विमल तिवारी की लघुकथाएं

याददाश्त

गांव छोड़े लगभग तीस साल हो गये थे, प्राथमिक पढ़ाई पूरी कर जो शहर आया तो पढ़ाई और नौकरी के चक्कर ने कभी गांव जाने का मौका ही नहीं दिया।
इस बार गर्मी की छुट्टी में गांव पहुंच ही गया। चाचा मुझे वही सैलून ले गये जहां बचपन में बाल बनवाया करता था।
देखो यह कौन आया है ? चाचा ने बुजुर्ग नाई की तरफ देखकर बोले। बाल काटने में व्यस्त नाई ने पलटकर देखा और मुस्कराकर बोले-अरे! यह तो अपना वीरू है, कितना बड़ा हो गया है।
चाचा और मेरे साथ वहां उपस्थित समस्त लोग नाई जी की याददाश्त पर अचंभित हो गये।

मूल्यांकन

हायर सेकेण्डरी एवं हाई स्कूल परीक्षा का केन्द्राध्यक्ष बनने पर मैंने परीक्षा केन्द्र में नकल पर कड़ाई से रोक लगा दी। छात्र, छात्राओं की गहन तालाशी के बाद ही उन्हें परीक्षा कक्ष में बैठने देता।
अंतिम दिन था परीक्षा का, अपनी वापसी की तैयारी कर रहा था। अपनी कड़ाई पर छात्र-छात्राओं की नाराजगी का भान हो रहा था। तभी चार-पांच छात्राएं मिलने आईं और उनमें से एक बोली-धन्यवाद सर! आपकी ईमानदारी के कारण ही गधे-घोड़ों के बीच अंतर स्थापित हो पायेगा। और हम सभी का सही मूल्यांकन होगा।
मैंने मन ही मन कहा- बच्चों आज तुम्हारा मूल्यांकन नहीं बल्कि मेरा मूल्यांकन हुआ है।


विमल तिवारी
तिवारी निकुंज, धरमपुरा
जगदलपुर जिला-बस्तर छ.ग.
फोन-07389335263