अंक-2-गिरीश पंकज की कविता फेसबुक वाल से

इतनी कुंठा और निराशा ठीक नहीं
सबको गाली देती भाषा ठीक नहीं।

आप बड़े ज्ञानी-ध्यानी हैं मान लिया
लेकिन सब है उक बताशा ठीक नहीं।

परिवर्तन लाने वाले होते हैं थोड़े से
हर व्यक्ति से ऐसी आशा ठीक नहीं।

हमसे ही बदलेगी ये दुनिया इक दिन
काम करो कुछ हर पल झांसा ठीक नहीं।

सब हंसते हैं तुम पे कुछ सोचा भी है ?
हर पल तेरा नया तमाशा ठीक नहीं।


गिरीश पंकज
की वाल से दिनांक
5 सितम्बर 2014