अंक-5-साहित्यिक उठापटक

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी

रायगढ़: कुबेर की नगरी कहे जाने वाली धर्म नगरी खरसिया में महान कथाकार साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की 135वीं जयंती के उपलक्ष्य पर नव सृजन कला एवं साहित्य मंच के तत्वधान में उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर एक परिचर्चा व सरस काव्य गोष्ठी का आयोजन सेठ दीनानाथ आवासीय परिसर गोविंद नगर खरसिया में किया गया। इस कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यारों ने जहां उपन्यास सम्राट मंुशी प्रेमचंद जी के व्यक्तित्व व कृतित्व अपने विचार रखें वहीं वरिष्ठ युवा व नवोदित कवियों ने अपनी रचनायें प्रस्तुत की। इस समारोह के मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग छ.ग. शासन द्वारा सम्मानित श्री कमल कुमार बहिदार विशिष्ट अतिथि साहित्य चेतना मंच रायगढ़ के सचिव अंजनी कुमार अंकुर, त्रिलोचन राठौर, नव सृजन कला एवं साहित्य मंच के वरिष्ठ कवि विनोदचंद राठौर प्राचार्य प्यारे लाल कंवर, प्रो. रमेश टंडन कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ कवि गुरूचरण सिंह छाबड़ा मंच पर उपस्थित थे। कार्यक्रम की शुरूआत प्रेमचंद जी छायाचित्र पर दीप प्रज्जवलित, पुष्पांजली अर्पित शुभारंभ किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अध्यक्ष व विशिष्ट अतिथियों का स्वागत मंच के सदस्यों द्वारा पुष्पाहार से किया गया तत्पश्चात् श्रीमती सुभद्रा रानी राठौर के द्वारा सुमधुर कंठांे से मां सरस्वती की वंदन की गई तत्पश्चात् स्वागत गीत प्रस्तुत की गई। इस अवसर पर युवा कवि मंच के संचालक डिग्रीलाल जगत निर्भिक ने मुंशी प्रेमचंद जी के जीवन परिचय पर व्याख्या करते हुये कहा लाखों करोड़ों पाठकों के दिल पर राज करने वाले महान कथा साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद आज हमारे बीच में नहीं हैं। मगर अपने कथा साहित्य में पात्रों के बीच बोलते नजर आते हैं। वास्तव में अपने उपन्यासों और कहानियों से वे अमर हो गये तत्पश्चात् मंच के सह संयोजिका श्रीमती किरण शर्मा ने भी उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद जयंती के अवसर पर उनके जीवन परिचय पर चर्चा की और उन्होंने कहा मुंशी प्रेमचंद ने अनेक अविस्मरणीय कहानियां लिखी हैं। इन कहानियों में देश समाज और ग्राम जीवन के अनगिनत रंग अपनी भरपूर छटा बिखेरे हुए हैं। हिन्दी साहित्य के उद्भव व विकास को संक्षिप्त रूप से वे जन चेतना माटी पुत्र प्रेमचंद जी द्वारा सर्वप्रथम लिखा गया उपन्यास लेखन शैली, पात्र, संवाद कथाशैली व कथोकथन के ऊपर कहा गया साथ ही युवाओं को अहवान किया गया। समसामयिक घटना कुरीतियों कन्या भ्रूण हत्या, बालविवाह, दहेजप्रथा, बढ़ती आबादी, सिमटती जमीन पर लिखे कलम के सिपाही बनकर अपना कलम आंदोलन चलाए। मलाला का उदाहरण देकर शिक्षा की धारा में बढ़ने को कहा। इस अवसर पर रायगढ़ से पधारे साहित्य चेतना मंच के अध्यक्ष श्री कमल बहिदार ने भी उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी को याद करते हुए कहा मंुशी प्रेमचंद सशक्त रचनाकार थे। हिन्दी कथा साहित्य को गौरव प्रदान करने उसे अन्तर्राष्ट्रीय कथा साहित्य के समकक्ष लाने का श्रेय स्व. मंुशी प्रेमचंद को है। प्रेमचंद के उपन्यासों में लोक के व्यापक चित्र तथा सामाजिक समस्याओं के गहन विश्लेषण को देख कर कहा गया है कि प्रेमचंद के उपन्यास भारतीय जनजीवन के मुह बोलते चित्र हैं। प्रेमचंद ने एक दर्जन सशक्त उपन्यास और लगभग तीन सौ कहानियां लिखकर हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया ये कहानियां मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं का बड़ा यथार्थ तथा सहज चित्रण प्रस्तुत करता है। इस अवसर पर सशक्त रचनाकार अंजनी कुमार अंकुर ने हिन्दी कहानी के पितामह मुंशी प्रेमचंद जी को याद करते हुए उनके जीवन दर्शन पर व्याख्या करते हुए कहा- मां भारती के इस आराधक का जन्म वाराणसी शहर से चार मील दूर ग्राम लमही में सन् 1880 ई. में हुआ। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए उनका बचपन संकटों में बीता उनका जीवन शुरू से आखरी तक अभाव और संघर्षमय था । प्रेमचंद आदर्शोमुखी यथार्थवादी साहित्यकार थे। उन्होंने समाज के सामने एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत किए जिसके सहारे लोग अपने चरित्रों को ऊंचा उठा सकें। इस अवसर पर हरप्रसाद ढ़ेढ़े, मोती लाल राठौर, लकेश्वर धीरहे, परेशान चाम्पा, मनमोहन सिंह ठाकुर, जयन्तु राम मनहरे, सत्यनारायण बरेठ, मनिहार सिंह निराला, कटेकोनी जांजगीर-चाम्पा, प्रो. रमेश टण्डन, प्यारेलाल कवंर प्राचार्य, विनोदचंद सिंह राठौर, त्रिलोचन राठौर, भोज कुमार राठौर, गुरूचरण सिह छाबड़ा, लखन लाल राठौर, श्रीमती देवकुमारी बघेल ’’आस’’, डिग्रीलाल जगत, गुलाब सिंह कवंर, कमल बहिदार, अंजनी कुमार अंकुर, श्रीमती किरण शर्मा ने भी अपनी-अपनी रचना का पाठ किया ।

पहला संदेशः क्षेत्र का संदेश
बस्तर क्षेत्र की उर्वर धरती ने न जाने कितने ही मानस पुत्र दिये हैं उनमें दिनांक 12 जुलाई 15 को नाम और जुड़ गया। सनत जैन के कहानी संग्रह ‘पहला संदेश’ के साथ ही उन्होंने अपनी कहानी लेखन प्रतिभा को साबित कर दिया। क्षेत्र के नामी साहित्यकार शानी और कृष्ण शुक्ल के बाद उन्होंने अपने लगातार लेखन से कहानी से जोरदार उपस्थिति प्रस्तुत की। ‘बस्तर मेरा देश’ के बाद यह उनका दूसरा कहानी संग्रह है जिसका विमोचन साल भर पूर्व हुआ था।
बस्तर क्षेत्र के आदिवासियों की समस्याओं और अन्य विषयों को चित्रित करती कहानियां यहां के वर्तमान का सच्चा ताना-बाना हैं। कला संस्था आकृति में शरदचंद्र गौड़ ने कुशल मंच संचालन के दौरान अपनी समीक्षा में बताया कि सनत जैन अपने ठेकेदारी के पेशे के दौरान जो दुनिया देखी उसे ही पन्नों पर उतार दिया। श्री मदन आचार्य जी ने आश्चर्य प्रगट करते हुआ कहा कि सनत कैसे अपने काम के साथ लेखन का सामंजस्य कर पाते हैं। डॉ. योगेन्द्र सिंह राठौर ने अपने समीक्षात्मक उद्बोधन में ‘पहला संदेश’ की लेखन शैली पर प्रकाश डाला और भविष्य की शुभकानाएं प्रेषित की। संग्रह का कवर पेज श्री नरसिंह महांती द्वारा वाटर कलर से डिजाइन किया गया है जिसे सभा में उपस्थित सभी लोगों ने सराहा। श्री जे पी दानी, श्री ऋषि शर्मा ऋषि, डॉ कौशलेन्द्र, श्री बी.एल.विश्वकर्मा श्री शशांक शेण्डे, डॉ चंद्रेश शर्मा, श्री नरेन्द्र पाढ़ी, श्री नरेन्द्र यादव, श्री विमल तिवारी, श्री वसंत चव्हाण, श्री जैनेन्द्रसिंह, श्री भरत गंगादित्य, श्रीमती सरला जैन, श्रीमती ममता जैन के साथ बीजापुर से पधारी पूनम विश्वकर्मा भी थीं। सभा में उपस्थित समस्त जनों ने अपना उद्बोधन दिया।
विमोचन के बाद पावस काव्य गोष्ठी का भी आयोजन था जिसमें भरत गंगादित्य एवं नरसिंह पाढ़ी ने हल्बी बोली में सुन्दर गीत एवं कविता का पाठ किया। ऋषि शर्मा ऋषि ने अपनी ग़ज़लों से मन मोह लिया। डॉ. चंद्रेश शर्मा एवं श्री नरेन्द्र यादव ने छत्तीसगढ़ी में गीत प्रस्तुत किया । श्री शशांक शेण्डे ने अपनी काव्य रचना से सबका मन मोह लिया। पूनम विश्वकर्मा ने भी अपनी कविताएं सुनाईं।