शुभ चिंतक
’भाभी! आप न, बादाम, चिरौंजी, मखाना, खसखस लेकर इनको घी में तल लो और फिर घी में ही बघार कर तनिक सा पानी लेकर गुड़ भी डाल दो। थोड़े समय तक पकाने के बाद दिन में दो बार खिलाओ। देखना, भैया सप्ताह भर में ही दौड़ने लगेंगे।’ इतना कहकर बहुत समय से चुप बैठी शोभा ने शीघ्रता से लगभग एक ही सांस में कह दिया। मानो फिर अवसर मिला कि नहीं।
भाभी यानी मधु अपनी सूजी आंखों और अपने मुंह में पल्लू ढंके उसे देख रही थी। उसकी रूलाई ही नहीं रूक रही थी। आज दूसरा दिन था उसके पतिदेव का दुर्घटना में चोटिल हुये। सरकारी चिकित्सालय की चारपाई पर पड़े अपने पति को जैसे ही देखती उसकी रूलाई शुरू हो जाती।
समाज और पहचान वालों का तांता लग गया था हाल चाल जानने और सांत्वना देने के लिये। चिकित्सकों और परिचारिकाओं का गैंग भी उनको वहां से भगा नहीं पा रहा था। वे भी मानव ही हैं वे भी इस दुर्घटना से व्यथित थे। चार लोग मारे गये थे और नौ जने अत्यंत चोटिल थे।
’कुछ चोटिल धरती पर सरकारी लाल कंबल पर पड़े अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे हैं।’ किशोर ने धीरे से सागर को कहा था परन्तु आसपास कई व्यक्तियों ने सुन लिया। दो चार चोटिलों के सगों ने उनको घूर कर देखा। किशोर अपने खीसे से गुटके की पुड़िया निकाल कर अपने मुंह में उड़ेल लिया।
तभी वहां कोलाहल होने लगा। अचानक रोने का स्वर बढ़ गया। सबके सब उस ओर देखने लगे। यहां तक कि एकदम चोटिल भी यथाशक्ति उठने का प्रयास करने लगे।
’अरे! बुढ़िया मर गयी जो चार दिन पहले लाये थे।’ किसी ने फुसफुसाया।
’वो तो अत्यंत रूग्ण थी। ऐसा लगता था कि मृत अवस्था में ही लेकर आये थे।’ उसे उसके पड़ोसी ने हंसकर आंख मारी।
चोटिलों के संबंधियों ने सुख की सांस ली। एक चोटिल ने अपनी भौंहों को उठाकर पूछा ’क्या हुआ ?’ तब उसकी पत्नी ने बताया ’अपने बीच का कोई नहीं है। पहले से रूग्ण बुढ़िया मृत्यु को प्राप्त हुयी है। वैसे भी अत्यंत बुजुर्ग थी। ठीक हुआ मृत्यु को प्राप्त हो गयी, उसकी मृत्यु से उसकी आत्मा से कहीं अधिक उसके घर वालों की आत्मा को शांति मिली होगी। वे निरीह कितने कष्ट में थे।’
चोटिल अपनी पत्नी को गहन दृष्टि से देखा तत्पश्चात अपनी आंखें बंद करके अपने ईश्वर का ध्यान करने लगा। उसे अपना कष्ट अचानक बढ़ता हुआ अनुभूत हुआ। तभी उसकी पत्नी ने पूछा।
’कुछ अधिक कष्ट हो रहा है लाओ बॉम लगा दूं। कहां हो रहा हैं यहां….’ कुछ पल रूककर दूसरी स्थान पर दबाकर पूछी ’यहां …?’
चोटिल आंख बंद किया पड़ा रहा।
तभी दरवाजे की ओर से कोलाहल सुनायी दिया। एक ही पल में ज्ञात हुआ कि विधायक महोदय चोटिलों के स्वास्थ संबंधी सूचना प्राप्त करने आये हैं। एकाएक चोटिलों में प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी। उनके सगे संबंधी तो तुंरत उठ खड़े हुये। पुरूषों ने अपने केश संवारे तो महिलाएं अपना पल्लू ठीक करने लगीं।
विधायक महोदय एक एक चोटिल के निकट जाते और हाथों से संकेत करके पूछते ’ठीक हो न!’ चोटिल अपनी भौंहों को हिला कर ’हां’ कह देता। अंततः वह क्या कहता।
विधायक महोदय के साथ कुछ चलचित्र वाले और दूरदर्शन वाले भी आये थे। वहां उपस्थित चिकित्सक, परिचायिका, रूग्ण, सगे संबंधी और दर्शक सभी इस प्रयास में लगे थे कि उनका मुखड़ा भी संध्या के समाचार में दूरदर्शन पर दिख जाये। इस दौड़ में मात्र वे महिलाएं चुपचाप थीं और इस बात से दूर थीं जो आज अच्छी सी साड़ी पहन कर नहीं आयीं थी और कुछ होंठों पर लाली नहीं लगायीं थी।
अपनी पड़ोस में खड़ी अपनी अनभिज्ञ महिला को अपनी कोहनी से कोंच कर कहा- ’इस मूर्ख विधायक को भी आज ही आना था। हड़बड़ी में आज मैंने कपड़े भी नहंी बदले थे। वही बैंगनी साड़ी पहन कर आ गयी जो मुझ पर जरा भी अच्छी नहीं लगती है।’
उस महिला ने भी अपना मुंह टेढ़ा कर के सहमति प्रदान कर दी। और फिर पूछ लिया।
’कल भी आयेंगे क्या विधायक महोदय ?’
पहली महिला ने उत्तर न दिया परन्तु संतोष की एक गहन स्वांस भरी। चलो एक और अवसर तो मिलेगा।
विधायक के साथ चल रहे एक व्यक्ति के हाथ में एक गत्ते का डिब्बा था उससे वह रूग्णों और चोटिलों को एक संतरा और एक केला देता चल रहा था। रूग्णालय में सभी रूग्णों और चोटिलों को देखने और फलों का वितरण करने के पश्चात भी उनके पास बहुत फल बच गये थे। आंखों से संकेत करते ही वहां उपस्थित सभी को फल देना शुरू हो गया।
सभी फल लेते देख वह बैंगनी साड़ी वाली महिला मन मसोस कर रह गयी। केमरा वाला फल लेने वालों का चित्र खींच रहा था।
अंततः भीड़ छंट गयी। वैसे भी रात्रि हो गयी थी। अब कुछ जन ही आ रहे थे। अब वे रूग्णों के साथ बैठ कर बात भी कर सकते थे।
मधु एक बिस्कुट लेकर जैसे ही खाने को हुयी तो शोभा ने मधु के कंधे पर हाथ रखकर पुनः कहा-’भाभी! तुम खाना पीना मत छोड़ देना, वरना भैया को कौन देखेगा। मानती हूं बड़े दुख की बात है। किसी ने नहीं सोचा था कि ऐसा दिन आयेगा। पर खाना तो पड़ेगा ही। भले ही थोड़ा थोड़ा खाओ परन्तु खाओ।’
मधु के गले से बिस्कुट का वह टुकड़ा भीतर ही नहीं जा पाया। वह फिर रो पड़ी। तभी साथ बैठी मधु की बहन शोभा से बोली।
’दीदी! चिकित्सालय से रूग्णों को देखने का समय समाप्त हो गया है। अभी सुरक्षाकर्मी आकर भगाने लगेंगे। अच्छा नहीं लगेगा।’
शोभा एकाएक इस उत्तर से चकरा गयी। पर वह उठी नहीं अपनी स्थान से। अबकी वह अपने साथ आयी रजनी से बोली।
’पिछली बार आयी थी मैं यहां चिकित्सालय में, तब एक चिकित्सक ने तो रूग्ण को जाने कौन सी औषधि की सुई लगायी कि उनकी टांग ही काटनी पड़ गयी। ये सरकारी चिकित्सालय तो यमदूतों का अड्डा है अड्डा!’ रजनी ने आश्चर्य से अपनी आंखें इतनी चौड़ी कर ली मानों बड़े परदे पर वह उस घटना को देख रही हो।
’सच कह रही हो। वो कैंची वाली घटना नहीं याद है तुम्हें! मनोहर के बाबूजी के पेट में ये बड़ी सी कैंसी छोड़कर पेट सिल दिये थे।’ उसके हाथों का संकेत देखकर मधु की बहन की आंखें चौड़ी हो गयी। रजनी ने करीब एक हाथ की दूरी तक अपने हाथों को फैला कर संकेत किया था।
मधु की बहन समझ नहीं पा रही थी कि इनको कैसे भगाये। तभी वह उठकर बाहर आयी और सुरक्षाकर्मी को देखकर उससे बोली।
’भैया! भीतर में जाने कितने जन रूग्णों से चिपक कर बैठे हैं उनको भगाओ न! क्या वे जन रात भर बैठेंगे।’
सुरक्षाकर्मी उसकी बात सुनकर दरवाजा खोलकर रूग्णालय के भीतर प्रवेश किया।
तनिक समय में ही रजनी और शोभा बाहर आती दिखायी दीं तब उसने शांति की स्वांस भरी।
जैसे ही वे दोनों उसके निकट पहुंची तो शोभा ने उससे पूछा।
’तुम ही रात को रूकोगी न!’
मधु की बहन ने ’हां’ में सर हिलाया। तब शोभा उसके एकदम निकट आकर उसके कानों में बोली।
’देखो, जरा सावधान रहना। मूत्रालय तभी जाना जब सहन करने की शक्ति न बचे। और हां, अपने पास अजवाइन और कपूर रखी हो न!’
मधु की बहन ने ’न’ में सर हिलाया। उसकी न सुनकर शोभा अपने माथे पर हाथ मारकर बोली।
’पढ़े लिखों के साथ यही समस्या है। किसी भी बात पर विश्वास नहीं करते। सुनो, कल से अपने पास जरूर रखना। उसे रखने से भूत प्रेत दूर रहते हैं। जानती तो हो चिकित्सालय में प्रतिदिन कितने ही जन मृत्यु को प्राप्त होते रहते हैं।’
इतना कहकर शोभा एक पल भी न रूकी सीधे लगभग दौड़ पड़ी।
मधु की बहन भयभीत हो गयी उसकी बातें सुनकर। अब तक अपने जीजा और दीदी के कष्ट में ये सब कुछ विचार में ही न था। वह पलटकर जैसे ही चिकित्सालय के भीतर जाने को हुई उसका हृदय जोर जोर से धड़कने लगा। अपनी छाती पर हाथ रखकर अपनी मूर्खता पर क्रोधित हो गयी। दुर्धटना भी अभी होना आवश्यक थी। तनावग्रस्त होते ही उसे लघुशंका की आवश्यकता अनुभव होने लगी। वह घबरा गयी। ग्रीष्मकाल तो था नहीं फिर भी मुख पर पसीने की बूंदें नाचने लगीं। कपड़े तक भीग गये।
वह जैसे ही अपनी बहन के पास पहुंची तो बहन उसे देखकर घबरा गयी।
’अरे सीमा! तुझे क्या हो गया ? तू यूं कैसे कांप रही है ? और ये तेरे मुख पर पसीना क्यों आ रहा है ? स्वास्थ को क्या हुआ ?’
सीमा को अपनी बहन के कथन से तनाव हो गया। मन ही मन सोच रही थी तुम्हारे के कारण तो यह स्थिति है और मुझसे पूछ रही हो कि क्या हुआ।
’कुछ नहीं हुआ है बस अचानक वायु का प्रकोप सा बन रहा है। इसलिये ये पसीना आ रहा है।’ अपने माथे से पसीना पोंछते हुये बोली। ’अच्छा सुनो न दीदी! मुझे लघुशंका से निपटने जाना है।’
’तो जा न! वो सामने है।’ दोपहर को तो गयी थी न ?’ मधु आश्चर्य से बोली।
’हां, गयी तो थी पर अभी तुम मेरे साथ चलो।’ मधु का हाथ पकड़कर सीमा अपने साथ ले गयी। और मूत्रालय के दरवाजे के बाहर खड़ा कर दी।
’यहीं खड़ी रहना दीदी! लौट मत जाना।’ कहकर रूकने का ध्यान दिलायी।
मधु उसे आश्चर्य से देख रही थी।
बाहर आकर मधु के चेहरे की घबराहट जरा कम हुयी।
जैसे तैसे रात बीती। कई बार उसने अपनी दीदी को मूत्रालय की दौड़ लगवायी। नींद दोनों की व्यर्थ नहीं हुयी क्योंकि दोनों को चिन्ता थी। ये अलग बात है कि दोनों की चिन्ता का प्रकार अलग अलग था।
सुबह वहीं तैयार होकर घर जाने को तैयार हो गयी सीमा।
’अरे! तू कहां जा रही है ?’ सीमा से पूछ बैठी मधु।
’मैं आज ही लौट जाना चाहती हूं अपने गांव।’ उसने आंखें झुकाकर कहा।
’देख रही है न तू अपने जीजा को! कैसी स्थिति है ?’ और अगले ही पल उसका रोना शुरू हो गया। सीमा उसके पास आयी और अपने गले से लगाकर उसे चुप कराने लगी। रोने की आवाज सुनकर कई जोड़ी आंखें उस ओर घूम गयीं। सभी एकदम से पास आकर चोटिल की चारपाई की ओर देखने लगे। सभी को लगा कि चोटिल स्वर्ग सिधार गया। पर वहां तो चोटिल स्वयं अपनी पत्नी और साली को प्रश्नवाचक दृष्टि से देख रहा था।
दर्शनार्थियों की दृष्टि के उत्सुकता वाले भाव एकाएक बदल कर क्रोध और वितृष्णा बन गये। मानों उनके मुख मंडल कह रहे हों।
’हूं, साला! मृत्यु को प्राप्त ही नहीं हुआ। बिना मूल्य में हमको नयी सूचना से वंचित कर दिया।
मधु के चुप होते ही सीमा को वास्तविकता का भान हुआ।
’शांत हो जाओ दीदी! मैं नहीं जा रही हूं। जीजाजी के ठीक होने के पश्चात ही जाउंगी।’
मधु, सीमा को कसकर जकड़ ली। मानों उसे एक बड़ा संबल मिल गया हो।
उसी समय घर से चाय नाश्ता आ गया था। छोटा भाई आया था चोटिल का। वह अपने भाई को छूकर आत्मविश्वास भर रहा था। दोनों एक दूसरे को देख कर संतोष अनुभव कर रहे थे।
’चलो भईया! चिकित्सक के आने का समय हो गया है। बाहर बैठिये। आधे घंटे बाद रूग्णों से मिलने का समय होगा तब आ जाना।’ परिचायिका ने आकर कहा। भाई ने सर हिला कर सहमति दी और उठकर बाहर निकल गया।
विधायक महोदय ने विशेष अनुदेश दिया था अतः चिकित्सकों की सेना ने रूग्णालय में प्रवेश किया। एक एक चोटिल को अधिक समय तक जांच रहे थे। वहां के अन्य रूग्णों के मुख में आश्चर्य के भाव तैर रहे थे। उन्होंने चिकित्सालय में आज से पूर्व चिकित्सकों को यूं जांच करते नहीं देखा था। कुछ रूग्ण और उनके परिजन स्वयं को चिकोटी काटकर सत्यता का प्रमाण लेते भी दिखे।
चिकित्सकों की सेना ने जैसे ही बाहर की ओर गमन किया वैसे ही रूग्णों और चोटिलों के परिजनों की भीड़ मक्खियों की भांति अपने अपने परिजन के पास जाकर भिनभिनाने लगी।
’भाभी जी नमस्ते!’
मधु को किसी ने नमस्ते की। मधु अपना मुख उपर उठा कर देखा। सामने एक व्यक्ति खड़ा दिखा। उसने भी नमस्ते में हाथ जोड़ दिये।
’भाभी जी! मैं सुंदरलाल हूं। इसका घनिष्ठ मित्र!’ वह मुस्करा कर अपना परिचय दिया। और अगले ही पल उसके मुख पर तनाव मिश्रित आश्चर्य के भाव छा गये और वह कहने लगा। -’अरे भाभी जी! आपको पता है वो दो जन जो इनके निकट में बैठे थे….!’
ऐसा कहकर अपने गले के सामने से अपनी हथेली घुमाकर संकेत किया और अपना मुख मलिन कर लिया।
मधु ये सुन देख कर एकदम से भयभीत हो गयी और उसकी रूलाई फूट गयी। उसके रोते ही उसके पति की नींद खुल गयी। वह उसे देखने लगा। तभी सुंदरलाल उसकी ओर देखकर नमस्ते किया।
’नमस्ते भाई! ठीक हो ? माणक और चंदन तो….’ सुंदर ने पुनः वैसे ही अपने गले के सामने से अपनी हथेली को घुमाकर मृत्यु हो जाने का संकेत किया। ये देखकर चिकित्सालय की चारपाई पर पड़ा वो भयंकर चोटिल कांप गया। उसकी आंखों में भय के भयानक बादल साफ साफ दिखायी देने लगे।
सीमा एक पल भी गंवाये बिना सामने आयी और सुंदरलाल को लगभग धक्का मारती हुयी वहां से दूर खदेड़ दी। पर सुंदरलाल धक्का खाते हुये भी कहता रहा।
’भाभी जी! उनकी स्थिति भी ऐसी ही थी। चिकित्सकों ने बहुत प्रयास किया पर वे बचा नहीं पाये। वो दोनों तो विशेष देखरेख वाले गहन चिकित्साकक्ष में थे।’
उसके इतना कहते कहते रूग्णालय का दरवाजा आ गया था। अंतिम एक ही धक्के ने उसे वहां बाहर कर दिया। सीमा उसे बाहर करके दरवाजे पर खड़े सुरक्षा कर्मचारी को तेज स्वर में आदेश दी। हां, आदेश ही दी।
’देखो, अब इस चिकित्सालय खण्ड में कोई भी इस प्रकार नमूना नहीं प्रवेश करना चाहिए। अन्यथा तुम्हे पदच्युत करने का आवेदन करूंगी चिकित्सालय प्रबंधन से।’ उसकी आंखों से आग के गोले बरस रहे थे। वह पांव पटकती लौटी।
मधु उसे प्रशंसात्मक नैनों से देख रही थी। अबकी सीमा अपने जीजा के बाजू में बैठ कर उनके माथे पर अपनी हथेली रख कर बोली।
’जीजा जी! इन सबके मूर्खतापूर्ण कथनों पर तनिक भी ध्यान न दो। इन्हें जरा भी भान नहीं कि एक चोटिल की मानसिक स्थिति कैसी होती है। आप अपना आंतरिक बल दृढ़ बनाये रखना। आपने तो अपने जीवन में न जाने कितने ही कष्ट उठाये हैं, कभी भी आपने हार नहीं मानी। ये घटना भी आपको जरा भी दुर्बल नहीं कर सकती। मुझे पूर्णतः विश्वास है कि आप शीघ्र ही स्वस्थ होकर अपने घर पहुंचेंगे।’ अपनी साली की बड़ी बातें सुनकर जीजा की आंखों से आंसू की दो बूंदें कोरों में लटक गयीं। उनको सीमा ने अपनी कोमल उंगलियों से पोंछ दिया।
मधु अपनी छोटी बहन के कंधे पर हाथ रखकर दृढ़ता से दबा दी। उसे आज अपनी बहन पर गर्व हो रहा था। उसका साथ उसके हृदय में विशेष शक्ति का अनुभव दे रहा था।
सीमा को ठीक उसी क्षण अनुभव हुआ कि उसने अपनी दीदी को अपने कर्म से कितना कष्ट का अनुभव करवाया। उस दीन पर जाने क्या बीती होगी। उसने भी अपनी दीदी की हथेली को अपने हथेली से कसकर दबा लिया।
तीनों ने एक दूसरे को सम्पूर्ण आश्रय देकर स्वयं को भी दृढ़ता प्रदान की।
कहते हैं कि प्रसन्नायुक्त समय जिस तरह बीत जाता है ठीक उसी प्रकार कष्टों से भरा समय भी बीत ही जाता है। राढ़ की हड्डी पर चोट थी चिकित्सकों ने पांच महीने का समय दिया था पूर्ण रूप से स्वस्थ होने के लिये। अब वे अपने घर में आ गये थे। प्रतिदिन स्वास्थ्य की सूचना लेने और संबंल प्रदान करने वालों का तांता लगा था।
मधु ने अपने माथे का पसीना पोंछते हुये सीमा से कहा।
’ये तो अच्छा संकट आन पड़ा है। दिन भर इनके स्वास्थ्य की जानकारी लेने वाले आ रहे हैं। उनके लिये चाय पानी नाश्ता की व्यवस्था करते करते तो शरीर टूट रहा है। मुझे तो अब इन आगंतुकों से तनाव उत्पन्न हो रहा है। यूं अनुभव होता है मानों ये तो हमारे प्राण हरने आ रहे हैं।’
मधु अपनी दीदी की बात सुनकर हंस पड़ी। अपने मुख पर आये बालों को पुनः पीछे की ओर जाती हुयी उत्तर दी।
’दीदी! उन शुभचिंतकों से तो अच्छे हैं ये जो उल्टी सीधी बातें करके जीजाजी का आत्मविश्वास क्षीण कर रहे थे।’
’सच कहा तुमने सीमा! यदि तुम न होती तो….!’ मधु अपनी बहन सीमा के निकट आकर उसे अपनी छाती से लगा ली। उसके माथे पर हाथ फिरा कर बोली। ’भगवान तुझे हमेशा सुखी रखे।’
पानी के दो गिलास लेकर वह बैठक में आयी। तब तक दूर की चचेरी बहन और उसके भाई आकर बैठे थे।
’नमस्ते दीदी!’ नमस्ते करके वे खड़े हो गये।
’बैठो बैठो भइया, जिज्जी! कब पहुंचे नगर!’ मधु ने पानी को गिलास देते हुये पूछा।
’सीधे यहीं आये हैं दीदी! जीजा जी अब कैसे हैं ?’ चचेरी बहन ने पूछा।
’रीढ़ की हड्डी की चोट है चिकित्सक ने कहा है कि समय लगेगा परन्तु ठीक हो जायेगा।’ मधु पानी का गिलास उनके हाथ में पकड़ाती बोली। तभी उसका भाई धीरे से बोल पड़ा।
’चिकित्सक ऐसे ही सांत्वना देते हैं और पैसे खींचते हैं। जब तक व्यक्ति लुट पिट नहीं जाता है तब तक यूं ही कहते हैं। तुमको पता नहीं वो हमारे दुर्ग वाले मामा जी के बारे में। किस तरह उनको विशेष जांच कक्ष में महीना भर रखकर लाखों रूपयों से उतार दिया। आखिर में क्या हुआ आज भी खाट पर पड़े हैं। यह भिन्न तथ्य है कि जीजा जी की जीवनशक्ति श्रेष्ठ है।’
भाई के चुप होते ही मधु सीमा और चोटिल का कान भांय भांय कर रहा था। मधु के हाथ में पानी का थाल गिरने को हो रहा था। सीमा अभी कुर्सी पर बैठी ही थी कि बुद्धि कुंद हो गयी। चोटिल की आंखों की कोरें नम हो गयीं। कक्ष में अंधेरा छा गया मानों। सबकुछ लुट गया। परन्तु अब भी कुछ बचा था भाई के हृदय में उसने पुनः अपना मुख खोला।
’चिकित्सकों के कहे को आंख मूंदकर मानना अर्थात स्वयं को धोखा देना। मुझसे यदि कोई पूछे तो मैं यही कहूंगा कि पैसा यूं नष्ट न करो। ये पैसा आने वाले समय में आपके ही काम आयेगा। जीजा जी तो वैसे भी अपना समय जी चुके हैं। दीदी और बच्चों का विचार करो…..।’
’चुप हो जा भाई!’ मधु अपने कमर में अपनी साड़ी का पल्लू खोंसती हुयी तेज स्वर में बोली। उसकी आंखें भट्टी के अंगारों की तरह दहक रहीं थी। उसी समय सीमा भी दौड़कर झाडू उठा लायी। दोनों बहनें सामने खड़ीं थी। आगंतुक भाई बहन एक पल भी नष्ट किये बिना दरवाजे की ओर भागे।
चोटिल की आंखों से अश्रु की धार झर रही थी। जिसमें उसका भय घुल घुल कर गिरता जा रहा था।
दोनों बहनें खाट के पास आकर चोटिल के माथे पर धीरे धीरे हाथ फेरने लगीं।
तभी उनको बाहर कुछ तेज स्वर सुनायी पड़ने लगा।
’विचित्र प्रकार के मानव हैं ये। हम इनके पास इसलिये आये थे कि इनको सांत्वना देकर इनका दुख करने का प्रयास करें। परन्तु ये तो पशुवत व्यवहार कर रहे हैं। कौन इनके यहां दूसरी बार आयेगा। दूर से ही उनको नमन करते हैं।’
इन शब्दों को सुनकर चोटिल के चेहरे पर गर्व के भाव रह रह कर आ रहे थे।
सनत सागर