शादी वाला तेल
’दोस्त के बेटे की शादी है तो आपका पूरा सम्मान निभाया जा रहा है। दो दिनों के लिये के लिये खाने का निमंत्रण। सिर्फ खाने का नहंी बल्कि नाचने और मौज मस्ती का भी।’ दोस्त की पत्नी सौम्या ने मुस्कराते हुये मेरी पत्नी शोभा से कहा।
शोभा उससे हाथ मिलाती हुयी बोली-’ बहुत बहुत बधाई हो भाभी! समय का पता ही नहीं चलता, गोलू इतना बड़ा हो गया कि उसकी शादी ही होने वाली है।’
’हां, सच कह रही हो। हम लोगों की यह मजबूरी है कि ये बात चिल्ला चिल्ला कर बतानी होती है इस ेछिपा भी नहीं सकते। वरना यह बताते हुये तो खुद को उम्रदराज साबित करना होता है। हमारी उम्र बढ़ गयी ये हंस हंस कर बताना होता है।’
यह कहती हुई दोनों हाथ मिला कर हंसने लगीं।
मैं भी अपने खासमखास दोस्त संतोष देखकर हंसने लगा और उसकी जांघ में थपकी मार कर बोला-’अबे बुढ्ढे! तू इतनी जल्दी बूढ़ा हो गया बे ? जरा इंतजार करना था मेरा!’
’क्या करें भाई! तेरे साथ रह रह कर यह हालत हो गयी।’ हम भी हंसने लगे।
सच! कितनी जल्दी समय बीत जाता है। शोभा की ओर देखा, यूं लगा हम दोनों की कल ही शादी होने वाली है। तभी यादों से बाहर निकाल दिया गया। सौम्या ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा -’आपको यहीं रहना है भैया! खाना पीना और….’
’और शादी के पूरे काम भी कराना है। समझे भाई!’ कहकर संतोष फिर से हंसने लगा।
मैं एकाएक सीरियस होकर बोला -’देर किस बात की। चलो अज और अभी ही बना लेते हैं लिस्ट कामों की। कल का क्यों इंतजार करें।’’अभी नहीं भैया! अभी तो मेरे लिये साड़ी और ड्रेस खरीदने जाना है।’ सौम्या ने तुरंत मना कर दिया।
मैं एकदम से बोला -’लो, अब तक आपने कपड़े ही नहीं खरीदे हैं भाभी ? कब पसंद करोगी और कब खरीदोगी! शादी के पूरे दो माह बचे हैं इतने कम समय में औरतें कपड़े पसंद कर लें नामुमकीन बात है।’
संतोष मेरे हाथ में थपकी मार कर जोर से हंसने लगा। सौम्या और शोभा कुछ समझने का प्रयास करने लगीं।
’हंसी और खुशी का समय पलों में बीत जाता है भाई! देखना हमें शादी के कामों के लिये ये दो माह भी कम पड़ जायेंगे। कुछ न कुछ की कमी रह ही जायेगी।’ संतोष मेरे कंधे पर हाथ धर कर बोला।
’हां, भाई! सच कहा। जब भी मेरी जरूरत हो मुझे याद कर लेना। वैसे मैं रोज शाम को आ ही जाउंगा।’
’ओके! अब चलते हैं। पांव तुड़ाई के लिये दुकान दुकान भटकना है भाई!’
’भाभी के लिये कपड़े पसंद करने।’
दोनों हंसने लगे। सौम्या और शोभा अब भी सोच में लगी रहीं कि आखिर ये दोनों दोस्त हंस क्यों रहे हैं बेमतलब।
शोभा उनको दरवाजे तक विदा कर आयी। और आते ही बोली।
क्यों न हम भी एक दो जोड़ी नये कपड़े खरीद लें, आखिर वो आपका एकदम खास दोस्त जो है।’
मैंने भी क्षण भर को विचारा और ’हां’ कहकर सोफे से उठ गया।
’बच्चों को भी ले चलो एक साथ सबके कपड़े आ जायेंगे।’
’ठीक है दोनों बच्चों को बुला लेती हूं।’ कहती हुयी शोभा भीतर कमरे में चली गयी।
दो तीन दुकानों में चक्कर लगाने के बाद आखिकार एक दुकान में कपड़े पसंद आ ही गये।
’भैया! ये शादी का घाघरा है। सबसे सुंदर है। हमारी दुकान के अलावा कहीं और नहीं मिलेगा।’
’शादी का घाघरा ? मतलब ?’ मैंने उस घाघरे को हाथ से छू कर देखा। मुझे कुछ समय न आया।
’हां, भाई साहब! शादी के लिये स्पेशल बनाया जाता है। इसे सिर्फ शादी में ही पहनते हैं।’
मैंने उसके जवाब पर उसके एकदम निकट जाकर पूछा -’शादी वाली कोई शर्ट है क्या ?
और जम कर हंस पड़ा।
परन्तु दुकानदार ने मुझे यूं अचरज से देखा मानों मैं किसी गांव खेड़े से आया हुआ अनजान मूर्ख व्यक्ति हूं। उसने कहा।
’हां, है न! शादी की शर्ट! शादी की सिर्फ शर्ट ही नहीं है बल्कि शादी का कुर्ता पैजामा, शादी का सफारी……!’
’बस…बस भाई साहब! रूक जाओ! मुझे एक कुर्ता पैजामा दिख दो।’ मैं उसकी बातों से झेंप गया था। अपनी झेंप मिटाने मुझे कपड़ा देखना पड़ रहा था।
शादी के कपड़े देखकर मैं उससे फिर पूछा -’आखिर ये कपड़े शादी के कपड़े क्यों कहलाते हैं ?’
मेरे प्रश्न पर दुकानदार के चेहरे पर मुस्कान छा गयी। वह समझ गया कि ये ग्राहक तो पक्का बड़ी खरीदी करेगा। पूरा मूरख लगता है।
’भाई साहब! ये कपड़े अगर आप शादी के अलावा और कहीं पहन कर जायेंगे तो लोग आपको देखकर हंसने लगेंगे।’
’क्यों हंसने लगेंगे ? क्या इन कपड़ों को पहन कर बदन नहीं ढंकता है क्या ?’ मैं खिलखिलाकर हंस पड़ा।
दुकानदार खिसिया गया मेरी बात सुनकर। वह मुझे समझाने में असमर्थ महसूस कर रहा था। तभी उसका मालिक उसके पास आ गया। वह दूर से सबकुछ देख सुन और समझ रहा था। पास आते ही बोला।
’भाई साहब! दुनिया में लोगों के परचेस पावर के हिसाब से हर चीज बनती है। जिसकी जितनी परचेस पावर होती है वह वैसी ही वस्तु खरीदता है। वरना दुनिया में तो लोग जी खा रहे हैं ही।’
मैं उसकी बात सुनकर एक पल को अपने दोनों कानों के पास गर्मी सी महसूस किया। अगले ही मैं जान गया कि ये आदमी मेरे अहम को नकोड़ रहा है। ताकि मैं बगैर कुछ विचार किये उसके जोकरों के जैसे कपड़े खरीद लूं।
’भाई साहब! आप तो इतनी बड़ी दुकान के मालिक हैं फिर आप ये पचास रूपल्ली मीटर का पेंट क्यों पहन रखें हैं आपकी तो परचेस पावर काफी अच्छी होनी चाहिये।’
मेरी बात सुनते ही दुकान का मालिक सकपका गया। वह मेरी ओर खा जाने वाली दृष्टि से देखा और चुपचाप वहीं कुर्सी पर बैठ गया। मैं अपनी बात जारी रखा।
’आदमी के परचेस पावर के बारे में शायद आपकी जानकारी जरा कम है। ये सड़क में घूमने वाले लोगों के कारण ही आपकी परचेस पावर बढ़ी हुई है। हां, और रही इन कपड़ों की बात, तो बता दूं कि ये कपड़े जोकरों के लिये हैं हमारे जैसे विशिष्ट लोगों के लिये नहीं। चलो शोभा, हमको इनकी परचेस पावर बढ़ाने में सहयोग नहीं देना है। और कहीं चल कर देखते हैं जरा ढंग के कपड़े। हमें नहीं चाहिये शादी वाले कपड़े।’
एक ही पल में हम सब दुकान के बाहर थे। लगभग पच्चीस हजार के कपड़े पसंद किये थे वो सब वहीं छोड़ कर दूसरी दुकान पर चले पड़े।
दुकान के मालिक के चेहरे पर हवाइयां उड़ रहीं थी। वह समझ ही नहीं पा रहा था कि जिस बात को कहने से वह लोगों की जेब और बैंक बैलेंस खाली करवा लेता था आज वो दंाव उलटा कैसे पड़ गया।
घंटे भर में हमारी खरीदी हो गयी थी। खरीदी होते ही शोभा ने कहा।
’सुनिये न जी!’
’आपकी ही तो सुनते सुनते जिन्दगी बीत रही है।’ मेरे मुंह से फट से निकल गया।
’क्या बोले ?’ शोभा समझ नहीं पाई।
’कुछ नहीं, तुम बोलो क्या कहना चाहती हो ?’
’अब घर जाकर कहां खाना बनायेंगे, चलो न यहीं किसी होटल में खा लेते हैं। वैसे भी बहुत दिन हो गये किसी होटल में खाना खाये।’
’अरे! अभी पिछले हफ्ते हमने चौपाटी पर चाट गुपचुप खाये थे। इतनी जल्दी भूल गयीं।’ मेरे तुरंत परिवाद करते ही वह भिनक गयी।
’अब तो तुम मेरे खाने पीने का भी हिसाब रखने लगे हो। तुम भी तो सौम्या के साथ उस दिन होटल में खाये थे। वो तो मैं नहीं गिनाती।’
मैं चौंक गया पत्नी के बयान से। कहां की बात कहां पहुंच गयी एकाएक सबकुछ समझ से बाहर हो गया।
’ये सौम्या कहां से आ गयी ? और मैं कौन सा सिर्फ सौम्या के साथ गया था। तुम थीं, संतोष था और मैं था। तुम तो यूं बता रही हो जैसे मैं सौम्या को लेकर अकेले कहीं घूम रहा था। और हां, मैडम! रही तुम्हारे खाने के हिसाब की बात तो सुनो, तुमने ही कहा कि बहुत दिनों से कहीं होटल में नहीं खाये हैं। इतनी गद्दारी भी ठीक नहीं है। शादी के समय मालूम है न तुम्हारा कितना वजन था, पूरे पैंतीस किलो। और आज कितना है वो भी पता है या बता दूं। पूरे पैंसठ किलो है। ये पैंतीस से पैंसठ यहीं खाकर पीकर ही हुआ है।’
मेरी बात सुनकर गुड़िया बोली -’पापा! अब चलो भी किसी होटल। क्या यहीं सबका भेजा खाकर पेट भरोगे।’
’इनकी तो आदत ही है बात बात पर चिल्लाने की।’ तभी शोभा को बोलने का मौका मिल गया। मैं जान गया कि शोभा का पेट खाली हो गया है इसलिये वह यूं चिड़बिड़ा रही है। मैं पास के होटल में सबको लेकर घुस गया।
’पेट तो भर गया है महारानी का, अब एक एक आइसक्रीम और खा ली जाये। वरना ये अतृप्त आत्मा भटकती फिरेगी।’ मेरी बात सुनकर शोभा मुस्कराने लगी। हम दोनों को मुस्कराते देख कर हमारे दोनों बच्चे आश्चर्य से देखने लगे। मां पिता की लड़ाई और मुस्कराहट, और भी पल ही पल के अंतर में।
उनको आश्चर्य में देख हम दोनों फिर मुस्कराने लगे।
रात बीती, दिन बीता और आ गया शादी की पार्टी की तैयारी का दिन। वैसे तो हफ्ता बाकी था। फिर भी काम पहले निपट जाये वो ज्यादा अच्छा होता है। इसलिये हम दोनों दोस्त निकल पड़े होलसेल किराने वाले के पास। उसे लिस्ट पकड़ा दी और भाव मांगा।
वह लिस्ट देखकर पूछा।
’शादी का सामान है न!’
मैंने हां में सर हिलाया। और कह भी दिया। ’इतना किराना कोई घर में रखता है क्या ? शादी का ही होगा भाई साहब!’
दुकानदार मेरी ओर देखकर अपनी आंखें तरेरी। मैं अपने मुंह से निकले इन व्यंग्य बाणों की परिणति जानता था इसलिये अपनी नजरें दुकान के दूसरे सामानों की ओर घुमा लीं। तभी दुकानदार ने अपने नौकर से पूछा।
’शंभू! देख तो भीतर शादी वाले तेल के कितने टीन पड़े हैं।
शंभू कुछ बोलता कि मैं फिर पूछ बैठा।
’अरे भाई साहब! ये तेल भी क्या शादी वाला नाम से आता है। ये कोई तेल के ब्रांड नाम है क्या ?’ मेरे चेहरे पर बड़ा सा प्रश्नचिन्ह लटक रहा था।
पर दुकानदार मेरे प्रश्न से उखड़ सा गया।
’देखो भईया सामान लेना हो तो ले जाओ पर बार बार ये बेकार की बातें न करो।’
’मैं सच में जानना चाहता हूं कि ये तेल का कोई ब्रांड है क्या, या फिर और कुछ बात है।’ ऐसा कह कर मैंने बच्चों की तरह अपने गले में उंगलियां टिका कर कसम खाने का उपक्रम किया।
शायद ये देखकर उसका मन पसीज गया। उसने प्यार से समझाया।
’शादी में अनेकों खर्च होते हैं। अगर आपद आंख मूंदकर करते जाओगे तो आपका सब कुछ बिक जायेगा आपकी चड्डी बनियान सहित!’
उसके ऐसा कहते ही मैंने देखा संतोष अपनी कमर जम कर पकड़ लिया। मानों कोई उसकी चड्डी पर हमला करने वाला हो। मेरे चेहरे पर हंसी आ गयी।
प्रत्यक्षतः मैंने दुकानदार से पूछा -’तो ?’
’तो क्या ? तो हम शादी के लिये कम रेट का तेल देते हैं ताकि सामने वाली की बचत हो जाये।’ दुकानदार ने अपनी आंखें मेरी आंखों में लगभग घुसाते हुये कहा।
’मात्र तेल के रेट कम होने से पूरी शादी जो कि लगभग पांच से दस लाख के बीच होती है उसके खर्च में क्या समझ आयेगा ?’ मेरा मन बगैर कुछ आगे पीछे सोचे सीधे तोप तान दिया।’
’शादी के लिये पापड़, तेल, आटा, पनीर से लेकर सबकुछ अलग आता है। सबको जोड़ोगे तो आठ दस हजार का अंतर आ जाता है। अगर दस हजार रूपया आपकी नजरों में कोई वेल्यू नहीं रखता है तो ठीक है। मैं सब उंची सामग्री दे देता हूं। मेरा क्या है मुझे तो और फायदा होगा।’
मेरा माथा घूम गया। इतनी बड़ी शादी और इतने मेहमानों को अच्छा खिलाने की जगह हल्का माल खिलाने की तैयारी यानी शादी का पापड़!
मेरा मन एकदम घृणा से भर गया। जाने किस चीज से बना पापड़ होता होगा, और पनीर, शादी का मुख्य आइटम होता है पनीर चिल्ली से लेकर पनीर की सब्जी, पनीर के पकोड़े और जाने किस किस चीज में डाला जाता है, वो हल्का! परन्तु हल्का मतलब क्या ? नकली!
मैंने संतोष की ओर देखा वो मेरे ही मनोभावों से गुजर रहा था। उसने तुरंत ही कहा।
’भाई साहब! सब अच्छी क्वालीटी का और अच्छा सामान ही देना। हमें नहीं चाहिये शादी वाला तेल और शादी वाला पापड़!
मैंने भी तुरंत ही अपनासर ’हां’ में हिलाया।
’भाई साहब! आप सामान निकलवाओ हम जरा चाय पीकर आते हैं।’ यह कह हम दोनों बाहर निकल आये।
’ये तो अच्छा घालमेल है भाई! नकली माल की खपत वो भी शादी जैसे पवित्र और बड़े महत्वपूर्ण अवसर में। किसी को कुछ हो जाये तो। माने फूड प्वाइजनिंग जैसा कुछ तब ? वो तो अच्छा हुआ हमने किसी केटरर को सामान सहित खाना बनाने का ठेका नहीं दिया। सिर्फ वो खाना बनायेगा और हम सामान देंगे।’
’ओ भैइया! आपका सामान निकल गया है ले जाओ।’
हमारी चाय खत्म भी न हुई सामान निकल गया था। दुकानदार के कर्मचारी शंभू ने आवाज लगाई।
आटो में लाद कर सीधे संतोष के घर पहुंच गये। घर पहुंचते ही संतोष बच्चा बन कर चिल्लाया।
’ले लो, ले लो, शादी वाला तेल ले लो।’
’ले लो, ले लो, शादी वाला तेल ले लो।’
उसकी आवाज सुनकर शोभा और सौम्या बाहर निकल आये। वो दोनों हंसने लगे संतोष हरकत देखकर।
’लो भैया! शादी वाले कपड़ों के बाद शादी वाला तेल, आटा और नून!’ मैंने सामान उतार कर सामने रखते हुये कहा।
तभी संतोष सौम्या और शोभा की ओर देखा और फिर मेरी ओर देखकर मुस्कराने लगा। मैं उसकी मुस्कराहट कारण पल में ही समझ गया और मैं हंस पड़ा।
शोभा और सौम्या ने हम दोनों को हंसते देखकर अपने सर के पास अपनी उंगली ले जा कर गोल गोल घुमा कर बोली।
’पागल!’
हम दोनों के मुंह से एक साथ निकला।
’शादी वाली बीवी!’