पावसवश
पोखरे की पेंदी में
पानी हो गया।
वक्त पे आके
ट्रेन आउटर पे
घंटों से खड़ी।
ये तय है कि
चमत्कार के सिवा
कुछ न होगा।
देख लिया न
छेदट्टे बिस्कुट से
चाय छान के।
निवेदन है
मौनव्रत टूटे तो
मीठा बोलना।
चिड़िया चुप
झींगुरों का गायन
शुरू हो गया।
दोपहर में
निकले सूरज की
धूप है मीठी।
मुलाकात थी
आज भी टल गयी
आखिरकार।
पड़ रहा है
कपड़ा उतारना
स्नान के लिए।
चिड़िया को ही
चिड़िया कहता है
छोटा बालक।
मार लिया है
गुबार ने मैदान
शस्य श्यामल।
किस नदी में
किस सरोवर में
निर्मल जल।
फूल खिला तो
तितली भी आ गयी
उस कब्र पर।
एक फरिश्ता
बोतल से पी रहा
डिब्बे का दूध।
फल से ज्यादा
तीलियां कुतरता
वो नया तोता।
उसके आंसू
कोई नहीं पोंछता
जो सदा रोता।
वर्षों हो गये
अंतिम अतिथि को
यहां से गये।
हनीमून से
लौटने के बाद
शादी सोचेंगे।
फल लगे हैं
प्रेम के पेड़ पर
हर किस्म के।
रह गया मैं
सतत संघर्ष में
कि हारा नहीं।
केशव शरण
एफ 2/564 सिकरोल
वाराणसी
मो.-09415295137