लघुकथा-अखिल रायजादा

मजबूत अर्थव्यवस्था


आजकल शक्कर राशन की सरकारी दुकान में आ नहीं पाती है, पता नहीं कहाँ चली जाती हैं। पिछली गर्मियों में जब गांव गया था तो गन्नें की जोरदार फसल से सारा गाँव खुश था, फिर भी हर बार की तरह शक्कर के दाम फिर बढ़ गये हैं। कल ही मैं छत्तीस रूपये किलो शक्कर लेकर आया हूँ।
श्रीमती जी सुबह की चाय के साथ अखबार लाते हुए बोलने लगी-“…….आपने कल जो शक्कर लायी है वो एकदम खराब है, बिलकुल पाउडर है, अच्छी दानेदार नहीं है।“
मैं बोल पड़ा -“अरे…..इस बार तो शक्कर और महँगी मिली है, मैंने सोचा दाम ज्यादा है तो अच्छी ही होगी। मैंने मॉल से तो लाई नहीं है कि दो चार टाइप की देखूँ, सेलेक्ट करूं, फिर लूँ……। मैंने दुकानदार से कहा उसने पैक कर दी और मैं ले आया।“ “……ठीक है, ठीक है आज तो मैंने रोज से ज्यादा शक्कर डाली है तब कहीं जाकर चाय मीठी हुई है।“ – श्रीमती जी ने कहा।
चाय की एक चुस्की ही ली थी कि श्रीमती जी फिर बोल पड़ी-“अरे आप क्या कह रहे थे कि शक्कर मँहगी हो गयी है, आपने कल किस रेट से लायी थी ?“
अखबार लेकर मुझे दिखाते दिखाते कहने लगी-“ये देखिये जरा- क्या लिखा है-भारत से शक्कर बीस रूपये प्रति किलो की दर से निर्यात की जा रही है।“
मैं चौंका और मेरी चाय गिरते गिरते बची। सोचा कि क्यांे सुबह सुबह बहस करूँ, पर फिर मन नहीं माना।
श्रीमती जी से अखबार लेकर पूरा पढ़ा। यार मैंने कल छत्तीस रूपये किलो शक्कर लायी है, और आज बीस रूपये निर्यात की खबर पढ़कर श्रीमती जी का पूछना बिलकुल जायज है।
अखबार की दूसरी खबर ने रही सही कमी पूरी कर दी – “भारतीय अर्थव्यवस्था की तारीफ में पूरा पेज भरा था। जहाँ एक ओर सारा विश्व आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है, वहीं हमारा जी डी पी बढ़ रहा है। मंत्रीपरिषद ने भी हम भारतीयांे की क्रय शक्ति की तारीफ की है। हमारी क्रय करने की क्षमता में सतत वृद्वि हुई है।“
सचमुच हम खरीदने में शक्तिशाली है कितनी भी मँहगाई क्यों ना हो, हम भारतीय खरीदने में कोई कंजूसी नहीं करते हैं, चाहे हमें हमारी ही चीजें कितनी भी मंहगी बेचीं जाय।
श्रीमती जी फिर बोल रही थी- “आप तो रोज की तरह फिर अखबार में खो गये। आपकी चाय ठंडी हो रही है।“
…….मेरा चाय पीने का मन; फीकी-चाय, मीठी-ठंडी चाय और मजबूत भारतीय अर्थव्यवस्था के बीच अटका था।


अखिल रायजादा
20/265 रामनगर, सिम्स के पास
बिलासपुर,
छ.ग. 495001,