राजनीति
’भाइयों! इस बार तो लग रहा है वर्षों पुरानी मांग पूरी हो ही जायेगी।’ कंुदन ने बैठक में अपना विचार रखते हुये कहा।
’हां, ऐसा ही है। पर अगर ऐसा हो गया तो उस मांगपूर्ति का सारा क्रेडिट उनकी पार्टी ले लेगी। हमें इसका फायदा चुनावों में नहीं मिलेगा। जनता उनकी जय जयकार करने लगेगी।’ सुरेन्द्र ने चिन्ता प्रकट की।
तभी कुंदन ने मेज पर अपनी हथेली मुट्ठी की शक्ल में करके मुक्का मारा और कहा-‘हम बिलकुल ऐसा नहीं होने देंगे। सांप भी मर जाये लाठी भी न टूटे, ऐसा काम हम करेंगे। उस महत्वपूर्ण सड़क का जो हमारे क्षेत्र के विकास की रीढ़ है बनवाने का क्रेडिट हमें ही मिलेगा……और बनवायेंगे वो ही लोग।’
’पर ऐसा कैसे होगा ? ये तो नामुमकीन है। केन्द्र में उनकी सरकार है राज्य में हमारी सरकार है। और तो और सड़क भी राष्ट्रीय राजमार्ग है। क्रेडिट तो उनको ही मिलेगा….चाहे हम कितनी भी अपनी पीठ ठोंक लें। अपने मुंह मिया मिट्ठू बनने से कुछ न होगा।’ सुरेन्द्र ने ताना मारते हुये कहा।
’देखना सुरेन्द्र भैया! हमारी चालबाजी देखना। भले ही आप लोगों ने जीवन गुजार दिया है राजनीति में परन्तु मैं भी कम नहीं हूं। मैंने पूरा प्लान सोच रखा है। इस प्लान से हमको क्रेडिट मिलेगा बस!’ कुंदन ने पुनः अपना मुक्का मेज पर मारा। सुरेन्द्र को लगा वो मुक्का उसके चेहरे पर पड़ा हो, पर वह चुप ही रहा। ’राजनीति में क्रेडिट लेने का ही मेन खेल है। काम भले ही केन्द्र सरकार करवाये पर हमको क्रेडिट लेना है। और जनता तो होती ही है चूतिया! उसे तो अपने दैनिक कामकाजों से ही फुर्सत नहीं मिलती। अखबारों की खबरों से अपना वोट देने का मन बनाती है। बार बार छपती खबरों की सच्चाई की अपेक्षा वह ये चर्चा करती है कि फलानी पार्टी जबरदस्त मेहनत कर रही है अखबारों में छाई हुयी है। फलानी पार्टी का जबरदस्त प्रचार है हर तरफ दीवारों में उसका विज्ञापन लगा हुआ है, देखना यही जीतेगी। मतलब इस चूतिया जनता को ये भी नहीं पता है कि मुद्दा क्या है किस पर वोट दिये जाते हैं। इसलिये मेरे प्लान के मुताबिक हमें क्या करना है समझाता हूं और देखना आप सब अभी से झूम उठोगे….!’
’अब बताओगे या फिर सिर्फ सपने ही दिखाओगे ?’ सुरेन्द्र उपहास वाले स्वर में बोला।
’बता ही रहा हूं भैया! जरा धैर्य रखो। हमे ये करना है कि आज से ही सड़क की मांग के लिये कलेक्टर, कमीशनर, पीडब्ल्यूडी, फारेस्ट आदि को सड़क बनवाने के लिये मांगपत्र देना है। इसके बाद नगर बंद की चेतावनी देना है। और इसके बाद हस्ताक्षर अभियान। और इन सबके बाद धरना प्रदर्शन, रोड़ रोको आंदोलन! फि….’
’इन सबसे क्या होगा ? अगर कुछ होना होता तो पहले ही हो गया होता। आज करने से क्या होगा। इस फोकट के दिखावे से क्या होना जाना है!’ सुरेन्द्र एकदम उत्तेजित होकर बोला।
’मालिक! बोलने दोगे तब तो कुछ बताउंगा! हमें दिखावा ही करना है!’ कुंदन के यूं कहते ही बैठक में बम फूट गया। कुछ पल की चुप्पी के बाद वह फिर बोला। ’हमें सड़क के लिये दिखावा ही करना है। अखबारों की सुर्खियां इस बात को हमारा पुरजोर प्रयास बतायेगी। जनता समझेगी कि हम सड़क के लिये अपना खूब पसीना बहा रहे हैं। लगातार खबरों में बने रहने से ये हमारा दिखावा भी एक आंदोलन की शक्ल ले लेगा। और सबसे महत्वपूर्ण बात यदि ये मुद्दा केन्द्र सरकार द्वारा चुनावों में पूरा कर दिया जाता है तब हमें ही इसका क्रेडिट मिलेगा क्योंकि जनता यही मानेगी कि हमारे धरना प्रदर्शन से ही ये हुआ है। और यदि केन्द्र सरकार ने ये मुद्दा पूरा नहीं किया तब भी गेंद हमारे ही पाले में रहेगी। हम जनता के बीच सड़कमार्ग के आंदोलनकारी बन कर हमेशा प्रशंसनीय बने रहेंगे। जनता को हम बतायेंगे कि हमारे इतनी मेहनत करने के बावजूद केन्द्र ने हमारी इतनी महत्वपूर्ण मांग को पूरा नहीं किया। हम तो हीरो बने रहेंगे और चुनावों में जनता हमें भरपूर वोट भी देगी। इसे कहते हैं हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा।’