इन्द्र धनुष के साए में……
इन्द्र धनुष के साए में,
लिखते गये अनुबंध नये
मादक गंधी फूल खिले
आंगन बिखरा लाल-गुलाल
अधरों में बंद रहे गीतों से
मुक्त हुए कुछ छंद नये….
मौन शिखर से उतरी धारा
लहर-लहर हो लहर गई
कौन संभाले वेग सरित का
बनते गये तटबंध नये…..
शब्द बिखर गये मौन स्वरों में
गीत नहीं बस नाद बचा
भूल गये सब रिश्ते जग के
जुड़ते गये संबंध नये….
कान्हा ढूंढे वृन्दावन में
राधा इधर कहां हुई ओझल
हर शाख बंधे, सिंदूरी पट थे
लगते गये प्रतिबंध नये…..
इन्द्र धनुष के साए में, …..
फिर चला गया है…..
++++++++++
इतना भर है ज्ञात कि कोई आया था फिर चला गया है
चंपा की गंध बसी मन में, अंजाने महक उठी बेला
कोई चुपके से बगिया की, खिलती कलियों से आ खिला
मेरा भोला यौवन, नटखट छलिया से फिर छला गया है…
कसक रहे तन से उठती है, मीठी-मीठी पीर
शीतल शांत सलोने मुख पर उड़ कर गिरा अबीर
जलते तप्त बदन पर लगता, चंदन सा कुछ मला गया है…
अलसाए नैनों पर छाए उलझे-उलझे बाल
बिखरे आंचल में टंके हुए हैं अनगिनत नये सवाल
इन सांसों में गंध दूसरी निश्चय कोई मिला गया है….
पंखुडियों ने बिन पूछे ही सारे बंधन खोल दिया
क्या जानू बेसुध अधरों ने कितने चुंबन मोल लिए
अंध कूप के ठहरे जल को कोई आ कर हिला गया है
इतना भर है ज्ञात कि कोई आया था फिर चला गया है।
डॉ.श्रीहरि वाणी
विद्या वाचस्पति
92/143 संजय गांधी नगर
नौबस्ता, कानपुर, उ.प्र.
पिन-208021
फोन-09450144500