टेढ़े-मेढ़े रास्ते
पूनम की रात
मेला मंडई के बाद
लौट रही मां-बेटी साथ-साथ
दूर गांव घर
बेटी खोई चांद पर
टेढ़े-मेढ़े रास्ते का संकेत
दे रही मां।
मुझे चांद चाहिए
मुझे डर नहीं
वादों का अपवादों का
आपदाओं का विपदाओं का
ले चल हवा मुझे
समय की डोर पकड़
पतंग सा उड़ चल
सत्य की खोज कर
चांद तो मिलेगा ही।
हाइकू
बादल काला
हवा ले उड़ चली
बीज अकेला।
खेत याचक
आंखें प्रश्नवाचक
बरसो मेह।
तू मिलते ही
कूके बंजर भूमि
ओ बरसात।
हरित पत्ते
बादल सहलाते
पावस पाते।
उर्मिला आचार्य
सुभाष वार्ड
जगदलपुर जिला-बस्तर छ.ग.
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