जैसे छू लो आसमान जैसे छू लो आसमान कुछ इतना ही आसपास थी मृत्यु कुछ इतना…
Category: पद्य
डॉ.सूर्यप्रकाश अष्ठाना ‘सूरज’ की ग़ज़लें
ग़ज़ल साया हटकर राहगुज़र से। अंजाना था वक्ते सफर से।। कोई तुम्हारे ग़म ना समझे, लेके…
उर्मिला आचार्य की कविता एवं हाइकू
टेढ़े-मेढ़े रास्ते पूनम की रात मेला मंडई के बाद लौट रही मां-बेटी साथ-साथ दूर गांव घर…
माधुरी राऊलकर की गज़लें
ग़ज़ल उन्हें नामों में ढ़ालने से, कुछ नहीं होता बेवजह रिश्ते पालने से, कुछ नहीं होता।…
पूर्णचंद्र रथ की कविता
सौदा घर और बाहर गूंज रहे प्रार्थनाओं के स्वर उधर सिरफिरे चंद, लुटेरे यहां वापसी की…