिया से बाहर की दुनिया में चले गये हों। पांच सात मिनट के बाद उनकी आंखें खुली और रूपा की आंखों से टकराई रूपा हिल गई उनका शरीर सारा शरीर कांप उठा।
‘‘बेटी! तेरे पापों की सजा के लिए मैंने प्रभु से माफी मांग ली है। उन्होंने तुझे माफ कर दिया है। वो तो सबको माफ करते हैं। सिर्फ सच्चे दिल से उनसे प्रार्थना करनी होती है। विशाल हृदय के स्वामी हैं प्रभु, दया के सागर हैं, उनके हृदय में झांको वो अवश्य मिलते हैं। वो सबकी सुनते हैं। सबकी बिगड़ी बनाते हैं। तुम्हारी सच्ची प्रार्थना ने उनका दिल दªवित कर दिया है।’’ क्षणभर को रूके और क्षण भर में ही भीड़ की प्रत्येक आंखों से दो चार होकर बोले- ‘‘अब तुम अपने प्रभु का नाम पुकारो। घबराओं नहीं प्रभु ने तुम्हारे सर पर हाथ रखा हुआ है। मैं देख रहा हूं अब तो तुम्हें ठीक होना ही है।’
”प्रभु ईसा की जय!” एक ही पल में एक ही सांस में रूपा की आवाज भीड़ में गूंज गई। कुछ पल को अवाक लोग मानों होश में आये और प्रभु ईसा के जयकारों से बस्ती गूंज गई। फिर तो होड़ लग गई फादर जोश के चरणों की धूल पाने को। एक बार, दो बार, बार-बार लोग चरण रज माथे पर मल रहे थे। फादर जोश भी दोनों हाथों से उन पर जी भर कर आशीर्वाद लुटा रहे थे।
तभी सुकटा की बीवी चकरी फादर के चरणों को पकड़ कर आंसुओं से भिगोने लगी। फादर जोश ने उसे उठाकर गले से लगाया बोले- ‘‘बेटी! मेरे चरणों की धूल से कुछ नहीं होता है वो तो प्रभु करते हैं सब कुछ; हम तो सिर्फ डाकिये हैं। तुम्हारी चिठ्ठी प्रभु तक पहुंचाते हैं। प्रार्थना करते हैं विनती करते हैं। तुम्हारे बदले हम प्रभु के चरणांे में सर झुकाते हैं। दयालु प्रभु मान जाते हैं उनका दिल बहुत बड़ा है हर गुनाहगार को माफ करते हैं वो। चलो अब हम तुम्हारे घर चलते हैं तुम्हारे लिए भी प्रार्थना करते हैं।’’
रेला बह पड़ा सुकटा के घर। वहां पहुंच कर फिर से वही हुआ जो रूपा के घर हुआ था। सुकटा के शरीर की ऐंठन खंत्म हो गयी। वो भला चंगा होकर नाचने लगा। प्रभु का गुणगान करने लगा।
चार दिनों के बाद रूपा का घर चर्च बन गया, प्रभु स्थाई रूप से उस गरीब बस्ती में रहने लगे। रूपा ने अपनी वाणी प्रभु को समर्पित कर दी क्यांेकि उनके द्वारा ही उसे मिली थी। माह भर के भीतर रूपा एक लोहे की अलमारी और टीवी की मालकिन हो गई। ईश्वर की कृपा हो गई उस पर।
”ईश्वर सच्चे लोगों की हमेशा विनती सुनते हैं, उनके रोग, शोक और गरीबी को दूर करते हैं; सिर्फ और सिर्फ सच्ची प्रार्थना होनी चाहिए।” आज रूपा फादर जोश की तरह अपनी सहेलियों और रिश्तेदारों के झुण्ड को समझा रही थी, ‘‘आज मेरे अंदर सच्ची भक्ति है इसलिए मेरी बीमारी ठीक हो गई और धन भी आ रहा है।’’
”हमें क्या करना होगा दीदी ?” एक सहेली पूछी।
”हम कैसे ईश्वर की भक्ति करें, जिससे जल्दी धनवान हों और गरीबी दूर हो ?”
हर किसी के चेहरे पर प्रश्न तैर रहा था और सुई की आवाज वाली शांति थी उत्सुकता थी। सबके इस तरह घेर कर बैठने से रूपा का आत्मविश्वास आत्मभिमान में बदलना चाह रहा था। उसकी चुप्पी उन औरतों में उकताहट पैदाकर रही थी कि तभी रूपा बोली ”प्रण करना होगा हमें ईश्वर की भक्ति का।” उंगलियों का ईशारा करती कई जोड़ी आखें दीवार पर लगी मां मरियम और ईसा की फोटो पर टिक गई।
चुप्पी पर चुप्पे का राज सा छा गया, कश्मकश की आवाजें बगैर कहे उठ रहीं थी, एक-एक चेहरे का आत्मविश्वास से अध्ययन करती रूपा खोज रही थी, उस आंखों के जोड़े को जिसमें संभावना थी आखिर मिल ही गई वो आंखंे।
”हां, तुम कहो क्या कहना है तुम्हें ?” शांति की ओर ईशारा था रूपा का,
”मैं तैय्यार हूं दीदी!” उसके स्वर में जोश था और भविष्य के आनंद की हिलोरें अभी से दिख रहीं थी,
”तैय्यार तो मैं भी हूं पर मेरे पति कैसे मानेंगे ?” कुंती बोली चिंता के भाव लिए,
”साम, दाम, दण्ड भेद जिससे बने, वो काम करो। अनशन, सौतन जैसा भी करना पड़े।’’ रूपा मुस्काते हुई बोली,
उन अनेक जोड़ी आंखों में आत्मविश्वास आखिर जाग ही गया।
इधर लालटेन की रोशनी में फादर जोश अंग्रेजी में पत्र लिख रहे थे, चूकिं अंग्रेजी कमजोर थी इसलिए साथ में डिक्शनरी रखे थे और पत्र का मजनून हिन्दी में लिख रखा था, हिन्दी से अग्रंेजी अनुवाद कर वाक्य पूरा कर रहे थे।
’फादर, जय ईशु, आपके और प्रभु के आशीर्वाद से, ईश्वर का बताया मार्ग प्रशस्त हो रहा है, उनके ज्ञान की ज्योति हर ओर फैल रही है। आपके आदेशानुसार हमने बोलती रूपा को गूंगा बनाया और उसे चमत्कार से ठीक कर दिया। सुकटा भी भला चगंा हो गया है। पुरूष वर्ग और नारी वर्ग दोनों को प्रभु के मार्ग पर चलने के लिए सचेत किया। आपका कहना सच है स्त्रियां धर्म जल्दी समझती हैं उनके अंदर आध्यात्मिक शक्ति अंदर से ही होती है। वे जल्दी ही ईश्वर के मार्ग पर चल पड़ती हैं। रूपा का नया नाम मरियम रखा है मैंने। उसके अंदर ईश्वर प्रेम की अगाध श्रद्धा है। 200 लोगों की बस्ती ईश्वर के मार्ग पर चल पड़ी है। साक्षात ईसा उनकी बस्ती में विराजमान हो गये हैं। पवित्र यरूशलम का जल पवित्र करने के लिए कम पड़ रहा है। पहली फ्लाइट से ही भिजवाने का कष्ट करें। फिलहाल बचे जल में गंगा जल मिला कर छिड़ककर काम चला रहा हूं। ईश्वर हम सब पर कृपा बनाये रखे, ऐसी कामना के साथ आपका नाचीज फादर जोश।’
सुखद भविष्य की सुखद नींद के साथ चांद तारों का साथ रात भर का ही होता है सुबह का उजाला उन्हें न जाने कहां भेज देता है। सूरज की किरणों ने अंगड़ाई ले हाथ सीधे किये और पसर गये हर कोने-कोने में।

चिड़ियों का कलरव था, गाय भैंसों की आवाजें थीं और आज एक नई आवाज भी साथ में थी मंजीरे और ढफली की, पूर्व की सडक से घीमी आती आवाज तेज होती जा रही थी, और बस्ती में उत्सुकता फैलती जा रही थी,
बस्ती से लगकर खाली पडे़ छोटे मैदान में आवाज की तीव्रता थम गई। शायद आवाज के जनक वहीं रूक गये थे। बस्ती का कोलाहल अब उस आवाज की और बढ़ने लगा। दृष्टि पड़ी लंबे बालों वाली योगिनी, गेरूवा वस्त्रधारी साध्वी माता की ओर।
उनकी बंद आंखों से दहकता तेज, सूरज को भी मात दे रहा था, उनके साथ खडे़ चार और गेरूआ वस्त्रधारी मंजीरे और ढफली की गति बढ़ाते जा रहे थे मानो साध्वी माता का तेज और बढ़ता जा रहा था उसकी गति के साथ। कौतुहल के साथ लोग घेर कर खडे़ थे। उन पांच साधुओं की हरकतों का अध्ययन कर रहे थे।
बस्ती के जीवंत होते ही साधुमाता की चाल धीमी होकर रूक गई और वे बस्ती के पास ही रूक गईं। उनके चेले भी ढफली मंजीरा अपने कंधे पर लटके झोले में डाल, झटपट उस स्थान की साफ-सफाई करने में जुट गये। वह स्थल कुछ ही पलों में काफी महत्वपूर्ण नजर आने लगा क्योंकि पीपल का वृक्ष अपनी गोद में साधुमाता को समेटे था। अजीब सा आकर्षण था चेहरे पर, क्रोध से भरी आंखें और चेहरे पर मुस्कान, पालथी मारकर दोनों हाथो में दो जपमाला (जाप), जो एक साथ एक-एक मोती की दूरी तय करती थी।
सबसे पहले बस्ती से रामसेवक आया और साधुमाता के चरणों की धूल माथे पर लगाया, आस पास के वातावरण को निहारती साधुमाता की चलायमान आंखें रामसेवक पर स्थिर हो गईं। साधुमाता की आंखों का तेज रामसेवक की पुतलियों को चौड़ाकर उनके विचारों को मस्तिष्क के भीतर जाने का राजमार्ग तैयार कर दिया।
‘‘तेरे रक्त में राम का रक्त है इसलिए अब तक संस्कार जीवित है, तू पूर्व जन्म में हनुमान भक्त था उसके मंदीर का पावन पुजारी था, तभी तो तेरे माथे पर तिलक की जगह पर निशान है।’’ माता ने वायुमार्ग से उसके पूर्व भव की यात्रा सम्पन्न कर विवरण दिया……
रामसेवक थर-थर कांपने लगा। उसकी टांगें उसका ही भार उठाने में असमर्थ बता रही थी। अचानक जो उसके कंधों पर ईश्वर की भक्ति का भार आ गया था। साधुमाता की अमृत वाणी से अभिभूत रामसेवक जड़ हो गया। वह नहीं बोल पाया कि मुहल्ले के रहमत की डण्डे से चोट खाई गिल्ली का गुस्सा उसके माथे पर फूटा था। ईश्वर से नजदीकी का अनुभव उसके शरीर में रोमांच भर रहा था जबकि वह आज तक मंदीर की चौखट से अंदर नहीं गया था। उसके अनंत जन्मों की दुष्टता, घृणा का आवरण उसकी निर्दोष आत्मा जो ओढ़ रखी थी और वह आज भी दलित बनकर ही पैदा हुआ है परन्तु साधुमाता की दिव्यदृष्टि की यात्रा ने पूर्व भव की सच्चाई को बता उसकी उत्कृष्ठता बता दी थी। अपनी उत्कृष्ठता का तरह तरह का सबूत दिमाग के दरिया मे तैरते हुए तटबंध पर टकरा रहा था, उसे अब समझ आ रहा था कि क्यों उसे रहमत के घर का पानी भी मानव रक्त की तरह लगता है और मजबूरी में रोज रात को वहीं का चखना और पानी दारू के साथ सेवन करता रहा।
’’हनुमानजी ने फिर तुम्हें सेवा का मौका दिया है। तुम्हें पुनः उनके लिए दीप धूप लाली की व्यवस्था संभालनी है।’’ क्रोध से भरी आंखों में लपट ही लपट थी पर वाणी में अनंत मिठास थी।
सम्मोहित रामसेवक साधुमाता के चरणों में लोट गया। चेलों ने उसे उठाकर बैठाया, तो उसकी नजरों के सामने पीपल की जड़ों के बीच हनुमान जी केसरिया रंग में नजर आये। हवाओं ने गंध की तरह यह खबर बस्ती मंे फैला दी। कुछ एक संकोच के साथ संध्या कीर्तन में शामिल हो गये, नारियल का प्रसाद सबको मिला। वे सब ईश्वर की स्वयं ही सेवा करने का सौभाग्य पा रहे थे इसलिये उनके हहृय कृतज्ञता से लबालब भरे थे।
’’ईश्वर ने हमें भेजा है तुम्हारी रक्षा के लिए, हम उनकी आज्ञा का पालन करने आये हैं। ईश्वर की कृपा पाने के बाद उनकी आज्ञा का पालन करना विशेष कृपा पाने का साधन बनता है। जहां ईश्वर विराजमान वहां देवी देवताआंेें का वास हो जाता है फिर ऐसी कोई शक्ति नहीं जिसकी हिम्मत हो आस पास फटकने की। उसकी पंूछ पकड़ कर अंतरिक्ष में फंेंक दिया जाता है।’’ पल भर को तप्त आंखों को शीतल किया, ताजी सांस का झोंका अंदर फेंका, प्रतिक्रियाआंे की जांच की, अनुकूलता का अहसास होते ही फिर से सुकून की सांस भितराई।
जनता भयभीत थी किसी अनजाने भय से जो साधुमाता की भविष्यवाणी के अनुसार आने वाली थी। बडी हिम्मत के बाद रामसेवक ने ही बिल्ली के गले में धण्टी बांधी।
’’कैसी विपत्ति है माता ?’’
’’शैतानी ताकत है जिसकी गंदी सी गंध आ रही है, जो हर घर जायेगी।’’ कहकर मौन हो गई साधुमाता और आंखें बंद। चेलों ने नव भक्तों को उठने का ईशारा किया और बोले ’’माता जी यह शरीर त्याग कर ईश्वर से मिलने गई हैं अब उन्हंे परेशान मत करो। कल आना।’’ और अपने हाथ जोड़ दिये।
अनमने से उठते भक्तों का मन शंकित था उन्हें माता के इस पवित्र स्थान में सुरक्षा का अनुभव हो रहा था बाकी प्रत्येक स्थान शैतानों से ठसाठस भरा लग रहा था, मजबूरी थी घर जाना, चल पड़े वे। वृक्षों पर लटके शैतान उन्हंे लपकने को तैयार थे, नाले पर बने पुलिया के नीचे से खींचने को तैयार थे। कुछ शैतान झाड़ियां बन गये तो कुछ सरसराहट में बदल गये। लगभग 500 मीटर का फासला नरक कुण्ड का द्वार बन गया।
शंकाओं से भरी नींद में भी हर ओर कल्पित शक्ल वाले शैतान ही शैतान दिख रहे थे। शैतान मेहनत के मजदूरों से भीे खतरनाक थे इसलिए शायद वे सोने में भी अड़चन लगा रहे थे।


सप्ताह भर तक बेचैनी कायम रही, अब तक कल्पित शैतान ही परेशान करते रहे कि एक रात लगभग एक बजे रामसेवक चिल्ला चिल्ला कर इधर-उधर भागने लगा उनींदे लोग डरते कांपते घर से बाहर आ गये।
पर वास्तविकता तो चिल्लाते रामसेवक की आंखों में थी उसे चुप कराना जरूरी था। उसकी चिल्लाहट कम न होती देख दो लोग दौड़ते भागते साधुमाता की ओर चले गये। मानों हवा बनकर वो अपने चेलों के साथ आ गई उन्हंे देखते ही रामसेवक एकदम से चुप हो गया।
’’तुझे मना किया था न यहां आने।’’ चिंघाड़ती साधुमाता चंडालनी का रूप लग रही थी। जिन्हें देखकर रामसेवक से ज्यादा डर लग रहा था। ’’तुझे मैंने पाताल मंे बंद किया था, भस्म नहीं हुआ फिर आ गया ?’’
’’तू मुझे मारेगी ? मैं तो नहीं मरा…ले फिर आ गया, कोई मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता, मैं तो अमर हूं जो मुझे नुकसान पंहुचायेगा मैं और ताकतवर बनकर आऊंगा।’’ रामसेवक जोर-जोर से चिल्लाया तब तक साधुमाता अपनी जटा से एक बाल तोड़कर रामसेवक पर चढ़ गई और उसके कान में वह बाल बांध दिया। रामसेवक एकदम शांत हो गया ठीक उसी वक्त साधुमाता का एक चेला चिल्लाने लगा फिर जोर जोर से हंसने लगा।
’’तू मेरा क्या बिगाड़ेगी ? मैं तो पल में यहां पल में कहां ?’’ कोई कुछ समझता कि वह चेला गिर पड़ा तो दूसरा चेला अट्टाहस लगाया फिर वो गिर पड़ा, तीसरा डरकर साधुमाता से आकर चिपक गया। तब तक चौथा हंसने लगा। जनता मूर्खो की तरह पलकें झपका रही थी, और साधुमाता शेरनी की तरह चौथे चेले की और झपटी तब तक वातावरण शांत हो गया। कुछ देर की चुप्पी ने उस शैतान के जाने का संकेत दे दिया था। अचानक ही यह बस्ती फटी आंखों और गूंगों की बस्ती बन गई। साधुमाता ने अपनी चौकन्नी आंखों को विश्राम दिया। चेलों के विशेष आग्रह पर रामसेवक की झोपड़ी में विश्राम किया।
सुबह के बाहे फैलाते सूरज की अंगडाई ने भी साधुमाता का अभिवादन किया। आधी से ज्यादा बस्ती हाथ जोड़ कर सामने धरती पर घुटने मोड़कर बैठी थी, जिसमें रहमत भी था, चिडकी बाई, रामसेवक सभी थे जबकि आंखों में सिर्फ और सिर्फ सवाल थे जो साधुमाता से जवाब चाहते थे।
’’यह शैतान घर-घर जायेगा वो भी आधी रात के बाद एक रोटी और एक मिर्च मांगेगा।’’ साधुमाता याद करती सी बोली, – ’’इसकी शरीर में घुसने और निकलने की गति इतनी तेज है कि कोई समझ ही नहीं पाता है कि ये अभी किस शरीर में है। किसी भी व्यक्ति के शरीर में समाकर ही आता है।’’ चुप्पी के कुंछ और पल बीते तब रहमत पूछा- ‘‘ऐसे में हम कैसे पहचानेंगे उसे ?’’
भीड़ का प्रश्न प्रतिप्रश्न वक्ता को संतुष्टि प्रदान करता है क्यांेकि वह बताता है कि श्रोता का ध्यान वक्तव्य में है, कुछ तो उसके दिमाग में समा रहा है। साधु कभी भी प्रतिप्रश्न पर नाराज नहीं होता है बल्कि खुश होता है।
’’वो मांगेगा तुमसे कुछ भी, पर रोटी और मिर्च मांगने वाला हो तो वह शैतान ही होगा।’’ साधुमाता की सीधी बातें भी उनके चेहरे की तरह अचानक गोल-गोल हो र्गइं। अनगिनत डंक हवा में तैरने लगे, और औचक ही यह बस्ती हर किसी के लिए अनजानी हो गई।
बस्ती की मगज कुश्ती में साधुमाता ने अपनी वाणी से विराम चिन्ह लगाया। ’’शांत! शांत!! शांत!!!’ अपने दोनों हाथों को भीड़ की ओर हिलाते हुए कहा।
‘‘उससे बचने का मैं तुम्हें उपाय बताउंगी, कोई परेशान न हो। हमें भेजा गया है तुम्हें बचाने। तुम्हारी रक्षा करने। हम जब तक तुम्हारे साथ हैं कोई तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकता है।’
’…….’
’तुम सब अपने अपने घरों के बाहर सिन्दूर से हनुमान जी की पूंछ बनाओगे, जो ठीक दरवाजे के बाजू में सीधे हाथ की ओर होगी। पंूछ में बालों की जगह शिवजी को चढ़ाई जाने वाली दूब को गुड़ से चिपकाना होगा। संध्या के वक्त गाय के गोबर को पानी में घोल कर घर के चारो और घेरा बनाना होगा। देखें फिर कैसे कौन शैतान यहंा आता है।’’ इस ईश्वरीय घोषणा के बाद तो मानों भीड़ में जान आ गई। प्राणों का संचार हो गया।
ईश्वर के चमत्कारों से आकाश गूंज गया। हर कोई का चेहरा कमल की तरह खिला खिला नजर आ रहा था। पिछले 6 दिनों की मुर्दानी आज दूर हो गई थी। सभी उपाय में लगने वाली सामग्री की व्यवस्था में लग गये।
एक बडे यज्ञ के आयोजन की तरह व्यवस्था होने लगी। घण्टे दो घण्टे में सारी बस्ती लाल रंग के चिन्हों से भर गई, दरवाजे खिड़की दीवार सभी जगह हनुमान जी की पूंछ ही पंूछ नजर आ रही थी।
’’तू भी बना ले रूपा! अपने घर में, वरना शैतान तुझे ले जायेगा।’’ चिडकी बाई रूपा के घर पर आकर बोली।
’’ये शैतान-वैतान कुछ नहीं होता है। मुझे कोई डरने की जरूरत नहीं। मैं अपने ईश्वर की भक्ति में लीन हूं।’’ रूपा ने उसे झिड़क कर कहा। पर उसकी आंखों का भय बूढ़ी चिडकी ताड़ गई।
’’देख रूपा! गरीब की जान से ज्यादा कुछ नहीं होता है। करना क्या है, तू नहीं तो मैं ही बना देती हूं। तू अपने ईसा को पूजती रह, मैं तेरे घर में हनुमान जी की पंूछ बना देती हूं। आखिर में जान का बचना ज्यादा महत्वपूर्ण है कि नहीं।’’ चिडकी बाई का दांव खाली न गया, हनुमान जी की पंूछ बन गई घर के द्वार पर।
रूपा बडी मुश्किल में थी उसकी छोटी बुद्धि काम नहीं कर रही थी। कहीं फादर जोश की तरह ये साधुमाता भी अपनी दुकान तो नहीं चला रही है ? उसका दिमाग अब भी सोच रहा था कहीं उसके गंूगेपन के नाटक की तरह रामसेवक भी कही नाटक तो नहीं कर रहा था, परन्तु रामसेवक के साथ-साथ चार चेलों की विकट स्थिति देख चुकी थी, प्राण कांप गये उसके, पर…….पर पूरे गांव की तैयारी और पूरे गांव का भय भारी पड़ रहा था।
उसके अस्थाई चर्च में अब एक दो लोग ही धर्म साधना और ईश्वर भक्ति में आ रहे थे। इतने लोगों का एक तरफा विश्वास उसके झूठ पर टिके विश्वास को बार-बार धक्का दे रहा था, फिर फादर जोश के अहसानों का बोझ उसे आंतकीत कर रहा था। कुछ सोचकर उसने धीरे से ईसा की फोटो का कलेन्डर लाकर उस पूंछ के ऊपर टांग दिया और ईसा की जाप रात भर करती रही।
दो दिन तक शांति का आलम था सिर्फ और सिर्फ चर्चाआंे का जोर था। शैतान की शक्ल पर सारा गांव पी एच.डी. कर रहा था लंबी, चौड़ी, मोटी, गाय, भैंस, सूअर और शेर सबसे तुलना हो चुकी थी। संध्या सात बजे हनुमान चालीसा का पाठ रामसेवक का भाई कर रहा था, क्योंकि वही एक मात्र ज्यादा पढ़ा लिखा था।
तभी रामसेवक उस रात की तरह फिर चिल्लाने लगा। साधुमाता जो पास ही ध्यान मग्न थी एक झटके में उठी और लपक कर रामसेवक की गर्दन थाम ली। वो किकियाने लगा मानों उसकी सांसे रूक गई हो।
’’बोल तू भाग कर कहां गया था उस रात ? आज तो तेरी मौत है।’’ साधुमाता की आंखों के साथ साथ वाणी में भी अंगारे दहक रहे थे। ’गूं गूं’ की आवाज ही आई वह कुछ बोल न पाया। साधुमाता ने अपनी बाहों का घेरा जरा ढीला किया जिससे रामसेवक की गर्दन जरा सी मुक्त हो गई और वह लंबी लंबी सांसें लेने लगा।
’’आखरी सांस है तेरी। अब तो तुझे मरना ही है सांस की जगह, ईश्वर का नाम ले वरना कई जन्मों तक मानव नहीं बन पायेगा।’’ साधुमाता तरस खाती बोली।
’’मुझे मत मारना, मैं यहां से चला जाऊगा। किसी को नहीं सताऊंगा चुपचाप चला जाऊगा।’’ राम सेवक गिड़गिड़ाता बोला।
’’जब मैंने तुझे उस दिन धमका दिया था फिर भी तू इस गांव में, इस बस्ती में रहा। कैसे रह गया इस बस्ती में ? कहां छिपा पड़ा रहा ? क्या तुझे हमारे ईश्वर से जरा भी भय नहीं है ?’’ अनेक प्रश्न बंदूक की गोली की तरह दागती वह साधुमाता साक्षात काली नजर आने लगी।
रामसेवक चुपचाप एक ओर हाथ से ईशारा किया और फिर एक घर की ओर ऊंगली तान दी बस्ती की सारी नजरें उस ऊंगली की ओर घूम गईं। रूपा अपने घर के बाहर खड़ी थी, थर-थर कांपने लगी। उसकी आंखों में अंधेरा हावी हो गया।