ग़ज़ल
उन्हें नामों में ढ़ालने से, कुछ नहीं होता
बेवजह रिश्ते पालने से, कुछ नहीं होता।
वो आयेगा सताकर, रूलाकर चला जायेगा
बुरे वक्त को टालने से, कुछ नहीं होता।
अच्छे बुरे करम ही हमेशा साथ रहते हैं
मंदिर में पैसे डालने से, कुछ नहीं होता।
किसी को तूफां से बचाना आना चाहिए
सिर्फ कश्ती संभालने से, कुछ नहीं होता।
कहीं और ढूंढ लेते हैं, वो अपनी पहचान
एक महफिल से निकालने से, कुछ नहीं होता।
अच्छा नहीं होता
इतना लंबा सफर, अच्छा नहीं होता,
थकान का असर अच्छा नहीं होता।
हमको यूं ही हमेशा लगा रहे,
हमको चीज़ का डर अच्छा नहीं होता।
जहां लोग लड़ते रहते हैं अक्सर,
ऐसा कोई घर, अच्छा नहीं होता।
लिबास तुम्हारा भले ही अच्छा हो,
बातों में ज़हर, अच्छा नहीं होता।
ज़िन्दगी अपनी दांव पर लगे ऐसा,
जानलेवा हुनर, अच्छा नहीं होता।
माधुरी राऊलकर
एम.ए. बी.जे.
छः ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित
76, रामनगर,
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