ले के मुहब्बत का नाम, लोग कोसते हैं “सुनील“ को, मशवरा भी दिया था तजुर्बेकार नामुकम्मल…
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फेसबुक वाल से-शैलेन्द्र सिंह
23 जुलाई 2016 हर पत्ते, दरख़्त, जर्रे-जर्रे में तुझे पाता हूँ, अहसास की ये कैसी खुशफहमी…
अंक-8-फेसबुक वाल से ब्रजेश कुमार पांडे
भूख मैं अच्छी तरह जानता हूँ, हजूर भूख नहीं महसूस कर सकते आप आप नहीं जान…
अंक-4-फेसबुक वाल से-संतोष श्रीवास्तव की फेसबुक वाल से
नज़्म ये बारिश की बूंदें मुसलसल बरसती निगाहों में कितनी असीसें उमड़ती हरएक घर के आंगन…
अंक-4-फेसबुक वाल से-प्रमोद जांगिड़ की वाल से
माटी के लोग काठ, पत्थर औैर गारे से बने मकान भूकंप सह न सके ढह गये…
अंक-3-फेसबुक वाल से
याद किया तो ………………… एक साधारण मां-बाप याद किया तो सबसे पहले आये याद फिर घास-फूस…
अंक-2-हिमांशु शेखर झा की कविता फेसबुक वाल से
औक़ात इन बेहद गर्म दिनों बड़ी औकात है सूरज की पर मज़दूर लछमन के सामने क्या…
अंक-2-गिरीश पंकज की कविता फेसबुक वाल से
इतनी कुंठा और निराशा ठीक नहीं सबको गाली देती भाषा ठीक नहीं। आप बड़े ज्ञानी-ध्यानी हैं…
अंक-1-काव्य-सुनील गजनी
-1- एक शब्द नहीं बोली रख लिया पत्थर हृदय पे वेदना, सबकुछ कह गये शब्द, आंखों…
प्रवेशांक-मधु सक्सेना, त्रिजुगी कौशिक, ब्रजेश पाण्डे एवं सुबोध श्रीवास्तव की कवितायेँ
ये यादें मेरा पीछा नहीं छोड़ती- कोई तो ऐसा तीर्थ हो जहां मैं इन्हें अर्पण करूं…