द इंटीग्रेटेड मैन (उपन्यास) का हिंदी – भोजपुरी अनुवाद अनुवादक- श्री ठन ठन गोपाल बुफैलो डूबी वाटर में 1. टाउनशिप ठनकल मोछवा झुक गया था, चौड़ा कन्धा और चमकल आँख के रौशनी गायब. का हुआ खखनू तुमको, सब ठीक बा न…! ना! कुछो ठीक नहीं था, उसके गोड़ का हवाई चप्पल भी आज उदास था, उसका साइकल जे गाज़ी घोड़ा नियर उड़ते रहनेवाला था, उ भी बे-आवाज़ हो गया था. ससुरा के मुंह से न सीटी फुट रहा था न गाना. का गाना गाता, साले के मुंह से बक़ार फूटे तब न…, आज पहली तारीख था, उसके हाथ में महीने भर की कमाई नहीं, नौकरी से बर्खास्तगी का गिफ्ट मिला था ससुरे को! उसका माज़ूर साथी लोग उसको पैदल पैर घसीट- घसीट के चलते देखा तो एही सोचा कि साइकिलिये में कुछ खराबी आ गया होगा, नहीं तो खखनुवा ऐसा है के मोछ ठनका के साइकिल एकदम रेस में नू चलाता है, मज़ाल जे कोई उसके आगे निकल जाये! बाकी ससुरा अपना घर चोर नियर घुसा, जैसे कोई देख न ले, चुपके से आपन गाज़ी सवारी को किनारे लगाया. और दिन के अपेक्षा आज उ जल्दिये घर आ गया था. मनेजमेंट तो बहुते माज़ूर लोग से फॉरम पर दस्तखत लिया था, बाकी उ का जाने के गाज खाली ओकरे पर गिरना था! मय माज़ूर लोग में उहे एगो निकम्मा था, जिसको काम से निकाल दिया गया था. बहिन चो, गांड मार लिया होता, इ उमिर में पेट पे लतिया दिया! बाल- गोपाल और मेहरारू उसको देख के इहे पूछेगा कि बाबूजी, आज पहली तारीख नू है, कल्पतरु हलवाई के कलाकंद कहाँ बा…! अब उ का जवाब दे. जिनगी के भईंसिया पानी में हेल गईल…! कि आज उ थक गया था कि भुला गया था.., का झूठ बोले, कि एके बार में बिना लाग लपेट के सच उगिल दे और बता दे कि उसका नौकरी ख़तम अब चलो गांव, यहां से बोरा बिस्तरा उठाव.., दाना पानी ख़तम! केतना क्रूर सच! कहे तो कैसे…, किस तरह उसपे लेप लगाए..!…
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