विदाई
डाकिया…….. इस आवाज के साथ, एक पत्र, दरवाजे पर आकर गिरा। पीहू ने दौड़कर पत्र उठा लिया। “राखी“ पढ़कर, खुशी से चिल्लाकर कहा-“बुआ की राखी आ गई“। पापा, दादी कहां हो आप लोग?’’
दोनों ही अपना काम छोड़कर बाहर आ गए।
“जल्दी से लिफाफे को खोलकर देख, पत्र में क्या लिखा है“?’’ दादी ने कहा।
“हा मां।“ और पापा, उत्सुकता से लिफाफा खोलने लगे। लिफाफे के अन्दर एक राखी, सिन्दूर और चावल, छोटे से लिफाफे में ,बंद थे। और एक छोटा पत्र भी था। लिखा था-
“अम्मा, बाबूजी, प्रणाम!
यहां सब कुशल मंगल है। वहां की कुशलता की कामना करते हैं। अबकी राखी भेज रहे है। भैया, पीहू से बंधवा लेंगे। इस बार भइया, तीजा लिवाए आ पाएंगे क्या? आपके दामाद ने पूछवाया है।’’
पत्र के इंतजार में,
भैया, भाभी को प्रणाम और पीहू को प्यार….
आपकी मनी
मां और पापा की आंखों से, अश्रुधारा बह रही थी।
“क्या हुआ पापा“?’’-पीहू ने दुखी होकर पूछा।
“कुछ नहीं बेटा! बस बुआ को लेने जाना है।“-पापा ने अपने आंसू, पोंछते हुए कहा।
“अरे वाह! बुआ आयेगी, बुआ आयेगी!“ पीहू दादाजी और मम्मी को बताने दौड़ पड़ी।
मनी बुआ, पापा से करीब 12 साल छोटी थी। सबकी लाडली। दादा जी, दादी जी और पापा सब सर आंखों पर बिठाए रखते। पापा के लिए छोटी बहन से ज्यादा प्रिय कुछ भी नहीं था। उनकी हर ख्वाहिश, तत्काल पूरी की जाती। दादाजी नौकरी में ज्यादातर बाहर ही रहते। पिता जैसा भाई और मां के रहते हमेशा निश्चिन्त और खुश रहती मनी बुआ। दादी मुझे हमेशा उनकी ही कहानी सुनाया करती थी। पढ़ने में हमेशा अव्वल आती। हर कलाकारी में होशियार। जाने कितनी ही चादरों में उनकी कशीदाकारी की झलक थी। उनके बनाए थालपोश दादी सम्भाल कर रखीं थीं। जब भी मैं दीवाली का प्रसाद बांटने जाती, दादी उसी थालपोश से प्लेट को ढंककर भेजती। और बताती “इसे मनी बुआ ने बनाया है।’’
पीहू को पता था मम्मी के सबसे ज्यादा करीब बुआ ही थी। इसलिए जब भी मनी आती पीहू अपनी हर जिद पूरी करवाती। मनी भी उसे, बहुत प्यार करती। आखिर दोनों ही घर की बेटियां थीं। हर साल मनी बुआ राखी पर आती और तीज के बाद वापस ससुराल जाती। पीहू कभी-कभी दादी से पूछती-“इतनी दूर…… क्यों शादी किए बुआ की? अगर पास रहती तो हमेशा ही आ सकती थी ना।’’ पर दादी के पास कोई जवाब नहीं रहता। पापा ने एक बार मम्मी को बताया था-“बाबूजी की तबीयत खराब चल रही है, अम्मा, मनी की शादी जल्दी करने की जिद कर रही है। बोल रही है- कम से कम कन्यादान हो जाए हमारे हाथों।’’
“लड़का देखा है क्या“?’’-मम्मी ने पूछा था।
“हा, मामाजी के रिश्ते में है। पढ़ा लिखा भी है। घर से सम्पन्न है। भरा पूरा संयुक्त परिवार है।’’
“मनी तैयार है?’’ मम्मी ने पूछा।
“उससे क्या पूछना वह न थोड़े ही बोलेगी।’’ पापा ने उत्तर दिया। और मैट्रिक पास होते ही मनी बुआ की शादी हो गई। संयुक्त परिवार में बुआ इतना रम गई कि उन्हें मायके की याद भी नहीं आती थी। पर 6 साल बीत जाने के बाद भी, उनकी संतान नहीं हुई। परिवार में भी अब बातें होने लगीं जिसके चलते उन्होंने मायके आना शुरू किया था। शायद उनकी जिन्दगी में जो कमी थी, वह पीहू से पूरी हो रही थी। जब भी वह आती, समय पंख लगा कर उड़ जाता। हम देर रात तक रेडियो में गाना सुनते। कभी-कभी विविध भारती से छाया गीत में “काहे को ब्याहे विदेश……“ बजता तो उनकी आंखें भर आती। फिर राखी के बाद तीज पर्व के पहले, फूफा जी का एक पत्र बस का ड्राइवर दे जाता। जिसमे उनके लेने आने का जिक्र होता। पत्र पढ़कर बुआ एकदम शांत हो जाती। लगता विदाई का समय आ गया है। इस समय नदियां भी उफान पर रहती। पीहू सोचती रास्ते में बाढ़ आ जाए और ड्राइवर पत्र न पहुंचा पाए। तब तक बुआ हमारे ही पास रहेगी। फूफाजी आने के बाद रुकते भी तो नहीं हैं। और मनी का मन एक छोटे बच्चे की तरह मनुहार करते रहता। स्त्री का जीवन भी हमेशा दो पाटों के बीच फंसा रहा। पापा बुआ को लेने चले गए थे। इस बार राखी उनके बिना सूनी सूनी ही रही। मेरा भी छोटा भाई रक्षाबंधन के पहले आ गया था। जिसे राखी बांधकर मैंने वचन दिया था कि -हमेशा तुम्हारी रक्षा करूंगी।
बुआ जब घर आई, तो सबसे पहले अपने भतीजे को देखने पहुंची। गोद में लेकर घंटों प्यार करती रही। पर पीहू के प्रति उनका लगाव कम नहीं हुआ था। पीहू ने चहकते हुए कहा-“बुआ इस बार देरी से आई हो, देर तक रुकना। फूफा जी से कह देना, तीज के बाद तुम्हें लेने न आए।’’
“हां, ठीक है, बेटा मैं उन्हें पत्र लिख कर बता दूंगी।“-बुआ ने भी सहमति जता दी।
शाम का समय था। बस के ड्राइवर को घर की तरफ आते देख कर मुझे बुआ के जल्दी चले जाने का डर सताने लगा। उनके हाथ में पत्र था। तो क्या बुआ ने फूफा जी को पत्र नहीं लिखा? इस बार देरी से लेने आना। पत्र जैसे ही पापा के हाथ में आया, वह रोने लगे।
’’क्या हुआ?’’
’’जीजाजी नहीं……!’’ इसके आगे वह कुछ बोल ही नहीं सके। फूफाजी की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी और बुआ को वापस बुलाया जा रहा था अंतिम दर्शन के लिए। जाते जाते बुआ सबको रूला गई। कहने लगी-“अबकी आखिरी विदाई कर देना अम्मा! अब मुझे वापिस लेने कोई नहीं आयेगा।“
श्रीमती कामना पाण्डे
बिलासपुर
मो.-9424154243
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