लघुकथा-विमल तिवारी

बातों का जादू

अपने शहर को छोड़कर मुझे नौकरी के लिए दूसरे शहर आना पड़ा। मां को नई जगह जाने का बिल्कुल मन नहीं था। कुछ दिनों बाद वह बीमार रहने लगी। मैंने इलाज में कोई कमी नहीं की मगर कोई सुधार न हुआ।
मां बोली-‘‘अपने शहर में जाकर शर्मा डाक्टर को दिखाऊंगी। उनके इलाज से हर मरीज स्वस्थ हो
जाता है। उनकी बातों में ही वह जादू है जिससे मरीज प्रभावित होकर शीघ्र स्वस्थ हो जाता है।’’
सचमुच कुछ महीनों के इलाज से मां पहले की तरह स्वस्थ हो गई। वास्तव में जब मैं मां को डाक्टर शर्मा के पास लेकर गया तो उन्होंने मात्र प्यार से बातें कीं। उनके पास अमीर गरीब, छोटा-बड़ा कोई नहीं होता है। हर किसी को नाते-रिश्ते में बांधकर इलाज करते थे। बुजुर्ग महिला आने पर कहते-‘‘आ दाई बैइठ, फिकर मत कर, सब ठीक हो जाही।’’
यही बातों का जादू मरीजों की लम्बी कतार में नजर आ जाता था।
खुशनसीब
’’वाह! क्या स्वादिष्ट भोजन बना है। हर प्रकार की मिठाई, हलवा-पूड़ी, यह छप्पन भोग दिल खुश कर गया।’’ शर्मा जी की तेरहवीं के भोज में बैठे पंडितों ने तारीफ करते हुए कहा।
‘‘धन्य हैं वे बेटे जिन्होंने अपने पिता के लिए इतनी अच्छी व्यवस्था की है। कितना खुशनसीब रहा होगा इनका पिता। भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे!’’ उनमें से एक पंडित ने अपनी लटकती तोंद पर हाथ फेरते हुए कहा।
दूसरा पंडित जो दिवंगत से परिचित था वो बोला-‘‘अरे नहीं भईया! इतना खुशनसीब नहीं था शर्मा। उसके बेटे तो अभी आये हैं। बेचारा खेती किसानी कर-करके इनको पढ़ाया और ये दूर शहर में रहने लगे। जब इनके खाने-पहनने के दिन थे तब इनकी फरमाइश पूरी करते रहे। इनकी पढ़ाई में घर, खेत-खलिहान सब बिक गये। पत्नी चल बसी। दाने-दाने को तरसते रहे। बीमारी में कोई देखने नहीं आया। पता नहीं कितने दिनों से भूखे प्यासे रहे, भोजन, दवा और देख-रेख के अभाव में चल बसे। भगवान ऐसे दिन किसी को न दिखाये।’’
ये सब सुनकर अन्य पंडितों के माथे पर बल पड़ गये।


विमल तिवारी
तिवारी निकुंज
बृजराज नगर
धरमपुरा जगदलपुर,
पिन-494001 छ.ग.
मो.-07389335263