लघुकथा-दिनेश छाजेड

शिकायत


पत्नी ने बच्चों की शिकायत करते हुए पति से कहा-‘सुनो जी! दोनों बच्चों की शैतानी आये दिन बढ़ती जा रही है। दिन भर धमा-चौकड़ी मचाते रहते हैं, घर का सामान इधर-उधर बिखेरते रहते हैं। अपने कपड़े स्कूल बैग, जूते आदि कहीं भी पटक देते हैं। पूरा दिन शोर मचाते हैं। मैं तो घर को ठीक करते-करते परेशान हो जाती
हूं। चैने से दो पल भी बैठने की फुरसत नहीं मिलती हैं। आप इनको कुछ समझाओ, मेरी तो सुनते ही नहीं हैं।’
पति ने कहा-‘समय के साथ सब ठीक हो जायेगा। बच्चे अभी छोटे हैं शैतानी तो करेंगे ही।’
कुछ वर्षों के उपरांत दोनों बच्चे बाहर पढ़ने चले गये। एक दिन पत्नी ने कहा-‘सुनो जी! आजकल घर सूना सूना लगता है। खाली घर तो काटने दौड़ता है। बच्चे थे तो चहल-पहल थी। अब मन भी नहीं लगता है। बच्चों को फोन करके पूछो कि उनकी छुट्टियां कब हो रहीं हैं घर कब आयेंगे।’
पति अपनी पत्नी की शिकायत सुन फोन करने चले गए।

चतुर कौआ


एक कौआ जंगल में परिवार के साथ रहता था। एक दिन कौअे के बच्चे को प्यास लगी। बच्चे ने अपने पिता से कहा-‘मुझे प्यास लगी है पानी चाहिए।’
पिता ने कहा-‘ठीक है तुम प्रतीक्षा करो, मैं पानी तलाश करता हूं।’ ऐसा कह कर कौआ उड़ गया। जंगल में इधर – उधर भटकता रहा लेकिन पानी नहीं मिला। तभी उसे अपने पूर्वज कौओ की घटना स्मरण हो आई। किस तरह उसने युक्ति से मटके का पानी ऊपर उठाकर प्यास बुझाई थी। उसने नई उम्मीद से उड़ान भरी। उसे एक जगह कुछ चमकता हुआ दिखाई दे रहा था। वहां पहुंच कर देखा कि पानी की खाली बोतलें, प्लास्टिक के टूटे कप, प्लेट आदि थे। शायद कुछ व्यक्तियों ने पिकनिक मनाई होगी। कचरा यहीं छोड़ गये।
कौअे ने गौर से बोतलों को देखा, कुछ पानी नीचे तले में नजर आ रहा था। उसने भी युक्ति सोची, सारी बोतलों के पानी को एक कप में इकट्ठा किया। फिर अपने बच्चे को बुला लिया। बच्चे को वहीं पड़े एक स्ट्रा से पानी पीने को कहा। बच्चा अपनी प्यास बुझाकर खुश हुआ। इधर-उधर कूदने लगा। लेकिन कौआ सोच रहा था कि इंसान के कदम जंगल की ओर बढ़ने लगे हैं, आगे क्या होगा ?


दिनेश कुमार छाजेड़
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