शिवराज प्रधान की गजलें

ग़ज़ल
आप के मुस्कराने की हर अदाओं ने हमें मारा है
पूछिये भी किसी से, कि हर सवालों ने मारा है।

आते जाते सभी के ही चेहरों पे कहीं तो जख्म है
शीशे पे निहारने की तमन्ना ने ही उनको मारा है।

दिल की बातें भी तुम्हे कैसे लिख भेजें, बोलो
कि अब तो दिल को भी, धड़कनों ने ही मारा है।

यहां अब भी सब वैसे ही दिखते हैं, जैसे थे
मेरी नजरों को, ख्वाबों के भुलावे ने मारा है।

एक वो थी, एक मैं भी था, और सारा जहां भी था
गजभर की तन्हाई में, मुझे मीलों के दर्द ने मारा है।

दूर आये थे, कि अपनो की ही तलाश थी हमें यहां
मिले जो यहां, उन्होंने हमें अजनबी बनाके मारा है।

ग़ज़ल

बात फैल गई जो, जलती आग की तरह
यहां आप मिले मुझे, उड़ते धुयें की तरह।

सच तो कुछ और ही था, उससे छुपाया गया
झूठ भी बोला उन्होंने, इक दिल्लगी की तरह।

दूरियां बन गयी यूं कि बातें भी बदल गयी
अब वो मिले हमसे, कोई हमलावर की तरह।

तमन्ना थी कि हम भी कोई हमसफर बनें
मिले भी जो वो नकाब ओढ़े चेहरे की तरह।

उनसे मिलने की चाहत ने यहां तक तो ले आया
बुलावा भी मिला जो, खुले खबरदार की तरह।

शिवराज प्रधान
दुमचिपरा टी गार्डन
पो.आ.-रामझोरा जिला-जलपाईगुड़ी
पश्चिम बंगाल-735228
सम्पर्क सूत्र : 09734042876