उंगलबाज

कौन गरीब

“भाई सब लोग मिलकर 1100/- रुपये दे रहे हैं। तुम कब भिजवा रहे हो।“-देवेंद्र का फोन था पर मैं चुप था। लगातार की चुप्पी ने देवेंद्र को फोन काटने पर मजबूर कर दिया।
मैं अपने दुकान की एकाउंट बुक्स खोल कर देख रहा था, लेनदारी का पहाड़ था। तभी सपना की आवाज आई।
“सब्जीवाला आया है 200/- का पैकेट है। आओ न जल्दी। और हां बर्तनवाली का 2000/- भी लेते आना।“
मैं रुपयों की खोज खबर लेकर दरवाजे पर आ गया। सब्जी वाले को पैसे देकर सब्जी ली, तभी उसके ठेले में लगभग 10 किलो चावल का पैकेट दिखा। मैंने उससे पूछ लिया-“चावल भी बेच रहे हो क्या?“
“नहीं भैया, सभी गरीबों को लॉक डाउन के चलते बांट रहे हैं न! वही मिला है।“ वह जवाब देकर चला गया मैं पलट कर अपने पक्के घर को देख रहा था।