माटी के लोग
काठ, पत्थर औैर
गारे से बने मकान
भूकंप सह न सके
ढह गये
उनमें सोये लोग सदा
के लिए सोये रह गये।
अब क्या है त्रासदी
के बाद वहां
न जीवन उल्लास
न जिजीविषा, न शोर
खामोशी
मरघट सी खामोशी
मलबे से निकले
कुचले हुए सपने
माटी के लोग
माटी हो गये
और…..
मैं सुन रहा हूं कबीर
के भजन
जग मुर्दन का गांव।
साधो जग मुर्दन का गांव।।
श्री प्रमोद जांगिड़
की वाल से