लघुकथा-संतोष श्रीवास्तव

उत्सव

आज रामलाल गुरूजी अपने विद्यालय से अवकाश के पश्चात घर लौटते वक्त बड़े उदास से थे।
तब उनके एक मित्र ने उनसे पूछा – ’रामलाल जी! क्या बात है ? आप आज बड़े उदास से दिख रहे हैं। और वह भी खाली हाथ ही घर की ओर लौट रहे हैं जबकि कल रक्षाबंधन का पर्व है। क्या आप बच्चों के लिए नए कपड़े, मिठाईयां, एवं राखी वगैरह नहीं ले जाएंगे ?’
रामलाल जी ने सिर झुकाते हुए कहा- ’रक्षाबंधन पर्व और तमाम मिठाइयांँ, कपड़े उनके लिए हैं, जिनके पास पैसे हैं। हमें तो इस माह का वेतन ही अभी तक नहीं मिला है, तो कहांँ का त्यौहार ? सब दिन एक बराबर ही इस वर्ष बीत रहे हैं। थोड़े से वेतन में अपना घर परिवार चलाएंँ या यह त्यौहार मनाएँ। कुछ समझ में नहीं आता।’
मित्र ने कहा- ’रामलाल जी! उन बच्चों के बारे में सोचिए जो घर पर टकटकी लगाए बैठे होंगे कि कब आप आएंँगे और उनके लिए मिठाइयांँ कपड़े आदि लाएंँगे।’ रामलाल जी की आंखें अचानक भर आती हैं। गला उनका रूंध जाता है। वह अपने मित्र से फिर कुछ भी नहीं कह पाते।
मित्र को उन पर तरस आ जाता है। वह कह पड़ता है -नहीं, रामलाल जी! यह तो ज्यादती होगी। आखिर इसमें उन नन्हें बच्चों का क्या कसूर है। जो राखी के त्यौहार में एक उमंग से भरे हुए हैं। उनसे उनकी खुशी छीनने का हमें कोई हक नहीं बनता। आखिर आपके विद्यालय के लोगों को इतना तो ध्यान रखना ही चाहिए कि सामने राखी का त्यौहार है। खैर दुनिया में सब एक से नहीं होते। तुम चिंता मत करो। यह लो कुछ पैसे मेरी ओर से। इन पैसों से बच्चों के लिए मिठाइयांँ, राखी व नए कपड़े अवश्य ले लेना।’
तब रामलाल जी कहते हैं- ’नहीं मित्र! रहने दो।’
पर वह मित्र रामलाल जी के जेब में दो हजार के नोट डाल देता है। मित्र कहता है- ’जब आपका वेतन मिल जाए तब इसे वापस कर दीजिएगा।’
उधर बड़ी देर से रामलाल जी घर पहुंँचते हैं। पूरा परिवार जिसमें उनकी पत्नी, बच्चे आदि होते है, उनका इंतजार करते मानो थक से गए हो। उन्हें देखते ही हर्षित हो जाते है।
बच्चे लपक कर उन तक पहुंँच जाते हैं, और उनके हाथ में रखी मिठाइयों के डिब्बे, राखियाँ, कपड़े आदि छीन लेते हैं। रामलाल जी इस समय जिस आनंद की अनुभूति करते हैं, वह असीम होता है।
रामलाल जी अपने को उस मित्र की मानवीय संवेदना के अहसानों तले मानो दबे दबे से अपने को पाते हैं। ऐसा लग रहा हो जैसे उस मित्र की यह संवेदना ही उनका एक उत्सव बन गया हो।

संतोष श्रीवास्तव “सम“
कांकेर छत्तीसगढ़।
मो.-99938 19429