चीर-फाड़-महेश्वर नारायण सिन्हा-सनत जैन की कहानी गनीमत की चीर-फाड़

चीर-फाड़-महेश्वर नारायण सिन्हा-सनत जैन की कहानी गनीमत की चीर-फाड़
सनत,

आपने कहानी बहुत दिनों बाद लिखी, इसलिए कमेंट भी फुरसत से। पॉइन्ट वाइज लीजिए-
1- वैसे कहानी मुकम्मल है। यह महामुकम्मल कैसे होगी, नीचे चर्चा करेंगे।
2-पहले ही पैरा में ही मूल चरित्र विषय से पाठकों को बिना लाग-लपेट आपने बताया, गुड!
जरा टीप कीजिए-आप इस तरह उसी भाव को व्यक्त करते…….एक्प्रेस…कहानी और निबंध/लेख की भाषा पूरी तरह भिन्न होनी चाहिए-कथा में भाव/ केरेक्टर/दृश्य के हिसाब से भाषा हो-यानी लचीली, पानी जैसी कहीं बहती, कहीं ठहरती या संगम होती…। मैं इस तरह एक्सप्रेस करता-
’मां! अब तो बस करो…., मैं कहता हूं भूल जाओ उस भाई के घर को….बस, बहुत हुआ…।’-आलोक की मुटिठयां तन गयीं, भौंहे सिकुडी और मुट्ठियां हवा में चल रही थीं मानो सामने उसका भाई एबीसी का चेहरा हो….स्वार्थी, मतलबी…!
ऊपर उदाहरण पर हमने बहुत चर्चा की है-कहानी के दृश्य तब असरदार होते हैं जब उन्हें ठीक से रियलास्टीक तरीके से विजुअलाइज किया जाये। दृश्यों की रचना की जाये। विशेषण से बचा जाये। आपने स्वयं लिख दिया कि वह क्रोधित था। बहुत गुस्से में था। जबकि आपको क्रोध को व्यक्त (एक्सप्रेस) करना है- क्रोध का भाव है, रस लेकर सीन क्रियेट कीजिए, यह कहानी की भाषा है। गद्य की रचना या भाषा की रचना नहीं करनी। ओके..?
दूसरा फायदा-ऐसी शुरूआत से ही कहानी आधी सफल हो जायेगी। मुख्य विषय, पात्र से परिचय। (जो आपने किया है।)
यहां के बाद कहानी सेकेण्ड स्टेज पर आती है-यानी मध्य की ओर….।
आपने ब्रीफ में भाई के स्वार्थ की चर्चा की। बढ़िया….
स्वप्न का प्रतिरूप बनाया, नया टूल….बहुत बढ़िया…..!
घर का दृश्य रखा, ताकि कहानी इधर उधर से आगे बढ़ती रहे, अपके कथ्य की ओर बढ़ती जाये….., बढ़िया..
फ्लैश बैक का संक्षिप्त, माता का अपने पति यानी आलोक के पिता का संक्षिप्त परिचय…..बढ़िया….
मगर मेरी समझ से यहीं चूक हुयी है। समस्या उठाना / दिखाना ही कहानी तो बना देती है, कहानी को पाठकों के दिल/मर्म को झकझोरनी भी चाहिये…, वह शेक वेल पूरा ठीक से नहीं हो पाता…कारण…? मानव गहरे रिश्ते को दिखाने /खोजने में विफल हो जाता है। क्यों….? क्योंकि एक भाई का भाइयों के स्वार्थ के कारण इतनी लंबी उम्र तक का साथ बुढ़ापे में छूट रहा है। उसे कैसे बताते….
माता को बेचैन आपने दिखाया….गुड….फ्लैश बैक में उनकी मीठी यादों की ओर ले गये…..और ले जाइये….गुड…..
अब यहीं पे कॉन्ट्रांस्ट होना चाहिये….यानी कहानी के अंत में पिन पाव्इंट में वो बेटे का सपना मां के जीवन में हकीकत (कड़वा) बनकर आता है कि उस अकेले बिस्तर पर मां को एक तो नींद नहीं आती है, आती भी है तो उसी तरह का सपना मां देखती है….बहुत कुछ वैसा ही….अकेलापन से भरा..भटकता …और भय से नींद उचटना…..।
कहानी यहीं खत्म हो गयी है।
इसलिये कहानी, मां के स्वप्न में पति से दूरी बताना है….!
ऐसे दृश्य पाठकों के दिल में सीधे असर करेंगे। आपके निबंधनुमा लेखन से नहीं। वैसे…भाषा में व्यक्त ठीक किया है-और लचीलापन लाइये…ठीक उस तरह कि आपने फिल्म देखी हो और भाषा में उनका ट्रांसलेशन कर रहे हैं।
बाकी पहले से काफी उम्दा तरीके से आपने लिखा है। बस-प्र्रारंभ और पंच के लिए अंत को और गहन बनाइये। यह कमी नहीं है, कुंए में पानी है, मगर और गहरा कीजिए….।
बाकी आप समझदार हैं….।

 

महेश्वर नारायण सिन्हा
बिलासपुर छ.ग.
मो.-9826124921