मोबाइल
शहर की प्रसिद्ध पाठशाला में मुख्य अध्यापक से लेकर चपरासी तक सक्रिय दिखाई दे रहे थे। सभी शिक्षक व शिक्षिकाएं अपनी-अपनी कक्षाओं में घंटी बजने के साथ ही जा चुके थे। आज पाठशाला के स्कूल इंस्पेक्टर द्वारा वार्षिक निरीक्षण किया जाना था। हर पल भय का आभास हो रहा था। पता नहीं कब और किस कक्षा में इंस्पेक्टर साहब आ जाये। तभी अचानक कक्षा आठवीं में श्रीमान दीक्षित, इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल ने प्रवेश किया। पूरी कक्षा में शांति छा गयी।
शिक्षक दुर्गाप्रसाद बड़ी आत्मीयता से विद्यार्थियों को गांधीजी के सत्य का सिद्धांत पढ़ाने में मगन हो गये। पाठ का अंत उन्होंने यह कहकर किया। ‘‘बच्चों सदैव ‘सत्यमेव जयते’ के मार्ग पर चलो।’’
उसी वक्त कक्षा में मोबाइल की ध्वनि गूंज उठी। दीक्षित साहब ने पूछा।‘‘आवाज कहां से आ रही है ?’’तभी एक विद्यार्थी जो सामने की बेंच पर बैठा हुआ था, खड़ा हो गया। पूछने पर उसने संकुचित शब्दों में कहा। ‘‘आपको आता देखकर, गुरूजी ने अपना यह मोबाइल मुझे थमा दिया।’’ उसी समय अपने मोबाइल पर कॉल आते ही इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल दीक्षित साहब कक्षा से तुरंत ही बाहर निकल पड़े।
संकल्प
‘‘अरे भईया! क्या कर रहे हो ?’’ चिड़िया ने मर्म भरी आवाज में पेड़ को काट रहे लकड़हारे से कहा।
‘‘चल भाग यहां से, देख नहीं रही हो, मैं पेड़ काट रहा हूं।’’ लकड़हारे ने कर्कश आवाज़ में कहा। ‘‘इस पेड़ पर बरसों से हमारा परिवार रहता है।’’ चिड़िया ने उसे समझाते हुए कहा।‘‘तो मैं क्या करूं ? तेरे परिवार से मुझे क्या करना है?’’ लकड़हारे ने क्रोध से कहा। ‘‘धर्म के नाम पर इस पेड़ को मत काटो, पेड़ के कट जाने से मेरा सारा परिवार उजड़ जायेगा।’’ चिड़िया की बात सुनकर लकड़हारे ने तर्क देते हुए कहा-‘‘मैं भी तो अपने पुरूषार्थ का धर्म निभा रहा हूं। मुझे भी अपने परिवार का पेट भरना है।’’ यह सुनकर चिड़िया की आंखों में आंसू आ गये। अपने परिवार को बचाने का संकल्प करते हुए चिड़िया ने लकड़हारे के अगले वार की ओर ध्यान लगा रखा। जैसे ही लकड़हारे का अगला वार पेड़ पर लगने वाला था, तभी चिड़िया ने उस पर छलांग लगा दी। उसी क्षण उसके शरीर के दो टुकड़े ज़मीन पर तड़पते हुए दिखाई देने लगे। पेड़ पर खून के चिन्ह देखकर-‘‘अरे यह पेड़ तो अब अपवित्र हो चुका है।’’ कहते हुए लकड़हारा वहां से चला गया। तभी सुनसान से वातावरण में पेड़ की ऊपरी शाखा से भूख से बिलखते हुए चिड़िया के नन्हें-नन्हें बच्चों की चिंव-चिंव की आवाजें गूंजने लगीं।
मोहम्मद जिलानी
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