डॉ.अशफ़ाक की लघुकथाएं

भगवान की लीला

गांव के उस फकीर का विवाह हो गया है जो दोनो आंखों से अंधा था, लेकिन दुःख की बात यह थी कि जिस लड़की से विवाह हुआ था, उसकी आंखें भी भगवान ने बचपन में ही छीन ली थी। वे दोनों एक दूसरे का सहारा होते हुए भी बेसहारा थे लेकिन पांच-छह वर्ष बाद जब मैं अपने गांव लौटा तो देखा वे दोनां अपने बेटे के सहारे चल रहे थे, जिसकी आंखें बड़ी सुंदर थी।

बदलता समय

जब भी वह छोटा बच्चा रूखी रोटी खाकर उछलकूद करता तो मां कहती ‘बेटा ज्यादा उछलकूद न कर वरना तुझे भूख लग जाएगी। फिर मैं रोटी कहां से लाऊंगी।’
लेकिन आज बच्चे का चेहरा खुशी से खिला हुआ था। वह पेट भर खाना खाकर धूम धड़क्का और शरारतें कर रहा था। मां भी उसे डांटने की बजाये उसकी शरारतों पर हंस रही थी। बच्चा अपनी मां को खुश देखकर कहने लगा।
‘मां, तू सच कहती थी कि सभी दिन एक जैसे नहीं रहते। मां जब से भूकम्प आया है, हमारी मुसीबत के दिन फिर गये हैं। अब तो हर टेन्ट में खाना मिलता है और मैं दिन भर खाता रहता हूं।’

एक जख्म और सही

‘तुम यहां क्यों आती हो?’
‘तुम से मिलने….’
‘परन्तु रोजाना आने का कारण?’
‘मैं नहीं जानती लेकिन यह सच है कि आपसे मिलने के बाद मेरे मन को शांति मिलती है और मैं सुकून महसूस करती हूं।’
‘सुनो यह पागलों की तरह बातें न करो। मैंने प्रेम से तौबा कर ली है। यूं भी मेरे दिल में कई दर्द पल रहे हैं मेरा दिल जख्मों से चूर है।’
‘मैं जानती हूं इसलिए उन जख्मों को भरने के लिए कह रही हूं। एक जख्म और सही!’

डॉ. अशफाक अहमद
41/ए, टीचर्स कालोनी, जाफर नगर, नागपुर
मो.-09422810574