देसी गुलाब
वह सुबह गुलाब के बगीचे में टहल रहा था। बडिंग वाले गुलाब में प्यारा सा नया फुल खिला हुआ था। पास हीे एक देसी गुलाब के पौधे में भी गुलाबी रंग के फुल खिले हुए थे। वह बारी-बारी से दोनों फूलों को देखने लगा, तुलना करने लगा। तभी उसकी पत्नी बगीचे में पहुॅंची, और उसके हाथों में चाय का कप थमा गई।
वह भीतर बच्चों को सम्हालने में लगी हुई थी। वह सोचने लगा, जब उसकी शादी हुई थी सरिता घर आई थी तो कितनी खूबसूरत थी सारा समय उसके साथ बिताती थी। अब तो वह बच्चों में ही उलझ कर रह गई है। ऑफिस की सेक्रेटरी रोजी उसका कितना खयाल रखती है। खूबसूरत भी कितनी है- इस बडिंग वाले गुलाब की तरह। और उसकी पत्नी ठीक इस देसी गुलाब जैसी। एकाएक उसने पौधे पर लगे देसी गुलाब को मसल डाला। पंखुड़ियों के रंग से उसकी उंगलियां गुलाबी हो गईं। उसके हाथ महक उठे। उसने बडिंग वाले गुलाब की ओर हाथ बढ़ाया। जैसे ही गुलाब को छूना चाहा उसकी उंगली में कॉंटा चुभ गया। उसने हाथ खींच लिया। उसकी उंगली से खून टपक रहा था।
पसंद
बंगले के लॉन में अफसर अपने पॉँच पालतू कुत्तों को बिस्किट खिला रहा था। कुत्ते उछल कर उसकी हाथों से बिस्किट लपक लेते। तभी अफसर ने ध्यान से देखा तो पाया कि चार कुत्ते बिस्किट खाते समय अपनी दुम हिलाते रहते लेकिन एक कुत्ता बिना दुम हिलाए बिस्किट खाने में मस्त रहता। अफसर को यह बात नागवार गुजरी। उसने तुरंत उस कुत्ते को जंजीर से बांधा और ड्राइवर से गाड़ी लेकर उस कुत्ते को शहर से दूर कहीं छोड़ आने को कहा। और वह बाकी चार कुत्तों के सामने बिस्किट डालने लगा।
दूसरे दिन सुबह ऑफिस गया। उसके कुर्सी पर बैठते ही एक-एक कर उसके मातहत आने लगे, उसे सलाम कर अपनी कुर्सियों पर बैठ आपस में बताने लगे कि साहब ने उसके घर का हालचाल पूछा, उससे बातें की। उस पर साहब की कृपादृष्टि है। अफसर ने देखा कि पांडेय जी आने के बाद से ही अपनी फाइलों में उलझे हुए हैं, एक सप्ताह के बाद पांडेय जी की टेबल पर उसका ट्रांसफर आर्डर पड़ा हुआ था।
डॉ. सुरेश तिवारी
मेन रोड, तोकापाल
जिला-बस्तर
छ.ग.
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