अंक-8-फेसबुक वाल से ब्रजेश कुमार पांडे

भूख


मैं अच्छी तरह जानता हूँ, हजूर
भूख नहीं महसूस कर सकते आप
आप नहीं जान सकते इसका दर्द
अपनी भूख से अधिक इस बात का दुःख
कि दुधमुँहा पी रहा मांड
दूसरे बच्चे के जनते ही
सूख गई है छाती
बस बहलाने के लिए
सटा देती है उसका मुँह
धिक्कारती है खुद को
इससे अच्छी कुतिया है मेरी
पोस रही है मजे में
पांच -पांच पिल्लों को
एक साथ।
हजूर भूख तो आपके पास
झाँकने भी नहीं आती
कर लेती है रास्ता
हमारे टोले का
जहाँ बारह बजे के बाद ही
होता है कुल्ला
ताकि खराई न मारे।
उसी टोले में
जहाँ जलता है चूल्हा
एक बार ही
और रह जाता उपास
रह-रह कर
हर बाप बस इसी जुगत में
किसी तरह
भूखे बच्चे की रुलाई
गली तक न पहुंचे
और माँ/सिंझा कर सागपात
करती उपाय
उतर आए दूध स्तन में
पीकर हो जाए अगम
लेकिन हजूर
हद तो तब हो गई
जब पेट के गड्ढे में बैठे
मेरे बेटे ने
आपकी अटारी पर
उतर आए चाँद को देखकर कहा
रोटी-रोटी!

श्री ब्रजेश कुमार पांडेय
की वॉल से

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