विज्ञान व्रत की ग़ज़लें

ग़ज़ल —–
मुझको     लेकर    सोचेंगे
पर    गूँगे    क्या    बोलेंगे
काग़ज़     कोरा     छोड़ेंगे
वो जब  मुझको  लिक्खेंगे
मैं  अब  उनकी आदत  हूँ
वो   मुझको  क्या   छोड़ेंगे
जिनसे   मेरा   झगड़ा    है
मेरे      अपने      निकलेंगे
जितना   सुलझाओगे  तुम
रिश्ते      उतना     उलझेंगे
ग़ज़ल —–
मुझको     समझा     मेरे    जैसा
वो  भी   ग़लती   कर    ही  बैठा
उसका   लहजा   तौबा ! तौबा !!
झूठा    क़िस्सा    सच्चा   लगता
महफ़िल- महफ़िल  उसका चर्चा
आख़िर   मेरा   क़िस्सा   निकला
मैं   हर   बार    निशाने   पर   था
वो    हर   बार    निशाना    चूका
आख़िर     मैं      दानिस्ता    डूबा
तब   जाकर    ये   दरिया    उतरा
विज्ञान व्रत
एन – 138 , सैक्टर – 25 ,
नोएडा – 201301
मोब .  9810224571