लघुकथाएं-ओम प्रकाश बजाज

अपरहण

विचित्र घटनाक्रम हुआ। पोते का स्कूल बस तक छोड़ने गये दादाजी ने जैसे-तैसे पोते को तो बचा लिया किन्तु भागते चोर की लंगोटी सही के अनुरूप अपरहणकर्ताओं ने स्वयं दादाजी को दबोच लिया।
बदहवास पोते ने जैसे-तैसे घटना की खबर घर आ कर सुनाई। इस बीच एक करोड़ रूपये की फिरौती की मांग भी फोन पर आ गई। दादाजी के जमाए करोड़ों के कारोबार के कर्ता-धर्ता तीनों बेटों में विचार विमर्श हुआ। और अपरहणकर्ताओं से फिरौती की राशि पर मोलभाव शुरू हुआ। मांग एक करोड़ से पांच लाख तक आते-आते पांच दिन निकल गय। इस बीच उच्च रक्तचाप और तीव्र मधुमेह के पुराने रोगी पिच्चयासी वर्षीय दादाजी की हालत बिना नियमित दवाई के निरन्तर बिगड़ती गई।
बेटे पांच लाख देने को राजी नहीं हुए। दादाजी की चिन्ता जनक हालत से घबराकर (या संभव है!) द्रवित हो कर अपरहणकर्ता बिना कोई फिरौती लिए रात को किसी समय उन्हें बंगले के बाहर डाल गये।

एक ही बात

आशंका तो महीनों से भी। आज सिद्व हो गई। बहु बेटा हम पति-पत्नी को वृद्वाश्रम में छोड़ने ले आए। मैं तो कुछ नहीं बोला शायद पुरूषोचित अपेक्षा के कारण, पत्नी नहीं रह पाई। भीगी आंखों, रूधे गले से पूछ ही बैठी- ‘जीवन भर की हमारी तपस्या का क्या यही ईनाम है ?’
बेटे ने तटस्थ भाव से जवाब दिया-‘मम्मी, आप ने मेरे बचपन में मुझे क्रेश में रखा या हास्टल में। मैं आपके बुढ़ापे में आपको वृद्वाश्रम में रख रहा हूं, बात तो एक ही है! फिर शिकायत किस बात की ?’


ओमप्रकाश बजाज
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