लघुकथा-मो. जिलानी

परिणाम


कुछ दिनों से मोहन को अपनी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी। जांच कराने पर डॉक्टर सागर ने कहा-‘‘बार-बार ताकीद देने के बाद भी तुम मेरी बात को गंभीरता से नहीं लेते हो।‘‘
नीची नजरें करते हुए मोहन ने पूछा-‘‘इस बार क्या बात हो गई है ?’’
डॉ. सागर ने समझाते हुए कहा-‘‘शराब पीने की आदत से तुम्हारी दोनों किडनियां लगभग खराब हो चुकी हैं। अब तो ईश्वर ही कुछ करे।’’
यह सुनते ही मोहन अवाक रह गया। वह एक मध्यम वर्गीय आटो चालक था। अपनी पत्नी, दो लड़कियों व अपाहिज बूढ़ी मां के साथ रहता था। बुरी संगत की वजह से शराब पीने की आदत ने उसे आज मौत के द्वार पर लाकर खड़ा कर दिया। असह्य दर्द के कारण उसे सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया । भर्ती के दौरान शराब की एक बूंद न मिलने के कारण उस की तबीयत क्षण-क्षण बिगड़ने लगी। वह बार-बार बेहोश होने लगा।
एक दिन उसने अपनी पत्नी शीला से कहा-‘‘अब शायद मैं तुम लोगों का साथ नहीं दे सकूंगा। शराब के कारण मेरा जीवन बरबाद हो गया। मेरे बाद परिवार का क्या होगा ? अब कौन सहारा देगा ?’’ यह कहते हुये वह फूट-फूटकर रोने लगा। उसकी तबीयत में कोई सुधार दिखाई नहीं दे रहा था।
एक रात जोरदार बारिश की वजह से घने बादल छा गये। चारो ओर अंधेरा ही अंधेरा दिखाई देने लगा। मोहन की बिगड़ती हुई हालत को देखते हुए डॉ सागर ने उसके परिवार के सभी सदस्यों को बुलाकर कहने लगे-’’हमारी लाख कोशिशों के बावजूद हम मोहन को बचा नहीं पा रहे हैं। शायद इसका अंतिम समय आ गया है। चंद सांसे लिए हुए वह आप सभी को देखना चाह रहा है।’’
बिस्तर पर पड़े मोहन के सामने उसकी पत्नी, बूढ़ी मां, और दोनों लड़कियां खड़ी रो रही थीं। इशारे से पत्नी को पास बुलाकर मोहन कुछ कहने की भरसक कोशिश करने लगा। मुंह से शब्द निकल नहीं रहे थे। मन की पीड़ा उसकी आंखों से झलक रही थी। सबकुछ शांत सा लग रहा था। मोहन अपनी पत्नी शीला की ओर एकटक देखने लगा। देखते-देखते न जाने कब वह अपने परिवार को रोता बिलखता छोड़कर चल बसा। पता ही नहीं चला। तभी तेज हवा के एक झोंके से खिड़की का दरवाजा खुल गया। चारों ओर सन्नाटा सा छा गया। बाहर घने अंधेरे में दूर कहीं कुत्तों की रोने की आवाजें सुनाई देने लगी।

जल्लाद


‘‘बाबा, मैं कल स्कूल नहीं जाऊंगा।’’ बेटे की बात सुनकर कल्लूराम को बड़ा अचरज हुआ। पूछने लगा-‘‘क्यों नहीं जायेगा ?’’
बेटे पवन ने कहा-‘‘स्कूल में मेरे सहपाठी मुझे जल्लाद का बेटा कहकर चिढ़ाते हैं। तुम ऐसा कौन सा काम करते हो ? हमारा समाज जल्लाद को नफरत से क्यों देखता है ?’’
बेटे की बातों से बाप का दिल दहल उठा। उसने बेटे से कहा-‘‘हमारे समाज में सभ्य इंसानों के साथ-साथ कुछ दरिन्दे भी रहते हैं। जो अपनी क्रूर मानसिकता के कारण इन भोले-भाले इंसानों को अपनी हवस का शिकार बनाते हुए हत्या करने से भी बाज नहीं आते।’’ बाप की बातों का मर्म समझते हुए दस वर्षीय पवन पूछने लगा-’’बाबा! आप को लोग जल्लाद ही क्यों कहते हैं ?’’
यह सुनकर कल्लूराम की आंखों से आंसू निकल पड़े। कहने लगा-‘‘बेटा! इन वहशी, दरिन्दों को कानून के मुताबिक मौत की सजा दी जाती है, ताकि हमारा समाज भयमुक्त बना रहे। हां, मैं एक जल्लाद हूं, क्योंकि इन खूनी दरिन्दों को सूली पर चढ़ाने का मानवीय कार्य करता हूं।’’ पवन को अपने बाबा की बातें सुनकर गर्व होने लगा कि उसके बाबा भी सामाजिक न्याय व्यवस्था को बनाये रखने में महत्वपूर्ण सहयोग करते हैं।


मोहम्मद जिलानी
हकीमी हाऊस,
डी.जी. वार्ड नं.-1
तुकूम, चंद्रपुर-442401
मो.-9850362608