ग़ज़ल-बरखा भाटिया

-1-
हैरां हूं सियासी घोड़ों को बेलगाम देखकर
नंगे हो गये सबके सब, हमाम देखकर।
अकाल के मौसम में, जश्न मना रहे ऐसे
के चश्मे चटक उठे हैं, इंतजाम देखकर।
संगदिल मुझे कह लो या कह लो बेशरम
जिन्दा हूं रोज़-रोज़ कत्लेआम देखकर।
शहर बहुत प्यासा है उन्हें फिक्र है बड़ी
आया यकीं, दावत में बहता जाम देखकर।
नरगिसी सुबहों से परेशान थे कुछ लोग
आया करार, खून भरी शाम देखकर।
तिजोरियों में छुप गया, किसी सुरसा सा बजट
सरकार फिर भी खुश है, सारा काम देखकर।
फीता काटने के वास्ते हुजूर आयेंगे
देहात चुप है, शहरी तामझाम देखकर।
हर साल बदलते हैं, कायदे लूटमार है
राहत की सांस ले रहे, निजाम देखकर।
ये ठाठ ये सवारी, ये फौज, ये बंदूक
राहों में बिछ गये हैं, हम गुलाम देखकर।

-2-
रचा रही है राजनीति, तरह-तरह के रास
रावण बैठे गद्दी पर, राम गये वनवास।
भोग और ऐश्वर्य का अधिकारी है झूठ
सच्चाई के हिस्से में, कैद, घुटन और त्रास।
निर्णय के दरबार में, गूंजी ये चित्कार
अन्यायी की चौखट का, न्याय बना है दास।
अपंग बेचारी सभ्यता, चली पतन की ओर
झेल रहे हैं जीवन मूल्य, अभी स्वयं का हरास।
मंदिर का कलश बना, आडम्बर का पात्र
मस्जिद की मीनार में, कट्टरता का नास।
लहु के दरिया में फंसी, कश्ती कौमों की
मानवता की सीख, सबक बस कोरी बकवास।
वो कहते हम देख रहे, बच्चों के भविष्य
जिन्हें ना दिखते, खाली पेट के गढ्ढे, नजर उदास।
उसके मालिक ने न समझी, सिसकी आंतों की
पीता है वो पानी दिनभर, रात रखे उपवास।
अपनों पर शक करना, अब समझदारी की बात
और गुनाह सबसे बड़ा, गैरों पर विश्वास।
-3-
अबूझों का आदिवासियों का प्यारा बस्तर
छत्तीसगढ़ की आंखों का तारा बस्तर।
सदियों से भूखा-प्यासा है, अनाज उगा के
कंदमूल से करता है गुजारा बस्तर।
कोसा है रेशम है पर नंगा है गरीब
लंगोटी पहनता रहा, हमारा बस्तर।
दिन-रात गुजरते हैं महुआ बटोरते
बोतल में डूब जाये, थका-हारा बस्तर।
पथरीले रास्ते पर खाता रहा ठोकर
सहारा ढूंढता है, बेसहारा बस्तर।
ना खिलाड़ी नजर आये, ना बिसात है दिखती
जाने जीत मिली किसको, किसने हारा बस्तर।
ना हुसैन की तस्वीर, ना निराला की कविता
शोषण का गरीबी का है नजारा बस्तर।
कब चाही थी बस्तर ने बारूद गोलियां
लहुलुहान हालात का है मारा बस्तर।
क्या बेबसी है अपनी ज़मीं छोड़ चले हम
गुमराह बांकुरों ने यूं, बिसारा बस्तर।
अश्कों खूं से भरा दामन निचोड़ रहे हैं
जिन हाथों ने जमीं पे था, उतारा बस्तर।
जख्मों पे लगाए गए मरहम करोड़ों के
सिसक रहा है फिर भी क्यों, बेचारा बस्तर।
ये सवाल पूछती है खामोश निगाहें
क्या कभी न मुस्कुरायेगा, हमारा बस्तर।

बरखा भाटिया
सरगीपालपारा, कोण्डागांव छ.ग.
मो.-09752392921