काव्य-जैन करेलिवी

(1) मोबाइल यूं चढ़ा ज्यों मसान का भूत, पेंशन लेते बाप हों या नकारा पूत। नकारा…

काव्य-देव भंडारी

तटस्थों का शहर सब तटस्थ हैं यह तटस्थों का शहर है। न कोई शत्रु यहां, न…

ग़ज़ल-बरखा भाटिया

-1- हैरां हूं सियासी घोड़ों को बेलगाम देखकर नंगे हो गये सबके सब, हमाम देखकर। अकाल…

काव्य-मोहिनी ठाकुर

(1) दिन को बना लिया बिछौना, रात ओढ़ ली अब चांद निकलने की, हमने आस छोड़…

काव्य-कृष्णचन्द्र महादेविया

धर्म सोपुर के पुल पर कुछ कहा था पीछे से उसने शायद कश्मीरी में मुड़ा था…

काव्य-पुरषोत्तम चंद्राकर

हाइकू जल तरंग इंद्रधनुष रंग मन पतंग। मखमल में टाट पर पैबंद बेजान रिश्ते। गुरू की…

काव्य-नवल जायसवाल

जाने के कारण मित्र! यदि आप मित्र हैं तो कहना चाहूंगा मैं तेरी ओलती में खड़ा…

काव्य-अशोक आनन

हमने घर-घर बस्तर देखे कैसे-कैसे मंजर देखे दुश्मन घर के अंदर देखे। बस्ती का क्या हाल…

हाइकु-केशव शरण

पावसवश पोखरे की पेंदी में पानी हो गया। वक्त पे आके ट्रेन आउटर पे घंटों से…

हाइकू-विभा रश्मि

पेशेवर प्रेमी खुली रखे खिड़की तके लड़की। कमल कींच खिला तलैया बीच नशे में भौंरा। भ्रमर…