बढ़ते कदम- अनिता चांडक की कविताएं

आसमान

धरती पर गड़ा वृक्ष, आसमान की ओर बढ़कर फलेगा।
आसमान की वर्षा से, धरती का जन-जन पलेगा।
जाने कब आसमान ,धरती से मिलेगा?
और, क्षितिज के होने का भ्रम टलेगा।

रात

ना समझो रात को कोई काली स्याही।
सुनहरे सपनों की कहानी लिखती है रात।
प्रेम की डोर को मजबूत बनाती है रात।
बीते कल के पल को सहलाती है रात।
अंधेरा क्या होता है बतलाती है रात।
खत्म करके खुद को नया सवेरा लाती है रात।

दोपहर

चार पहरों में, सबसे प्यारा दोपहर
बचपन में, गर्मी की दोपहर
हम मोहल्ले के शेर थे
सर्दी की दोपहर, आलस्य के ढेर थे
वर्षा के मौसम में, चिढ़ाता था दोपहर
फिर भी, चार पहरों में सबसे प्यारा दोपहर
अब उम्र का दोपहर जारी है
जहां, सुबह मेरी परछाई पीछे
तो शाम आगे चली जाती है
केवल दोपहर में ही, मेरी परछाई मुझ में समाती है
कहने को तो, दोपहर का धूप झुलसाता है
मैं एक गृहणी हूं, मुझे तो वो ही आराम और सुकून के पल दिलाता है
दोपहर मेरा सबसे प्यारा साथी है
सबसे प्यारा साथी है।

अनीता चांडक
जगदलपुर
मो.-97539 19743