लघुकथा-मधु सक्सेना

चोरी


“देखो ना भाभी ज़रा मायके क्या गई घर में चोरी हो गई सब चला गया..वो मेरी ननद है कि सारा दोष मुझे ही दे रही“- मंजू कहे जा रही थी अपने ही रौ में।
“क्या कह रही है..?“
“कहती है, सारा घर नौकरों के भरोसे छोड़ देती हो। खुद कुछ करती नहीं।“
“और तुम्हारी सासू माँ ?“
“वो तो कहती है कोई बात नहीं, उन्हें थोड़े ही दुःख होगा उन्होंने दिया ही क्या ……सब तो मेरे मायके का था।“
मैं अवाक उसका चेहरा देखती रही।

चोरी


बड़े आफिसर की बीबी मीना के भव्य सजावट वाले घर में मैं जाकर बैठी ही थी कि मीना हड़बड़ाते हुए बोली-’’देखो ना भाभी हमारे घर में चोरी हो गई।’’
’‘अरे…पुलिस में ख़बर की ?’’
’‘नहीं …।’’
’’क्यों ?’’
’’कैसे बताते ?’’ मीना ने झिझकते हुए कहा ।
सपने


मज़दूर बस्ती में रहने वाला सुरेश आज बहुत खुश है। आज उसका जन्मदिन भी है और रिजल्ट भी। अच्छे नम्बरों से पास हुआ है….बेसब्री से बाबा का इंतज़ार ….!
दूर से बाबा को आते देख कर सुरेश दौड़ कर उनके पास गया। कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा..उसने रोते हुए पूछा-
’’क्यों बाबा ..?’’
’’बस हो गई पढ़ाई, कल से काम पर जाओ।’’
’’पर मैं…. पढ़ना चाहता हूँ ….। आपने खुद ही तो मेरा दाखिल करवाया था।’’
’’तो क्या करता …तुझे मुफ़्त में खिलाता ?…साली सरकार भी नियम बना देती है। परेशानी हम गरीबों को …….स्कूल में एक समय का भोजन तो मिलता था ना ….वो तो बचा ….?
’’पर बाबा…।’’ सिसकते हुए सुरेश बोला।
’’कुछ नहीं सुनना मुझे। हो गया चौदह साल का। कल से काम जा। मैं बात कर आया हूँ।’’
बेबस खड़ा रहा सुरेश। लड़खड़ाते क़दमों से बाबा, सुरेश के सपनों को रौंदते हुए चले जा रहे थे ।


श्रीमती मधु सक्सेना
सचिन सक्सेना
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