कहानी-डॉ योगेन्द्र सिंह राठौर

तुम्हें क्या कहना है ?

सुबह ग्यारह बजे से बैठे-बैठे शाम के चार बज गये ,जब उसका नाम ज़ोर ज़ोर से पुकारा गया-‘‘श्यामल सिंह हाज़िर हो.’’
पुकारने वाले चपरासी की आवाज़ बहुत दूर तक सुनाई पड़ रही थी. और श्यामल सिंह खुश था इस बात से कि, उसके नाम की पुकार तो हुई. यद्यपि जब दूसरों के नाम की पुकार लग रही थी, तो उसे लग रहा था कि कितनी बेइज़्ज़ती से पुकार लगाई जाती है. जिसका नाम पुकारा जाता है वह कोई भी हो, बस उसका नाम और हाजिर हो……… जैसे उसके अपराधों को हाजिर होने के लिए कहा जा रहा हो. और जाने अनजाने किए गए अपराध, पुकारे गये नाम वाले व्यक्तियों की शक्ल में शर्मिन्दगी, संकोच और सजा के भय के साथ उपस्थित हो जायेगें. काशः ऐसा हो पाता.
यह सब वह तब सोच रहा था, जब एक तीन स्टार वाले टी.आई. की पुकार लगी और वह तेजी से कैप लगाते हुए कोर्ट के अंदर लपका.
श्यामल सिंह स्वयं की पुकार लगने पर भीतर गया और बाबू के सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया. तभी पुकार लगाने वाले ने उससे कहा-‘‘वकील साहब को बुला कर लाओ.’’ और श्यामल फिर तेजी से लपक कर वकील साहब को बुला लाया और शुरू हो गया श्यामल सिंह का परीक्षण अंतर्गत धारा-313 दंड प्रक्रिया संहिता.
‘‘सरिता का कहना है कि, तुम्हारी पत्नी ने दिनांक 08.05.1987 को आत्महत्या की. तुम्हें क्या कहना है?’’
श्यामल चुप खड़ा था. पर उसके वकील ने कहा- ‘‘सही है.’’
बाबू ने नोट कर लिया.
‘‘इसी साक्षी का कहना है कि तुम अपनी पत्नी विनीता को प्रताड़ित किया करते थे. तुम्हें क्या कहना है ?’’
श्यामल पाषाण प्रतिमा बना था, पर वकील ने कहा-‘‘गलत है.’’
बाबू ने रोबोट की तरह भावहीन रह कर नोट कर लिया.
प्रश्न उत्तर चलते गये. और जितने भी गवाहों ने श्यामल सिंह के विरूद्ध गवाही दी थी उसके आधार पर बने प्रश्न श्यामल से पूछे गये-तुम्हे क्या कहना है ? के साथ. और वकील साहब के दिए गए उत्तर, सही है, गलत है, नहीं मालूम झूठा फॅंसाया गया है, में सिमट गये. बाबू को नमस्कार कर वह वापस कोर्ट के बाहर बेंच पर बैठ गया. वह बाहर बैठा था. लेकिन उसके मस्तिष्क में अभी-अभी पूछे गये सवाल उमड़ रहे थे. तुम्हें क्या कहना है ? उसने कब, किससे, कुछ कहा ? काश वह विनीता से कह पाता कि, कावेरी उसकी मात्र मित्र है. काश वह कावेरी से कह पाता कि उससे दोस्ती के कारण ही उसका विनीता से झगड़ा होता है ? बस चुप रहने की आदत ने ही आज उसे यहॉं बिठा रखा था. दरअसल श्यामल का सोचना था कि जब उसने कुछ गलत किया ही नहीं, फिर वह सफाई क्यों दे. दरअसल वह घर को अनावश्यक त्याग से, तथा कछुए की तरह स्वयं में सिमट कर नहीं बिता सकता था. वह भी तब जबकि बाहर लोगों से मिलना उसकी नौकरी की अनिवार्य शर्त थी.
इस बीच दूसरों के नाम की पुकार लगती रही. वह सोच रहा था कि आज ही उसका फैसला हो जाए तो अच्छा है, पर ऐसा कम ही होता है कि आप किसी बात की सोचे और वह तत्काल पूरी हो जाए, वह भी तब जब वह आपके हाथ में न हो. पर ऐसा होता है और आज हुआ. श्यामल को बताया गया कि उसका फैसला होने वाला है, कहीं जाना नहीं.उसे ‘कहीं जाना नहीं’ ने जकड़ लिया. उसे सजा होने वाली है ? उसे उसी पुलिस वाले से भय लगने लगा जिसके पास बैठ कर वह सुबह से बतिया रहा था. वैसे भी श्यामल जानता था कि ‘‘ कहीं जाना नहीं ’’ का न्यायालयीन भाषा में एक अर्थ होता है-‘‘कहॉं जाओगे बचकर ?’’ यदि सजा होने के डर से वह भाग भी गया तो उसके विरूद्ध स्थाई गिरप्तारी वारंट जारी हो जाएगा. पर यह नौबत ही क्यों आई ? विनीता भी जाते -जाते उसे कहॉं फॅंसा गई ?
उसका फैसला होने वाला है – इस वाक्य ने एक बार फिर उसकी विनीता से विवाह से लेकर कावेरी से मित्रता तथा विनीता का इलाहाबाद में पिण्डदान तक दृश्यों को पुनः जीवन्त कर दिया. उसकी ऑंखें दीवार पर नोटिस बोर्ड में अटक गई. जहॉं कई प्रकरणों में आपत्ति प्रस्तुत करने हेतु आम जनता को दिए जाने वाले नोटिस लगे थे. किसी को कोई आपत्ति हो तो एक माह के भीतर पेश करें. उसे लगा कि, बरी होने के बाद भी वह ऐसे ही नोटिस में बदल जाएगा, न्यायालय के बाहर की दुनिया के लिए, आपत्ति प्रस्तुत करने की अनिश्चत समयावधि के साथ.
आज उसका फैसला है. वह नहीं जानता कि आज वह घर जाएगा या जेल. उसके मन में बैचेनी के सागर लहरा रहे थे. पर कोर्ट में सब निश्चिंत थे, आश्वस्त. उसे लगा कि उसके साथ साथ वकील, जज साहब, बाबू क्यों नहीं बैचेन है. व्यक्ति का साथ कौन भला देता है, फिर ये सब पराये हैं. उसका अपना भी कौन भला यह देखने आया है कि उसके केस का क्या फैसला होता है ? उसके नाम की पुकार लगी और वह थरथराता हुआ मुजरिमों के कठघरे में जा खड़ा हुआ. श्यामल सिंह तुम हो-जज ने पूछा. जी सर – श्यामल सिंह ने ये दो शब्द पूरी ताकत लगा कर कहे, पर घिघियाकर रह गया. जज साहब ने उसकी ओर देख कर कठोर मुद्रा में कहा-इस केस में तुमको छोड़ दिया गया है. श्यामल सिंह ने इस बार भी पूरे जोर से कहना चाहा-‘‘थैक्यू सर’’ पर आवाज भर्रा कर रह गई. फाईल जज साहब की टेबल से रीडर की टेबल तक आ चुकी थी. उसने फाईल पर हस्ताक्षर किए और फैसला पढ़ा.
वह थके हारे कदमों से घर आया. उसके घर का दरवाजा खुला था. कावेरी अन्दर टिफिन रख चुकी थी. श्यामल को आया देख उसने पानी गर्म होने रख दिया. कावेरी श्यामल का इतना ख्याल रखती थी, जितना उसकी पत्नी नहीं.
शायद कावेरी भी श्यामल की पत्नी होती, तो उतना ख्याल न रखती या श्यामल की पत्नी, श्यामल की पत्नी न होती तो श्यामल का उतना ही ख्याल रखती जितना कावेरी. व्यक्ति खुद के लिए दूसरों के द्वारा की गई औपचारिकताओं से आकर्षित होकर उसे अपनेपन के लिए विवाह करता है, पर फिर भी उसे औपचारिकताएॅं आकर्षित करती रहती हैं. शायद वह हर औपचारिकता के अपनेपन तक की यात्रा तय करने की राह देखता है. कावेरी को श्यामल की इसी बात का पता था, शायद कि श्यामल अपनेपन के साथ औपचारिकता भी चाहता ह,ै और विनीता यही भूल गई थी. प्रेम करते रहने में छोड़े जाने या दूर हो जाने का भय, हमें कभी भी दूसरे के लिए अपने कर्तव्यों के पालन में लेश मात्र भी वंचित नहीं होने देता. वहीं विवाहोपरान्त हम दूसरे की इच्छा, कार्य-शेली, को अपने अनुसार क्रम देने, प्रशंसा-आलोचना करने लगते हैं. यह एक सीमा तक ही आपसी प्रेम, विश्वास व संतोष में वृद्धि करता है. उसके बाद यही अलगाव का कारण बनता है. छोटी-छोटी दस बातें दिन भर व्यक्ति को कोंचती रहती है, उसी बात को सही मानने वाला व्यक्ति, उसी क्षण हमें समान विचारों वाला सहृदय जान पड़ता है.
बस यही तो हुआ शायद श्यामल विनीता के मध्य. जब श्यामल विनीता को एक दूसरे से प्यार हुआ तब विनीता ने कहा-‘‘मैं तुम्हारी प्रगति में बाधक नहीं बनूॅंगी.’’ उसने स्वंय की ज़िन्दगी को श्यामल की ज़िन्दगी में समा देने की सोची तब वह लबालब थी, प्रेम के आत्मसमर्पण में ही उसे शान्ति लग रही थी. पर तब शायद वह अपने को भूल गई थी. श्यामल को पूरा जानने के चक्कर में वह खुद को बिसार बैठी और यह भी बिसार बैठी कि वह खुद को ज्यादा देर तक बिसार नहीं सकती. विनीता ने सौंपा तो तन-मन था पर लेकिन, किन्तु, परन्तु औरों की तरह उसकी जिन्दगी में भी चौराहे बने. विनीता सम्भवतः यह नहीं जानती थी कि नारी की सफलता पुरूष को बॉंधने में है. और सार्थकता,उसे मुक्त कर देने में.
श्यामल जब विनीता से मिला, तब विनीता को उसका शर्ट का ‘‘इन’’ नहीं करना, कॉलेज में भी स्लीपर पहन कर आ जाना, प्रत्येक प्रश्न का सही उत्तर व यूनिवर्सिटी टॉपर की पोजीशन लुभा गई. पर अब विवाह के उपरान्त विनीता की शिकायत थी कि, श्यामल दिन-रात किताबों से ही चिपका रहता है. दो -दो दिन तक दाढ़ी नहीं बनाता,स्लीपर पहने ही उसके साथ बाजार चल देता है. आरम्भ में तो श्यामल ने विनीता की इच्छानुसार काम किया भी वह सब जो विनीता चाहती थी. पर अपनी मर्जी से किये गये, और दूसरों की मर्जी के लिए किए गए कार्य में अन्तर तो होता ही है. और इस अन्तर को विनीता नहीं पाट पाई.
जब भी श्यामल विनीता की इच्छापूर्ति करता, विनीता उस पर प्रेम की अतिरिक्त फुहारें बिखेरती, चहकती फिरती घर में, पर श्यामल उस वक्त वहॉं कहीं नहीं होता ,वह तो स्वंय उस कारण में, कार्य में परिणीत हो जाता, जो उसने विनीता के लिया किया होता. यदि विनीता साड़ी लाने पर श्यामल के सिर में प्यार से हाथ फेरती तो श्यामल स्वंय को साड़ी महसूस करता. श्यामल, तभी श्यामल रहता जब विनीता बिना किसी कार्य, कारण के श्यामल को थकान या बीमार नहीं होने पर भी उसे प्रेम करती और वह भी तब जब ऐसा करने से रोक पाने में विनीता स्वयं को असमर्थ समझे. पर ये पल ऊॅंगलियों पर गिन सकता था श्यामल. श्यामल बाथरूम में घुस गया और जैसे ही नहा कर निकला. ड्रेसिंग टेबल पर रखी विनीता की तस्वीर से उसका सामना हुआ. श्यामल आराम कुर्सी पर बैठ गया. पता नहीं क्यों कोर्ट याद आ गया, और वो सवाल -‘‘सरिता का कहना है कि तुम अपनी पत्नी को प्रताड़ित किया करते थे. तुम्हें क्या कहना है ?’’
फोटो में विनीता की ऑंखें भी जैसे उससे पूछ रही थी -‘‘तुम्हें कुछ कहना है.’’
कावेरी चाय लेकर खड़ी थी पर श्यामल ने उसे चाय टेबल पर रख देने का इशारा किया. कावेरी चाय रखकर चुपचाप चली गई. श्यामल, फिर विनीता की तस्वीर देखने लगा, जैसे वह विनीता के, तुम्हें क्या कहना है ? का जवाब दे रहा हो. दरअसल कोर्ट में तो उसकी ओर से वकील ने जवाब दे दिये, पर विनीता के मरने से लेकर, उसकी स्वंय की मृत्यु तक, उसे विनीता के आत्महत्या किए जाने के सवाल पर पुलिस, उसके अपने घर वाले, विनीता के घर वाले और उसके अपने बच्चों के बड़े होने पर पूछने पर उसे इस -‘‘तुम्हें क्या कहना है?’’ का जवाब देना होगा. अदालत के भीतर की लड़ाई वकील, गवाह, सबूत के साथ लड़ी व जीती जा सकती है, पर अदालत के बाहर की लड़ाईयॉं व्यक्ति स्वयं की लड़ता है, और जीत भी सकता है. पर स्वयं के भीतर चलने वाला युद्ध, स्वयं के सिद्धान्तों से, खुद से अनबन करने वाले का, खुद से अनबोल होना कितनी बड़ी सज़ा होती है. अदालत की किसी भी सज़ा से ज्यादा कठोर, यंत्रणादायक. पूरी दुनिया खुली जेल हो जाती है, जिसमें आजीवन कारावास हम स्वयं को दे देते हैं.
वह सोच रहा था कि, व्यक्ति किस तरह उस व्यक्ति की कद्र नहीं करता, जब जो जिसके पास होता है, कभी विनीता चाय लेकर खड़ी रहती थी और मन ही मन कावेरी से बातें करता, विनीता को चाय रख देने का इशारा किया करता था. तब विनीता की उपस्थिति से उसे रोमांच या गुदगुदी नहीं होती थी,बल्कि कावेरी का ख्याल उसके सिहरन पैदा करता था. जबकि कावेरी सिर्फ उसकी मित्र थी. और जिस तरह उसने व कावेरी ने यह तय कर लिया था कि वे तमाम उम्र अपने रिश्ते को प्रेमी-प्रेमिका या पति-पत्नी न बनने देंगे. उसी तरह से विनीता को यह समझाने में असफल रहे या लोग विनीता को यह समझाने में सफल रहे कि श्यामल और कावेरी सिर्फ दोस्त नहीं हैं. विनीता से श्यामल ने कभी भी कावेरी से अपने सम्बन्धों को लेकर बहस नहीं की. विनीता के कुछ भी कहने पर वह यही कहता कि – उसे जो सोचना है वह स्वतंत्र है. यद्यपि कावेरी, श्यामल की मित्र थी, पर श्यामल को भी विनीता का उतनी आत्मीयता से यह समझाना था कि, विनीता औरों की बातों में न आए. इसके विपरीत और लोग अवश्य विनीता से आत्मीयता जता कर ही श्यामल और कावेरी की वह बातें, घटनाएॅं सुना जाते, जिनकी कल्पना भी श्यामल कावेरी ने नहीं की होती. नतीजतन विनीता श्यामल की दाम्पत्य सरिता कब तक कल-कल करती बहती, जबकि उसका उद्गम विश्वास ही खत्म हो रहा था. ‘‘विश्वास करने से क्या मिलाता है, विश्वासघात.’’ विनीता यही वाक्य दिन भर दुहराती रहती।
‘‘चाय ठंडी हो रही है.’’-कावेरी की आवाज सुन कर श्यामल ने चाय का कप उठा लिया. पर लगातार विनीता की तस्वीर देखता रहा और चाय पीता रहा. उसकी चाय खत्म होते ही कावेरी अपने घर चली गई. कावेरी ने चाय पी थी या नहीं, उसने पूछा नहीं. न ही कावेरी ने उससे पूछा कि कोर्ट में आज क्या हुआ? दरअसल कावेरी खुद को अपराधिन मानती है, पर वह कावेरी को या स्वयं को अब तक अपराधी नहीं मानता.
उसे विनीता की तस्वीर देख कर लगा कि कभी यह साकार इसी घर में इधर-उधर डोलती रहती थी. एक एक सामान उसने किस तरह से जोड़ा और घर का सुख सामान में नहीं, उनके बीच स्वामिनी का भाव लिये डोलती स्त्री, बच्चों की किलकारी में होता है. कावेरी के जाने के बाद लगा कि उसने यदि कावेरी से मित्रता न की होती, पर उस वक्त तो उसे अपनी गृहस्थी नहीं, कावेरी दिख रही थी. यद्यपि श्यामल कावेरी का मित्र था और इसीलिए वह कावेरी से मिलना बंद नहीं कर पा रहा था जबकि विनीता का कहना था कि आखिर वह क्यों कावेरी से मिलना बंद नहीं करता. हद से गुजरने के सम्बन्ध में पत्नी शायद पति की हद को समझती है, और वे इससे सचेत रहती भी है, परन्तु पति इस बात को कम ही गम्भीरता से लेते हैं. पति, अपनी गृहस्थ ज़िन्दगी के समानान्तर ज़िन्दगी भी जी लेते हैं पर पत्नी भी गृहस्थी के अतिरिक्त कितनी ज़िन्दगी जीती है. उसका भी ‘‘मैं’’ पति के ‘‘मैं’’ से कम नहीं होता, यह श्यामल नहीं समझ पाया. और शायद इसीलिए जब वह एक दिन कावेरी
को घर डिनर के लिए आमंत्रित कर आया तो उस दिन डिनर न कावेरी कर सकी, न श्यामल, न विनीता. उसी शाम हुए विवाद ने विनीता को झकझोर दिया और वह उस शाम बॉंध तोड़ कर बही नदी हुई, अल सुबह मृत्यु-सागर में समा, हमेशा के लिए खामोश हो गई.
कुछ दिनों बाद ही उसने जिस कागज पर यह लिखा कि-‘‘ आरोप अस्वीकार है.’’उस पर लिखा था -‘‘तुमने अपनी पत्नी विनीता को आत्महत्या करने के लिए दुष्प्रेरित किया जिसके परिणाम स्वरूप मृतिका विनीता ने दिन को आत्म हत्या की.’’
विनीता के आत्महत्या करने के उपरान्त जब वह जेल में था. तब उसके बच्चे को विनीता की मॉं ले गई थी और उस दिन से वह अपने बेटे का पिता नहीं, अपनी मां का हत्यारा माना जाने लगा बेटे की निगाह में. कावेरी जेल में मिलने आती थी. उन दिनों कावेरी ने एड़ी चोटी का ज़ोर लगा कर उच्च न्यायालय से उसकी जमानत करा ली थी. और आज वह मुक्त हो गया. फैसले में लिखा गया है कि-‘‘प्रकरण में ऐसी साक्ष्य नहीं आई है कि अभियुक्त ने, मृतिका को आत्महत्या करने के लिए उध्द्त किया, उकसाया, भड़काया, उत्तेजित किया या उत्साहित किया. ’’ क्योंकि जब भी विनीता कुछ कहती. वह खामोश हो जाता. विनीता को कहने देता और वह प्यार भी बहुत करता था विनीता से पर विनीता के इर्द-गिर्द ही नहीं रख पाया वह अपनी दुनिया को, विनीता ने रची नहीं अपनी सृष्टि.
आज वह निश्चिंत है कि उसे कोर्ट के चक्कर अब नहीं काटने. वह निश्चिंत है कि उसे रात को जेल के दुःस्वप्न नहीं आएंगे. पर जो सवाल उसका पीछा नहीं छोड़ रहा है वह है-तुम्हें क्या कहना है ?
लोगों को उम्मीद रही कि कावेरी से श्यामल विवाह कर लेगा पर जब विनीता की आत्महत्या के तीन साल बाद भी उसका टिफिन कावेरी के घर से दोनों टाईम नियम से आ रहा है. लोग अब भी परेशान हो कहते हैं कि इन दोनों में इतना प्रेम है, फिर ये लोग विवाह क्यों नहीं कर लेते ?

डॉ योगेन्द्र सिंह राठौर,
गुरूद्वारा रोड, शांति-नगर,
जगदलपुर (छ.ग.)
फोन-8109534905