लघुकथा-अशफाक अहमद

राशन कार्ड


मैं अपनी राशन की दुकान बंद करके जब घर लौटा तो देखा रमेश की मां मेरे दरवाजे की दहलीज के पास बैठी है और मेरी पत्नी शांती उसे खाना परोस रही है। मैंने घर में प्रवेश करते ही शांती को अपने समीप बुलाकर सरगोशी वाले अंदाज में कहा-‘‘तुम इन्हें घर में बुलाकर खाना खिलाओ।’’ मेरी पत्नी ने ऐसा ही किया।
जब वह खाना खाकर चली गई
तो शांती कहने लगी-‘‘बेचारी सुबह से भूखी थी। पेट की आग बुझाने कभी अपने और कभी पड़ोस में आ जाती है। मैं तो कहती हूं तुम उस दुखियारी का राशन कार्ड बनवा दो। कम से कम दो समय की रोटी का तो प्रबंध हो जायेगा।’’ शांती ने मुग्ध भाव से कहा और मेरी ओर देखने लगी।
मेरे चेहरे पर कुटिलता भरी मुस्कान फैल गई। मैंने शांती के उदास चेहरे की ओर देखकर कहा-’’शांती मैं इन्हें भली भांती जानता हूं। वह बड़ी भाग्यशाली मां है, उसके तीन बेटे हैं। पति के स्वर्गवास के पश्चात उन्होंने अपनी पुश्तैनी सम्पति तीनों बेटों में बांट दी। तीनों बेटे अपने-अपने घरों में खुशहाल और सम्पन्न हैं। मैं भला उनका राशन कार्ड कैसे बनवाऊं जिनका नाम सभी बेटों के राशन कार्ड की सूची में सर्वप्रथम है…??‘‘

शायद कि तुम


मैं तुम्हें कैसे समझाऊं नाज़….यह तो एक बेजोड़ रिश्ता है जिससे मुझे अनचाहे ही बांध दिया गया है। मैंने न तो कभी उसे चाहा है और न ही कभी चाहूंगा। यह वास्तविकता है कि मैंने तुम से प्यार किया है मेरे मन में तुम ही तुम हो मैं सदा तुम्हारा ही रहूंगा। वह कितनी अभागिन है कि वह मेरी होकर भी मैं उसका न हो सकूंगा। वह जीवन भर साये की तरह साथ-साथ रहेगी, परन्तु मन से मन की दूरियों को वह पढ़ न सकेगी।
नाज…..प्रेम शरीर से नहीं बल्कि आत्मा से होता है और सच्ची बात तो यह है कि मैंने धोखा तुम्हें नहीे बल्कि उसे दिया है। शायद कि तुम समझ सको।
दिल के आंगन में…
एक दिन यूं हुआ वह मुझे छोड़कर इस संसार से हमेशा-हमेशा के लिए चली गई…। वह क्या गई मेरे दिल पर नई-नई दस्तकें होने लगीं। दस्तक देने वाली धड़कनें शायद यह समझ बैठीं थीं कि मकान खाली हो गया है। मैं तन्हा हो गया हूं। लेकिन……लेकिन उन्हें क्या मालूम कि वह……वह तो केवल संसार से गयी थी मेरे दिल में तो वह कल भी विराजमान थी, आज भी है और सदैव रहेगी!!


अशफाक अहमद
41-ए मर्कज-ए- इसलामी के सामने
टीचर्स कालोनी, जाफर नगर, नागपुर-440013
मो-9545628287