लघुकथा-डॉ शैल चंद्रा

परिवर्तन


गांव से आई हुई अम्मा को जब शहरी बहू ने सुबह-सुबह चाय का प्याला पकड़ाया तो वे प्रसन्न हो उठीं। उन्होंने सोचा नाहक ही वे डर रही थीं कि शहर जाकर उनके बहू-बेटे संस्कार भूल गये हैं। वे निश्ंिचत भाव से चाय का घूंट भरने लगी। चाय का प्याला रखने वाली थीं कि उनके बेटे ने खाली प्याला ले लिया और रसोई में रख आया।
इस पर अम्मा गद्गद् हो उठीं। वे सोचने लगी अब जब वह गांव जायेगी तो सबको यह बताएगी कि उनके बहू-बेटे चाय का प्याला तक उसे अपने हाथ से उठाने नहीं देते हैं। तभी उनका बेटा उनके पास आकर खड़ा हो गया। बेटे ने मां से धीरे से कहा-‘मां तुम्हारी बहू और मैं कम्पनी की ओर से एल.टी.सी. मिलने पर दिल्ली घूमने जा रहे हैं। यही कोई पन्द्रह-बीस दिन लग जायेंगे। तब तक आप घर और बड़ी मुनिया को संभाल लीजिएगा। कल सुबह ही हम लोग निकल जायेंगे।’
अम्मा अवाक सी बेटे का मुंह देखने लगी। उन्हें समझ आ गया कि गांव से लाकर उनकी इतनी पूछ परख क्यों हो रही थी।

भाषाएं


एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में सभी भाषाविद् अपनी-अपनी भाषा की श्रेष्ठता सिद्ध करने में लगे हुए थे। वे सभी किसी निष्कर्ष पर पहुंचते कि एक घटना उनके मनोमस्तिष्क पर हावी हो गई। सम्मेलन में आये सभी महानुभावों को सैर कराने का कार्यक्रम तय था। उन लोगों ने बीहड़ जंगल में घूमने की इच्छा जाहिर की। जंगल में घूमते हुए उन्होंने देखा कि एक जंगली बाला बेतहाशा रो रही है। आसपास कोई नहीं है। उस युवती ने उन लोगों को अपने पास देखा तो और जोर-जोर से रोने लगी। सभी भाषाविदों ने अपनी-अपनी भाषा में उससे पूछा। युवती मौन रही। उसकी आंखों से आंसूओं की धारा बह रही है। मुख पर विषाद की रेखाएं। माथे पर चिन्ता की लकीरें। अपनों से बिछुड़ने का दुख। उन परिस्थितियों को परिभाषित कर रही थी जिनसे वह गुजरी थी। अत्यधिक दुख और भय के कारण थरथराते होंठ मौन थे।
अंततः सभी भाषाविद् समझ गये कि युवती के परिजनों को किन्हीं आतंकियों ने मार डाला है और वह दुख से विकल है। वे उस युवती को अपने संरक्षण में ले आये। घटना संबंध में जानकारी शासन प्रशासन को दे दी गई।
अंतिम चरण के सम्मेलन में निष्कर्ष निकला कि दुनिया की हर भाषा में दुख की भाषा एक होती है।


डॉ. शैल चंद्रा
प्राचार्य
रावणभाटा नगरी जिला-धमतरी छ.ग.
मो. 9424215994