लघुकथा-डॉ सतीश दुबे

स्वागत सज्जा
बहू शिखा को चैक-अप के लिए मम्मी जी लेडी डॉक्टर के क्लीनिक में ले गई थी। लौटने पर बहू द्वारा दी जाने वाली नये मेहमान की सौगात खबर जैसे ही उन्होंने घोषित की, खुशी के गुब्बारे घर की हर दीवार पर चस्पा हो गए। शिखा का दर्जा पहले की अपेक्षा और अधिक बढ़ गया। मेहमान को संस्कार और उसकी छवि को मस्तिष्क में
संजोये रखने के लिए एक दिन सरप्राइज के रूप में एक विशेष कक्ष में शिखा को ले जाया गया।
नए मेहमान और मां के स्वागत-सज्जा के रूप में दीवारों पर सुन्दर बच्चों, वीरों और आदर्श भगवान की विभिन्न मुद्राओं वाली तस्वीर लगाई गई थी। खिलौने, टेडी बियर, प्लास्टिक के लव-बैलून जगह जगह उड़ते रहंे, ऐसा करिश्मा किया गया था। प्रवेश के बाद शिखा मारे शर्म के नायिका की तरह सिर ऊंचा नहीं कर पा रही थी।
‘‘मम्मी! खास चीज, पलना तो रह ही गया।’’ बेटी दीपा, भाभी की चुटकी भरते हुए मम्मी की ओर मुखातिब हुई।
‘‘वह भी आ जायेगा, ऐसा कि लोग देखते रह जाएं।’’
’’किसे मेहमान को या लाने वाले को ?’’
पूरे माहौल को खुशी-हंसी में तब्दील करने के लिए मम्मीजी बोली-‘‘तेरी भाभी को।’’महफिल में अपनी भागीदारी दर्ज कराते हुए शिखा उलाहना भरे भाव से ऐसे मुस्कुराई मानों कह रही हो ‘‘मम्मी! आप भी न!’’
शिखा को भविष्य के सपने बुनने के लिए सब लोग अकेली छोड़कर चले गये थे।
इधर-उधर निगाह घुमाते हुए प्रकाश हवा के लिए सामने खुली वेन्टीलेशन विन्डो पर शिखा की दृस्टि स्थिर हो गई। देखा, चिड़ा-चिड़ी विन्डो के समतल भाग पर रंगबिरंगे तिनके इकट्ठे कर उन्हें घोंसले का आकार दे रहे हैं। मादा-नर चोंच में तिनका लाते और उसे ऐसा व्यवस्थित रखते मानों घोंसला कक्ष सजा रहे हों।
जीवन विज्ञान के अध्येता चाहे शिखा न हो पर उसे यह समझने में देर नहीं हुई कि उनकी यह घोंसला-सज्जा उनके आने वाले चुनमुन के लिए है। वह अपने कमरे और चिड़ा-चिड़ी के घोंसले पर निगाह घुमाते हुए सोचने लगी कि चुनमुन के लिए सजाये जाने वाले तिनके तिनके में जो ममत्व, प्यार, उत्साह मौजूद है वैसा क्या वह और गिरीश अपने चुनमुन के इस कक्ष में महसूस कर सकते हैं ?


डॉ. सतीश दुबे
766-सुदामा नगर
इंदौर-448234
मो.-9617597211