लघुकथा-अवधकिशोर शर्मा

बारात
डॉ.विजयेन्द्र के भाई की शादी की बारात निकली थी। उन्होंने चुनिंदा और सीमित लोगों को ही आमंत्रित किया था। शादी के लिए सुस्वादु और लजीज भोजन का प्रबंध उनके घर से पचास कदम दूर कपूर लॉन में किया गया था। भोजन की खुशबू से लजीज भोजन की चाह में एक व्यक्ति पांव व कूल्हे मटकाता नाचता हुआ बारात में शामिल हो गया।
डाक्टर साहब की नजर जब उस पर पड़ी तो वे क्रोध से सुलग उठे और बाराती लाइन तोड़कर उस व्यक्ति के पास पहुंचे। उसे अपने हाथ व कंधों से ऐसा जोर का धक्का दिया कि वह व्यक्ति बारात से दूर पास के खेत में गिर पड़ा।
बारात धुन बजाती हुई जा रही थी-‘आज मेरे यार की शादी है।’
मैं जागने के लिए सोता हूं
वह बंगाली अधेड़ सज्जन स्वभावी चाय की गुमटी लगाता था। बुद्धिजीवी होने के कारण वह हृदय से मेरा सम्मान करता था। वह रविन्द्रनाथ टैगोर की कविताओं व बंगाल के सांस्कृतिक वैभव को अकसर उद्धृत करता रहता था।
धीरे-धीरे मैंने संकोचवश उसकी दुकान में जाना कम कर दिया क्योंकि वह मुझसे चाय के पैसे नहीं लेता था।
रविवार की सुबह जब अखबार सुबह सात बजे तक नहीं आया तो मैं अपनी स्कूटी उठाकर पुराने बस स्टैण्ड की ओर चल पड़ा। तब उसने आवाज देकर मुझे चाय का निमंत्रण दे डाला। चाय का सिप लेते हुए मैंने उससे पूछा-‘दादा! आप चाय का ठेला कितने बजे लगाते हो ?’
उसने कहा-‘रात साढ़े तीन बजे।’
मैंने उत्सुकतावश उससे पूछा-‘आप सोकर उठते कब हो ?’
उसने मेरी जिज्ञासा शांत करते हुए कहा-‘रात तीन बजे जाग जाता हूं फिर आधा घंटा मुझे फ्रेश होने, दातौन करने, मुंह हाथ धोने व चाय पीने में लग जाता है। उसके बाद ठेला लेकर निकल पड़ता हूं बस स्टैण्ड की तरफ।’
मैंने हैरानी से पूछा-‘दादा! आप फिर सोते कब हैं ?’
उसने हंसकर मेरी ओर देखते हुए कहा-‘शाम सात बजे।’ मेरी उत्कंठा को विराम देते हुए उसने लुक्मा लगाया-‘बाबूजी मैं जागने के लिए सोता हूं, ताकि बच्चे सुख की नींद ले सकें।’


अवधकिशोर शर्मा
अधिवक्ता
इंदिरा वार्ड, जगदलपुर छ.ग. 494001
मो. 9755850497