मन के सागर में डुबकी लगा
कभी यूँ ही स्वयं से
मिल,
जैसे हो कोई गहरी
झील।
शांत वार्ता कर
हो दुनिया से बेखबर,
जहाँ हो तू सिर्फ तू
न आये कोई नजर।
अपने आप की दुनिया
में खो
अपने आप से मिल,
जैसे दिखे वो गगन
नील।
दूसरों से न पूछ
समस्याओं के हल,
ठहर स्वयं में
जैसे कुंड का
शांत जल।
स्वयं से मिल
स्वयं को जगा,
कभी तो मन के सागर में
डुबकी लगा।
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कु. गरिमा पोयाम
जिला:- कांकेर(छ. ग.)