कृष कर्तव्य रामटेके की कविताएं

1-
कपटी जिस्म
रूह बेच आया फूटी किस्मत जोड़ने को।
उसे मालूम कहाँ था,
सिर्फ पानी से ही कुछ नहीं होगा
मिट्टी हो तभी पेड़ लगते हैं।।

तुम्हें डर नहीं लगता ???
ये सुनकर कि सितारे बिक रहे हैं।
हमारे बच्चों को सिखाना,
जिन्हें वो अपना सब कुछ मान बैठे हैं
वो किसी के कुछ नहीं लगते हैं ।।

ब्रेकिंग न्यूज़ !!
एक कीटाणु ने सरकार बना ली ।
संगमरमर की नाली के लिए
चाबी पर मुहर ना लगाने वालों सुनो,
जो मकान किसी का घर नहीं होता
वहाँ पर ताले लगते हैं।।

तुम सोच रही होगी
अचानक मैं कैसी बातें करने लगा।
ऐ मेरी रात…..
यही तेरे दिन की सच्चाई है,
मुझमें तेरा ही रंग चढ़ा है
वो तो कुछ जिंदा ज़मीर हैं
जो मेरे उजाले लगते हैं।।

2-
क्या हुआ ???
बताओ तो सही।
मैं भी रोता हूँ,
तुम रूलाओ तो सही।।
ये पर्वत टूटना चाहता है,
तुम नदी बनकर बहाओ तो सही।।

एक ख्वाब है,
जिसे मेरी नींदों की जरूरत है।
मैं सो जाऊंगा,
तुम कोई लोरी सुनाओ तो सही।।
रूठ गया दिल
तो मेरा मनाना मुश्किल होगा।
ये तुमसे ही मानेगा,
एक बार तुम इसे मनाओ तो सही।।

बद्तमीज़ !!
कहकर चले जाने से क्या होगा।
मैं भुगतने को तैयार हूँ,
तुम कोई सज़ा सुनाओ तो सही।।

बस एक टुकड़ा
चाँद ही तो लिया था मैंने हथेली पर।
मैं अपनी सारी लकीरें तेरे नाम कर दूँ,
तुम मुझे एक बार अपना बनाओ तो सही।।

ऐ मेरी मिट्टी
तू ही तो मेरी इकलौती दोस्त है।
मैं तुझ में ही मिल जाऊंगा,
एक बार मुझे खुद से मिलाओ तो सही।।

समुद्र मंथन
कर रही हो क्या मस्तिष्क में ?
अमृत तुम रख लेना,
मैं विष भी पी लूंगा तुम पिलाओ तो सही।।

3-
आज आसमान फूट फूट कर रोया ज़मीन को गले लगाकर।
चाँद ने भी दिल के दाग धो लिए गंगा की बाँहों में आकर।।
कितनी मासूम लग रही है ना ये ओजोन परत जंगल की गोद में….
नींद खुली टूटा सपना, सो गया था मैं शायद वैक्सीन लगाकर।।

4-
तुम्हें लगता होगा
मैं कभी लौट कर नहीं आऊँगा ???
सुनो… मैं सितारों की चमक में नहीं,
सूरज की तपिश में बाक़ी हूँ।
जब भी दो तो यूँ देना मेरा परिचय
“मैं सुबह का पर्यायवाची हूँ“

कृष कर्तव्य रामटेके 

जगदलपुर