लघुकथा-प्रवेश सोनी

सीढ़ियां
गाँव की कच्ची सड़क पर आज एक के बाद एक महंगी गाड़ियाँ दौड़ी चली आ रही थीं। इन गाड़ियों की मंजिल सूरज का कच्ची खपरैल से आधा खण्डहर में तब्दील घर था। गाँव में आज उत्सुकता का माहौल बना हुआ था। बूढ़े, बच्चे और जवान सभी की आँखों में रोमांच भर दिया था इन गाड़ियों की आवक ने। सभी जानने को उत्सुक थे कि आज ये महंगी गाड़ियाँ सूरज के घर क्यों आई है ?
सूरज अपने किसान माता -पिता की इकलौती संतान है। ‘यथा नाम तथा गुण’ वाली कहावत सूरज पर शत प्रतिशत लागू होती थी। गज़ब का तेज़ था बचपन से ही इस बालक में। गाँव के प्राइमरी और उसके बाद हाई स्कूल से दसवीं क्लास प्रथम श्रेणी में पास की थी सूरज ने। माता-पिता भी अपने बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए जी तोड़ मेहनत करते थे। उनके श्रम की थकान सूरज की बातें सुन कर पल भर में उतर जाती थी। खेत से लौटते पिता के हाथ से कुदाल और घास का गठ्ठर लेते हुए कहता था की ’’बापू मैं इंजीनियर बन कर खेत में नई मशीनों से काम करूँगा तब आपको बिलकुल मेहनत नहीं करने दूंगा, गाँव की खेती के लिए नए संसाधन होंगे तो गाँव की तस्वीर बदल जायेगी।’’
किसान पिता बलिहारी नज़रों से अपने बेटे को निहारते रहते। लेकिन उन्हें यह चिंता भी बाढ़ चढ़ी नदी की तरह डरा रही थी की बेटे को इंजीनियर कैसेे बना पायेंगे। रोज सात कोस चलकर भी ढाई कोस की ही दूरी तय कर पाती थी उनके जीवन में मां लक्ष्मी की यात्रा। गरीब की गरीबी इतनी वफादार होती है की स्वप्न में भी उसका साथ नहीं छोड़ती।
सूरज के माता-पिता अपने तन को आधा अधूरा ढंक लेते, अपना आधा पेट पानी पीकर भर लेते लेकिन सूरज की शिक्षा में कोई रुकावट नहीं आने देते। लेकिन दसवीं के बाद की पढ़ाई कैसे हो यह चिंता उन्हें रातों को सोने नहीं देती और दिन में चैन नहीं लेने देती। शहर की कोचिंग के बारे में उन्होंने सुन रखा था। वो चाहते भी थे कि सूरज अच्छी कोचिंग लेकर पढ़ाई करे लेकिन सोचने और उसे पूरा करने के बीच अभावों के साथ कठिनाइयों की खाई होती है जिसे पार करना आसान नहीं था। सूरज के पिता के पास जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा था जो कभी प्रकृति की मार, कभी सूखा तो कभी अतिवृष्टि सह कर तीनों प्राणियों के जीवन की गुजर बसर कर रहा था। अब पढ़ाई के लिए कोचिंग की मोटी फीस कहां से आ सकती थी। एक बारगी तो सूरज ने आगे की पढ़ाई निरस्त करने का सोच लिया और पिता से कहा की वो आपकी खेती में मदद करेगा। लेकिन सूरज के पिता अपने बच्चे के सपने और उसकी योग्यता से भलीभांती परिचित थे। अतः उन्होंने जमीन रहन रखकर साहूकार से कर्ज उठा लिया। और आँख में आशा का सूरज लेकर शहर की राह ली। बड़ी बड़ी इमारतांे के बीच गांव के किसान पिता खुद को बौना महसूस कर रहे थे। मगर सूरज के सपनों की ऊंचाई उन्हें कोचिंग सेंटर के विशाल भवन में प्रवेश कराने में सफल हो गई। मगर जब फीस की बात शुरू हुई तो उन्हें अपने पास की रकम सुदामा के द्वारा श्री कृष्ण के घर ले जाये गए चावल की पोटली समान लगी, जिसे वो बार-बार अपनी धोती की अंटी में कस रहे थे। उन्हें लग रहा था की सिर्फ पढ़ाई की बात करने मात्र में ही उनके मुठ्ठी भर पैसे हवा हो जायेंगे। दो वर्ष तक यहाँ रहकर पढ़ाई करने का स्वप्न तो पिता पुत्र की आँखों से दूर खड़ा उन्हें चिढ़ा रहा था।
निजी कोचिंग सेंटर में छात्रवृति की आशा भी निर्मूल थी। चारों ओर निराशा मुँह बाये खड़ी थी। सूरज ने अपनी बुद्धिमानी और आत्मविश्वास से काम लिया। और कुछ पैसे देकर वहां पढ़ने वाले बच्चांे से, जिनका सलेक्शन हो गया था, उनसे उनके टेस्ट पेपर और नोट्स लेकर गांव की राह पकड़ ली। पिता के मन को यह हीनता कचोट रही थी कि वो अपने बच्चे को उच्च शिक्षा नहीं दिला पाए। वहीं सूरज के कदम दुगने आत्मविश्वास से भरे थे। उसने अपनी समझदारी और लगन से एक राह और तलाश ली। गाँव में पिछले 2 साल से टेलीफोन के साथ इंटरनेट की सुविधा भी शुरू हो गई थी, जिसके चलते वहां एक साइबर कैफे टाइप दुकान खुल गई, जिसे उनके पड़ोस के गिरधारी काका का ग्रैजुएट बेरोजगार साला चलाता था। सूरज ने इंटरनेट की मदद से दूरस्थ टेस्ट सीरिज में आवेदन किया और मासिक टेस्ट देता गया जिसके द्वारा उसे अपनी परीक्षा तैयारी के आंकलन में मदद मिली।
आज एंट्रेंस एग्जाम का रिजल्ट घोषित हुआ था। और जिसने प्रथम श्रेणी में स्थान प्राप्त किया था वो क्रमांक किसी कोचिंग संस्था के बच्चे का नहीं था वह क्रमांक था गाँव के मेहनती, आत्मविश्वासी और कड़ी लगन से पढ़ने वाले सूरज का।
संस्थाओ को सूरज का पता लगाने में देर नहीं लगी और टेस्ट सीरिज के आवेदन के आधार पर सूरज पर अपनी संस्था का विद्यार्थी होने का दावा करने लगे।
वो आज इसी सूरज की लगन और मेहनत को खरीदने आये थे ताकि शहर के बाज़ार में अपनी संस्था के नाम को सूरज के नाम से चमका सके।

प्रवेश सोनी
10-जे-1 पारिजात कॉलोनी
महावीर नगर थर्ड
कोटा राजस्थान
पिन-324009
मो.-9782045060