लघुकथा-कमलेश चौरसिया

दादाजी की आत्मा

‘‘चल अपुन जादू-जादू खेलेंगे!’’
‘‘कहां भैया ?’’
’’अरे, ऊपर गच्ची में। वो पानी की टंकी है न, जहां पुराने सामानों का ढ़ेर रखा है, उसके पीछे।’’
’’लेकिन सामान कहां से लायेंगे ?’’
’’अरे बुद्धू! मैंने टी.वी. देखकर सब सामान इकट्ठा कर लिया है। यह देख मोमबत्ती, माचिस, चावल, पुड़िया में सिंदूर और नींबू।’’
करीब सात साल का निखिल और पांच साल का नितिन दोनों भाई जादू-जादू खेलने में लग गये। निखिल ने अपने बालमन की याद्दाश्त से जमीन पर सिंदूर की मदद से कुछ आड़ी तिरछी लाइनें खींची, उनके बीच में मोमबत्ती जलाकर बगल में नींबू रखा। इसके बाद वह धीरे-धीरे से कुछ बुदबुदाने लगा।
दोनों एकाग्रचित्त जलती मोमबत्ती को देखते हुए एक उंगली जमीन पर टिका कर अपने दादाजी की आत्मा को बुलाने लगे। उन्होंने टी.वी. सीरियल में देखा था कि जादूगरनी, हीरोइन के पति की आत्मा को ऐसे ही बुलाती है और बुझते हुए मोमबत्ती के धुंयें के साथ ही आत्मा हवा में विलीन हो जाती है।
निखिल दादाजी से बहुत प्यार करता था। दोनों अपनी बालसुलभता में लौ को टकटकी लगाकर देखते हुए बार-बार दादाजी को पुकारने लगे। हवा के झोंकों से उन्हें ऐसा आभास हुआ कि दादाजी उनके पास आ गये हैं। इस सोच से रोमांचित होकर वे रोने लगे। इतने में तेज हवा से मोमबत्ती बुझ गयी, निखिल तुरंत खड़ा होकर धुअें के पीछे भागने लगा जैसे दादाजी के साथ चल रहा हो। धुंअें के पीछे-पीछे भागता हुआ मुंडेर पर चढ़ गया।
फैसला
मां के हाथों में रूपयों का बंडल रखकर चरण-स्पर्श करते हुए मिहिर ने कहा-‘’ यह ले मां! मेरे जीवन की पहली कमाई।’’
लता गद्गद होकर बेटे के चेहरे पर सितारों की चमक फीका कर देने वाले उजास को देखती रह गई। उसकी आंखों से झरझर आंसू बहने लगे। बेटे के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देती हुए उसका माथा चूम लिया। उसे वह क्षण याद आ गया जब उसके इंजीनियर बेटे ने घर वालों के विरूद्ध गांव की पुश्तैनी जमीन पर खेती करने का फैसला किया था।


कमलेश चौरसिया
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