लघुकथा-हेमंत बघेल

परिधान
चैतू ने लालाजी की दुकान से डिबरी के लिए तेल, माचिस, नमक, गुड़ाखू और तम्बाखू की पुड़िया खरीदा। लाला ने अपने कैल्कुलेटर में ऊंगलियां दौड़ाई-‘सत्ताईस रूपया।’
चैतू ने एक नजर कैल्कुलेटर को देखा और बोला-‘क्या लाला! लुंगी-बनियान में हूं इसका मतलब
अनपढ़ हूं ? तुम्हारे कैल्कुलेटर से पहले ही मैंने हिसाब लगा लिया है कि बाइस रूपये होते हैं।’
स्त्री-पुरूष समानता
बिजली ऑफिस के कर्मचारियों के बीच चर्चा छिड़ी हुई थी। विषय था-स्त्री-पुरूष समानता। विश्वास बाबू ने फरमाया-‘वर्तमान समय में महिलाएं पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर कार्य कर रही हैं। चाहे वो कोई भी क्षेत्र हो, शिक्षा, चिकित्सा, राजनीति, विज्ञान, अभिनय, खेल।’
’चाहे बिजली का बिल भरना हो।’ रतन ने व्यंग्यात्मक लहजे से विश्वास बाबू की बात काटते हुए कहा।
सभी ने बिल काउन्टर की ओर देखा और जोर का ठहाका लगाया। काउन्टर पर पुरूषों की लंबी कतार लगी हुई थी और महिलाओं की कतार में केवल तीन-चार महिलाएं ही खड़ी थीं। वहीं आसपास कुछ पुरूष यहां-वहां खड़े थे शायद कुछ इन महिलाओं के साथ होंगे।
ठहाकों की समाप्ति पर पूरी चर्चा में लगभग तटस्थ से रहे गौतम बाबू ने कहा-‘बिल काउन्टर में खड़े इन महिला पुरूषों में आप लोगों को समानता नजर आ रही है लेकिन इस समानता के पीछे छिपी पुरूष वर्चस्वता आप लोगों को नजर नहीं आ रही है।’
भ्रष्टाचार की जड़
उस कच्ची सड़क को कांक्रीटवाली रोड में बदलने का जोर-शोर से काम चल रहा था। जब सारा मुहल्ला सो जाता तब मनोहर अपनी पत्नी संग बाल्टी लिए सड़क पर आते और कांक्रीट रेत के ढेर से बाल्टी भर-भर कर अंदर करते जाते। रोज 2-3 बाल्टी। वह भी तब तक कि जब तक सड़क का काम पूरा न हो गया। सड़क बनकर तैयार हुई तब मनोहर बाबू सबसे कहते फिरते-‘सड़क साल भर भी न टिकेगी, ठेकेदार ने सारा माल अंदर कर लिया। कितनी पतली सड़क बनाई है स्याले चोर ने।’
उनकी बात सच निकली सड़क टूट गई पर उनके घर का आंगन मजबूती से टिका रहा।


हेमंत बघेल
एम.ए.
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