लघुकथा-रीना जैन

अंतर
अस्पताल में बीमार मां की सेवा कर रही थी कुंवारी बहन। तभी उसका शादीशुदा भाई शरबत की बोतल लेकर आया और बहन को देकर बोला-‘‘लो मां के लिए। ये रूह अफजा मां के दूध में घोल दो। मां को पसंद है।’’
वह बहुत खुश हुई, उसकी आंखें भर आईं कि अलग रहते हुए भी भाई को मां की फिक्र है। किन्तु
जब वह किराने की दुकान पर अपना पिछला उधार चुकाने पहुंची तो उसका दिल टूट गया। उसकी आंखों में आंसू छलक आये, क्योंकि शरबत उसी दुकान से लाया गया था उधार में।

अंतर
एक बार कपड़े की दुकान पर सास-बहू साड़ी खरीद रहे थे। साथ में छोटी बहू थी। सास ने एक साड़ी देखकर कहा-‘‘ये साड़ी तेरी जेठानी पर जंचेगी न! वो बहुत सुन्दर है, उस पर हर कपड़े खुलते हैं।’’ यह सुनकर छोटी बहू के चेहरे पर कसमसाहट उभरी।
अगले ही पल वह शांत हो गई क्यों कि सास तुरंत बोली -‘‘बेटी! तुम दोनों ही मेरी पसंद हो। मेरी बेटी हो। और मां को अपने सभी बच्चे प्यारे होते हैं चाहे सुंदर हों या कुरूप!’’

भगवान
एक छोटा सा मासूम बच्चा अपने पिता के साथ मंदिर में प्रवेश करता है और उसकी दृष्टि हर तरफ कुछ खोज रही है। अचानक उसके चेहरे पर मुस्कान खिल उठती है, आंखों में चमक आ जाती है। उसे मंदिर में उसकी दादी दिख जाती है। वह भगवान की प्रतिमा की ओर देखे बगैर संस्कारवश पूजा के पुष्प टेबल पर चढ़ाता है और झुककर भगवान को प्रणाम करता है। लेकिन दर्शन वह दादी के कर रहा था।
दादी कहती है-‘‘बेटा! भगवान को देखो।’’
पास खड़े पंडित जी कहते हैं-‘‘कोई बात नहीं माता जी। मां-बाप, दादा-दादी ही सच्चे भगवान हैं वही तो बच्चों को दुनिया में लाते हैं, वही तो दुनिया समझाते हैं। ये पाषाण की प्रतिमा भी तो सद्गुणों का प्रतीक है। हम भी उसकी पूजा करके स्वयं को उस जैसा बनाना चाहते हैं।’’


श्रीमती रीना जैन
सिंघई क्लाथ स्टोर्स
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